Migrant Workers Back Home: मजदूरों के चेहरों पर बिखरी मुस्कान, बादलों में छोड़ आए दर्द; चार्टर्ड प्लेन से पहुंचे रांची
Migrant Workers fly back to Ranchi from Mumbai मुंबई में फंसे 174 मजदूरों के रहनुमा बने लॉ एलुमिनी लॉ प्रोफेशनल ने आपस में चंदा कर जमा किये 13 लाख से विमान का किराया चुकाया।
रांची, जासं। गुरुवार सुबह रांची हवाई अड्डे का नजारा खास था। यहां एयर एशिया के ए 320 विमान से मुंबई और पुणे में रहनेवाले झारखंड के 174 प्रवासी मजदूर उतरे थे। अपने खून-पसीने से देश के विभिन्न उद्योगों को खड़ा करने वाले और देश गढऩे वाले इन मजदूरों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह कभी हवाई यात्रा का आनंद उठा सकेंगे। उनका यह सपना पूरा हुआ नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु के एलुमिनी छात्रों की बदौलत।
नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु के एलुमिनी छात्रों ने लॉकडाउन और कोरोना संकट के दौर में घर से सैंकड़ों किलोमीटर दूर फंसे होने के इनके दर्द को महसूस किया था। झारखंड की धरती पर कदम रखते ही ये मजदूर खुशी से झूम उठे। हवाई सैर करने से ज्यादा खुशी इन्हें घर पहुंचने की थी। कई की आंखें छलक आईं तो कई ने एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही अपने इलाके की माटी को छूकर प्रणाम किया। हवाई यात्रा में बादलों के बीच से गुजरते हुए इन मजदूरों के लिए यह क्षण रोमांच भरा था। अपना सारा दर्द ये वहीं बादलों में छोड़ आए थे।
मुंबई से रांची आने वाले 174 मजदूरों में महिलाएं व बच्चे भी शामिल थे। यहां पहुंचकर इन सबों ने नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु के उन एलुमिनी छात्रों को हृदय से धन्यवाद दिया, जिन्होंने इन्हें भेजने के लिए पूरा प्लेन ही अपने खर्च पर किराये में बुक करा दिया था। पूरे चार्टर्ड प्लेन के किराये के तौर पर एनएलएस के एलुमिनी ने 11 लाख रुपये की रकम एयर एशिया को अदा की थी। गुरुवार सुबह 8.30 बजे एयरपोर्ट के रनवे पर चार्टर्ड विमान की लैंडिंग हुई। कुछ देर बाद एक-एक कर प्रवासी मजदूर टर्मिनल के अंदर से फेसशील्ड पहने हुए बाहर निकले। यहां 180 मजदूरों को आना था, लेकिन बीमार होने के कारण छह लोग यात्रा नहीं कर सके।
ऐसे बढ़ा नेकी का कारवां
झारखंड के लोगों को उनके घर पहुंचाने की पृष्ठभूमि आइआइटी बॉम्बे परिसर से तैयार हुई। यहां फंसे 45 लोगों को सबसे पहले राज्य भेजने का फैसला किया गया। आइआइटी में रहीं नेशनल लॉ स्कूल की एक पूर्व छात्रा प्रियंका शर्मा ने इसके लिए अपने दोस्तों से मदद मांगी। लॉ कॉलेज के एलुमिनी छात्रों में कई दिल्ली, मुंबई समेत अन्य शहरों में जाने-माने वकील हैैं, तो कई बड़ी-बड़ी कंपनियों में लीगल एडवाइजर। इन सबने लॉकडाउन के दौरान गरीबों, जरूरतमंदों की अलग-अलग तरीके से भरसक मदद की।
नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु की 2000 बैच की छात्रा रह चुकी एडवोकेट श्याल त्रेहान ने जागरण को फोन पर बताया कि प्रवासियों के बाहर फंसे होने और घर पहुंचने के लिए उनके भूखे-प्यासे नंगे पांव पूरे परिवार के साथ मीलों पैदल चलने की खबरों से हम सबों का मन व्यथित था। ऐसे में प्रवासियों को घर पहुंचाने का विचार मन में आया। इस काम में प्रियंका रमन, एस मुखर्जी, शुवा मंडल समेत एनएलएस के अलग-अलग बैच के 80 एलुमिनी ने बढ़-चढ़कर उत्साह के साथ अपना योगदान दिया।
हमें जानकारी मिली थी कि मुंबई, पुणे और महाराष्ट्र के अन्य शहरों में बड़ी संख्या में बिहार-झारखंड के मजदूरों के फंसे हैैं। ऐसे में हमने शुरुआत वहीं से करने का निर्णय लिया। विभिन्न संस्थाओं की मदद से फ्लाइट में आने वाले प्रवासी मजदूरों का डाटा तैयार किया गया। इसका वेरिफिकेशन भी किया गया। कई लोगों को अलग-अलग इलाकों से निकालकर मुंबई एयरपोर्ट लाने तक की व्यवस्था की गई।
पहले बस से भेजने की थी योजना
त्रेहान ने बताया कि पहले हमलोगों ने प्रवासियों को बस से भेजने की योजना बनाई थी, लेकिन 180 मजदूरों को भेजने में ज्यादा बसों की जरूरत थी। हमने आकलन किया कि बसों से भेजने और प्लेन से भेजने का खर्च बराबर ही है, तो क्यों न एकसाथ सभी मजदूरों को प्लेन से भेज दिया। हमलोगों की टीम में शुवा मंडल टाटा ग्रुप के लीगल हेड के बतौर काम करते हैैं।
उन्होंने फ्लाइट कंपनी एयर एशिया से संपर्क साधा और प्रवासियों को लेकर जाने के लिए किराये पर प्लेन उपलब्ध हुआ। प्लेन किराये के तौर पर हमें 11 लाख रुपये चुकाने थे। एलुमिनी एसोसिएशन के हमसभी 80 एलुमनी ने आपस में पैसे इकट्ठा किये तो साढ़े तेरह लाख जमा हो गए। इससे प्लेन के किराये के अलावा उनके लिए और भी कई इंतजाम हो गए।