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आर्यभट्ट में असमी नाटक का किया गया मंचन

असमी नाटक पोखिला का किया गया मंचन।

By JagranEdited By: Published: Tue, 29 May 2018 03:22 PM (IST)Updated: Tue, 29 May 2018 03:22 PM (IST)
आर्यभट्ट में असमी नाटक का किया गया मंचन
आर्यभट्ट में असमी नाटक का किया गया मंचन

जागरण संवाददाता, रांची : आर्यभट्ट सभागार में सोमवार की संध्या असमी नाटक पोखिला का मंचन किया गया। पोखिला मतलब तितली। एनएसडी से निकले ज्योति नारायण नाथ ने इसका निर्देशन किया था। एक घंटा दस मिनट के इस नाटक को गुवाहाटी की नाट्य संस्था अनुभव की टीम ने इसे मंचित किया। नाटक असम के इमरान हुसैन ने लिखा है। कहानी एक लड़की के जीवन की है। यह लड़की किसी भी समाज में दिख जाएगी। झारखंड में भी। गरीब लड़की एक घर पर काम करने लगती है और घर का मालिक सर्वेक्षक मंडल उसे एक दिन गंदा कर देता है। इस पीड़ा को सहते हुए वह अपने घर आती है मां बुरी तरह इसलिए पिटती है कि उसने सर्वेक्षक का घर छोड़ दिया। इसके बाद वह घर से भी निकल जाती है और सड़क किनारे सो जाती है। उस रात अनजाने में बालपन की दहलीज लांघकर महिला बन जाती है। अब परंपरानुसार उसे सात दिन अलग बिताने पड़ते हैं। समाज उसे सिखाने लगता है कि महिला का व्यवहार कैसा होना चाहिए? तमात झंझावतों को झेलते हुए वह लड़की से दृढ़ संकल्प महिला बनकर उभरती है। नाटक में परंपरा, स्त्री के प्रति समाज का नजरिया आदि का ताना-बाना बुनते हुए एक स्त्री संघर्ष को दिखाया गया है। असमी भाषा में यह नाटक था, लेकिन संप्रेषण में कोई कमी नहीं थी। भाषा अलग थी, भाव और मंचन से हर दर्शक खुद को उससे जोड़ लेता था। प्रकाश और ध्वनि का गजब का संयोजन था।

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कॉलेजों में हो सिनेमा की पढ़ाई : अखिलेंद्र मिश्रा

सार्थक सिनेमा की समझ के लिए कॉलेजों में सिनेमा की पढ़ाई होनी चाहिए। एक विषय अनिवार्य रूप से इसे पूरे देश में लागू करना चाहिए। आज सिनेमा सशक्त माध्यम है। इस माध्यम से बेहतर चीजें आएं, देश और समाज सही दिशा की ओर बढ़े, इसके लिए यह आवश्यक है। यह कहना है कि अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा का। वे दैनिक जागरण से विशेष बातचीत कर रहे थे।

मिश्रा का कहना है कि आज आतंकवादियों पर भी बायोपिक बन जा रही हैं। सिनेमा ने अपराध और अपराधियों को ग्लोरीफाई किया। इसका नजीता आज सामने है। इसलिए सिनेमा सही दिशा की ओर बढ़े और लोगों की इसके प्रति समझ परिपक्व हो, इसके लिए जरूरी है कि स्कूल-कालेज में यह अनिवार्य विषय हो। सिनेमा सब देखते हैं और यह किसी न किसी रूप में सबको प्रभावित करता है।

छपरा से चलकर मुंबई तक की यात्रा करने वाले अखिलेंद्र कहते हैं कि यह एक लंबी कहानी है। जिस स्कूल से डॉ राजेंद्र प्रसाद पढ़े थे, उसी छपरा जिला स्कूल से पढ़ाई की। यहीं पर थियेटर करता था। बाबू राजेंद्र प्रसाद के भाई महेंद्र प्रसाद यहां एक थियेटर ग्रुप भी चलाते थे। घर वाले चाहते थे कि इंजीनियर बनूं। बिहार यूनिवर्सिटी से एमएससी किया। अस्सी के दशक में अपने माता-पिता को समझना मुश्किल था कि अभिनय करना चाहता हूं। पिता नौकरी करते थे, लेकिन पृष्ठभूमि खेती-किसानी की थी। परंपरागत सोच, सांस्कृतिक सोच अलग थी। सो, मां को किसी तरह समझाया। उसे बताया कि मुंबई जाने पर इंजीनियर भी बन जाएंगे, डॉक्टर भी बन जाएंगे, पुलिस भी बन जाएंगे? मां ने कहा-पइसो मिलीं। हां मां, खूब मिली। यह बात पिताजी के कानों तक पहुंची। उस समय कोई बात सीधे पिताजी से कहने का साहस नहीं होता था। मां माध्यम होती थी। छपरा में नाटक करता ही था। यहां कुछ मित्रों और शुभचिंतकों ने मुंबई जाने की सलाह दी। अस्सी का दशक था। छपरा से मुंबई चला आया और यहां इप्टा से जुड़ गया। यहां आने के बाद जो भी छपरा में सीखा था, वह शून्य हो गया। वहां मुझे नाटकों में लीड रोल मिलता था। यहां बैक स्टेज से शुरू हुई यात्रा। बैक स्टेज, क्राउड सीन और छोटे-छोटे रोल करता था। इन सब को करते हुए दुखी भी होता था, लेकिन कोई चारा नहीं था। एक खास बात यह थी कि मैं रिहर्सल पूरा देखता था। सारे पात्र को मैं खुद जीता था और कल्पना करता था कि इस रोल मैं करता तो कैसा करता? सारे करैक्टर मेरे जेहन में बस जाते थे। सबका संवाद भी याद हो जाता था। एक दिन नाटक का शो होना था। मुख्य कलाकार आया ही नहीं। मैंने निर्देशक से कहा, मैं इसे कर लूंगा। उन्हें विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उनके सामने कोई चारा नहीं था। डरते हुए उन्होंने कहा, जाओ ड्रेस पहनो। इसके बाद तो खूब तालियां बजीं। बैक स्टेज से मंच की यात्रा शुरू हुई। फिर तो वीर गति, सरफरोश, लगान आदि किया। इसके पूर्व नीरजा गुलेरी की चंद्रकांता में क्रूर सिंह का रोल किया। इस रोल में मैंने खूब मेहनत की और नौ रसों का अपने संवाद में उपयोग किया। पहले तो मेरा रोल इसमें 10-12 एपिसोड का था, लेकिन मेरा अभिनय देख यह बढ़ गया।

उन्होंने कहा कि आज जो फिल्में बन रही हैं, उसमें भारत कहां है? आज का सिनेमा अपनी जड़ों से कटा हुआ है। आज हम कॉपी पेस्ट कर रहे हैं। यह तभी बदलेगा, जब हम दबाव बनाएंगे और इसके लिए जमीन तैयार करनी पड़ेगी। जमीन स्कूल-कॉलेज से ही बनेगी।


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