अभिभावक बच्चों को हमेशा करें प्रोत्साहित
हम सभी प्रतियोगिता के दौर में हैं। खुद को आगे करने के लिए कई बातों से समझौता करते हैं और ये चीजें हमने अपने बच्चों पर भी थोपनी शुरू कर दी हैं। बच्चों को पढ़ाई और अन्य क्षेत्रों में आगे देखने की लालसा के चलते उन पर अधिक भार डाल रहे हैं। यही वजह है कि इतनी कम उम्र में बच्चे तनाव की चपेट में आ रहे हैं। उन्हें कई ऐसी बीमारियां हो रही हैं जो कि इस उम्र में नहीं होनी चाहिए।
जागरण संवाददाता, राची : हम सभी प्रतियोगिता के दौर में हैं। खुद को आगे करने के लिए कई बातों से समझौता करते हैं और ये चीजें हमने अपने बच्चों पर भी थोपनी शुरू कर दी हैं। बच्चों को पढ़ाई और अन्य क्षेत्रों में आगे देखने की लालसा के चलते उन पर अधिक भार डाल रहे हैं। यही वजह है कि इतनी कम उम्र में बच्चे तनाव की चपेट में आ रहे हैं। उन्हें कई ऐसी बीमारियां हो रही हैं जो कि इस उम्र में नहीं होनी चाहिए।
बस्ते के बोझ के साथ-साथ बच्चों के दिमाग पर स्ट्रेस इतना बढ़ गया है कि उनका मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित हो रहा है। निर्धारित लक्ष्य से पीछे रह जाने पर बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति आ रही है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों का मन बहुत कोमल होता है इन्हें आप जिस तरफ चाहें मोड़ सकते हैं, इसका ध्यान अभिभावकों को रखना होगा।
बच्चों में तनाव के कारण, क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
आजकल बच्चे बड़े पैमाने पर तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता बच्चों के तनाव की बड़ी वजह है। बच्चे आपस में ही इन सोशल साइट्स पर एकदूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में लगे रहते हैं। स्कूल में पढ़ाई का ज्यादा दबाव भी बच्चों को डिप्रेशन में डाल रहा है। सिलेबस पूरा न कर पाने के कारण बच्चे तनाव में आ जाते हैं। मा-बाप का दबाव भी बच्चों को तनाव में डालता है। बच्चों पर ज्यादा नंबर लाने का दबाव मा-बाप ही डालते हैं जिसके कारण बच्चा डिप्रेशन में आता है। कभी-कभी माता-पिता अपने सपनों के लिए भी बच्चों पर दबाव डालते हैं। अभिभावक यह सोचते हैं कि बच्चा उनके अधूरे सपनों को पूरा करेगा, जिसके कारण भी बच्चा डिप्रेशन में आता है। अगर बच्चा किसी प्रतियोगिता में फेल हो जाता है तो उस पर अनायास ही दबाव डाला जाता है, जिससे बच्चा तनाव में आ जाता है। जबकि यहा यह समझने की जरूरत है कि यह कोई जीवन का अंत नहीं बल्कि नए कल की शुरुआत है।
डॉ. ऐके नाग, मनोवैज्ञानिक शैक्षणिक दबाव छात्र के अच्छे प्रदर्शन के लिए बाधक है। प्रत्येक व्यक्ति अलग है, कुछ छात्र शैक्षणिक तनाव का अच्छी तरह से सामना कर लेते हैं, लेकिन कुछ छात्र ऐसा नहीं कर पाते, जिसका असर उनके स्वभाव पर पड़ रहा है। वे माता-पिता के साथ उग्र होने लगते हैं। ऐसे केस अब सामने आने लगे हैं। ऐसे में वो अत्यधिक या कम खाने लगते हैं या जंक फूड खाने लगते हैं। असमर्थता को लेकर उदास छात्र तनाव से ग्रसित होने के साथ ही पढ़ाई भी बीच में छोड़ देते हैं। बदतर मामलों में तनाव से प्रभावित छात्र आत्महत्या का विचार भी मन में लाने लगते हैं। आज अभिभावक और शिक्षक दोनों ही बच्चों को लेकर बहुत ज्यादा महत्वाकाक्षी हो गए हैं। स्कूल में अच्छे प्रदर्शन और पढ़ाई के तनाव के साथ-साथ घर में भी उन पर ऐसा ही दबाव रहता है। कई बार इस दबाव में बच्चे मानसिक तौर पर टूट जाते हैं। इसमें एक बड़ी वजह स्कूल और परिवार का दबाव भी है। अभिभावक इसका ध्यान रखें की अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से कभी नहीं करें, यह बच्चे के लिए बहुत ही कष्टकारी होता है।
सुभाष सोरेन, निदेशक, रिनपास