ईद की नमाज से पहले जन्मे बच्चे का भी सदका-ए-फित्र निकालना जरूरी
रांची : ईद की नमाज से पहले अगर किसी बच्चे की पैदाइश हुई है तो उसका भी सदका-ए- फित्र (दान) जरूरी है।
रांची : ईद की नमाज से पहले अगर किसी बच्चे की पैदाइश हुई है तो उसका भी सदका-ए- फित्र (दान) देना जरूरी है। यह वह रकम है जो रोजा रखने या न रखने वाले हर मुसलमान को देना अनिवार्य है। परिवार का मुखिया यह राशि निकालता है जो मिस्किनों (गरीब वर्ग जो पैसा मागता नहीं लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति खराब होती है) को दिया जाता है। उलेमाओं के अनुसार हर मुसलमान को सदका-ए-फित्र की रकम निकालना जरूरी है।
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क्यों निकाला जाता है सदका-ए-फित्र
मौलाना मतीनुल हक कासिमी के अनुसार इंसान जब रोजा रखता है तो उससे भी कुछ गलतिया अनजाने में हो जाती हैं। इस वजह से सदका -ए-फित्र वाजिब (अनिवार्य) किया गया है। जिस तरह से रोजा फर्ज है उसी तरह से फित्रा देना भी जरूरी है। हर मुस्लिम व्यक्ति जिसकी हैसियत है, रोजा रखता हो या न रखता हो, जो लोग किसी बीमारी की वजह से रोजा न रख पाते हों, उन्हें भी फित्रा देना अनिवार्य है। फित्रा और जकात (विशेष दान) पर गरीबों और मोहताजों का हक है। इसे पाने वाले ईद के दिन की खुशियों में शामिल हो पाते हैं।
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54 रुपये के हिसाब से निकालें फित्रा
एदारा ए शरिया के नाजिम ए आला मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी(राची) के अनुसार सदका ए फित्र की रकम तय कर दी गई है। हर मालिक ए नेसाब को दो किलो 45 ग्राम गेंहू या फिर इसकी कीमत निकालना वाजिब है। सदका ए फित्र ईद की नमाज से पहले निकालना चाहिए। हर मालिक ए नेसाब पर फित्रा निकालना वाजिब किया गया है। सदका-ए-फित्र की रकम किसी गरीब व जरूरतमंद को ही देना चाहिए। ताकि वह भी हमारी तरह ईद की खुशियों में शामिल हो सके। हदीस में आया है कि जो सदका-ए-फित्र नहीं निकालते हैं उनका रोजा आसमान और जमीन के बीच लटका रहता है। जब तक वह सदका ए फित्र अदा नहीं करे। हालांकि इमारत-ए-शरीया ने 40 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से सदका-ए-फित्र निकालने का एलान किया है। जो मालिक ए नेसाब हैं, उसका रोजा उस वक्त तक कबूल नहीं होता जब तक कि वह सदका-ए-फित्र अदा कर न लें। उसका रोजा जमीन और आसमान के दरमियान रह जाता है।