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चारा घोटाले में बोरी में नोट भरकर भूसे में छिपाया

जांच टीम चाईबासा, जमशेदपुर, गुमला, भागलपुर, रांची, दुमका, गुमला आदि जिलों में गई तो भारी गोलमाल का पर्दाफाश हुआ।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 09 Feb 2018 02:35 PM (IST)Updated: Fri, 09 Feb 2018 04:31 PM (IST)
चारा घोटाले में बोरी में नोट भरकर भूसे में छिपाया
चारा घोटाले में बोरी में नोट भरकर भूसे में छिपाया

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v>रांची, जागरण संवाददाता। चारा घोटाला मामले की सुनवाई के क्रम में गुरुवार को पूर्व मुख्य सचिव सह वित्त विभाग के आयुक्त व सचिव रहे वीएस दुबे की गवाही हुई। उन्होंने बताया कि पशुपालन विभाग के अतिरिक्त खर्च की जानकारी लेने जांच टीम को विभिन्न जिलों में भेजा गया तो पता चला की काफी हेराफेरी की गई है। टीम को जांच कर बताने का निर्देश दिया गया था कि किस यूनिट में कितनी राशि खर्च हुई। इससे संबंधित वाउचर को भी सीज करने को कहा गया था।
 
जांच टीम चाईबासा, जमशेदपुर, गुमला, भागलपुर, रांची, दुमका, गुमला आदि जिलों में गई तो भारी गोलमाल का पर्दाफाश हुआ। टीम के चाईबासा पहुंचने पर भगदड़ मच गई थी। एक व्यक्ति ब्रीफकेस छोड़कर भाग रहा था। उससे 30 लाख रुपये जब्त हुए थे। पशुपालन विभाग की अलमीरा से सोना-चांदी व नकद राशि मिल रही थी। भूसे से बोरी में भरे नोट मिले थे।
 
डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित चारा घोटाला मामले में वीएस दुबे सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश प्रदीप कुमार की अदालत में गवाही दे रहे थे। दुबे की गवाही इसके पूर्व चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित चारा घोटाला कांड संख्या आरसी 20ए/96 में हुई थी। उस गवाही को डोरंडा मामले में एडॉप्ट किया गया, लेकिन आरोपी के अधिवक्ताओं की ओर से न्यायालय में जिरह किए जाने के दौरान वे बोल रहे थे। दुबे ने चारा घोटाले की पूरी जानकारी न्यायालय को दी।
 
सीबीआइ के वरीय विशेष लोक अभियोजक बीएमपी सिंह ने बताया कि वीएस दुबे फरवरी 2000 से 13 नवंबर 2000 तक मुख्य सचिव थे। वहीं 27 जुलाई 1995 से 27 जून 1998 तक वित्त विभाग में आयुक्त व सचिव रहे थे। दुबे को 22 जनवरी 1996 में पशुपालन घोटाला के विषय में जानकारी तब मिली जब महालेखागार के मासिक सिविल एकाउंट वित्त विभाग में आने पर और उसकी स्क्रूटनी की गई।
 
1995-96 के लिए पशुपालन विभाग का बजट करीब 72 करोड़ रुपये था। उसके विरुद्ध नवंबर  1995 तक 117 करोड़ रुपये खर्च हो चुके थे, जबकि अक्टूबर 1995 तक का खर्च सिर्फ 55 करोड़ रुपये था। खर्च को देखते हुए 19 जनवरी 1996 को सभी जिलों के दंडाधिकारियों को फैक्स भिजवाया गया। 
 
 

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