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झारखंड के इस छोटे से गांव से अब तक 13 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी निकलीं, हॉकी टीम की ये खिलाड़ी भी इसी माटी से

खूंटी की भूमि हॉकी के लिए हमेशा से उर्वरा रही है। सबसे पहले वर्ष 1928 में ओलंपिक में स्वर्ण दिलाकर मारांग गोमके जयपास सिंह मुंडा ने खूंटी का नाम रौशन किया था। जिले के सुदूरवर्ती टकरा गांव निवासी जयपाल सिंह ने हॉकी की बुनियाद मजबूती के साथ रखा था।

By Vikram GiriEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 02:02 PM (IST)Updated: Fri, 06 Aug 2021 06:27 AM (IST)
झारखंड के इस छोटे से गांव से अब तक 13 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी निकलीं, हॉकी टीम की ये खिलाड़ी भी इसी माटी से
झारखंड के इस छोटे से गांव से अब तक 13 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी निकलीं। जागरण

खूंटी [दिलीप कुमार] । खूंटी की भूमि हॉकी के लिए हमेशा से उर्वरा रही है। सबसे पहले वर्ष 1928 में ओलंपिक में स्वर्ण दिलाकर मारांग गोमके जयपास सिंह मुंडा ने खूंटी का नाम रौशन किया था। जिले के सुदूरवर्ती टकरा गांव निवासी जयपाल सिंह ने जिले में हॉकी की बुनियाद मजबूती के साथ रखा था। इसके बाद गोपाल भेंगरा भी ओलंपिक खेलकर जिले का नाम देश व दुनिया में रौशन किया था। लेकिन निक्की प्रधान इकलौती लड़की है जिन्होंने दो बार ओलंपिक खेलने का कीर्तिमान स्थापित किया है।

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जिला ही नहीं बल्कि प्रदेश की वह पहली लड़की है जो ओलंपिक खेल रही है। निक्की एक ऐसे गांव से आती है, जहां खेलने के लिए मैदान भी नहीं है। बुलंद हौसला और कड़ी मेहनत के बदौलत निक्की आज इस मुकाम तक पहुंची है। निक्की के इस मुकसम तक पहुंचने में सबसे अधिक सार्थक भूमिका निभाई है उनके प्रारंभिक कोच व शिक्षक दशरथ महतो ने। दशरथ महतो के सीखाए गुर के कारण ही निक्की का चयन जुनियर साई सेंटर, बरियातु, रांची में हुआ था। जहां निक्की ने सपनों की उड़ान भरना शुरू किया। दशरथ महतो ने निक्की ही नहीं बल्कि उनी दो बहनों को भी राष्ट्रीय स्तर का हॉकी खिलाड़ी बनाने में सार्थक योगदान दिया है।

बगैर मैदान के 13 खिलाड़ियों ने बनायी पहचान

खूंटी जिले के मुरहू प्रखंड अंतर्गत आने वाले छोटा सा गांव हेसल हॉकी के लिए काफी उर्वरा है। गांव में खेलने के लिए एक अदद मैदान तक नहीं है और गांव के 13 लड़कियां हॉकी खेल के माध्यम से देश व दुनिया में अपनी अगल पहचान बनाया है। छोटे से गांव के 13 लड़कियों ने हॉकी के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता खेलकर अपनी अगल पहचान बनाई है। फिलहाल इनमें से 12 लड़कियां अलग-अलग क्षेत्र में नौकरी कर रही है। हेसल के निक्की प्रधान ओलंपिक खेलने वाली पहली लड़की है, इसके अलावा पुष्पा प्रधान अंतरराष्ट्रीय और शशि प्रधान, गांगी मुंडू, रश्मि मुुडू, शीलवंती मिंजूर, एतवारी मुंडू, बिरसी मुंडू, रुक्मनी डोडराय, मुक्ता मुंडू, आशा कुमारी, कांति प्रधान व रेशमा मिंजूर राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी हैं। इसके अलावा गांव में राज्य स्तर व उसके नीचे स्तर के कई खिलाड़ी है। इनमें शशि प्रधान, कांति प्रधान व निक्की प्रधान तीनों सगी बहने है और पुष्पा प्रधान चचेरी बहन है। इन खिलाड़ियों में सभी सरकार के अलग-अलग विभागों में नौकरी कर रही हैं।

खूंटी जिले में नहीं है लड़कियों के आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था

भले ही खूंटी जिला हॉकी के लिए उर्वरा रही है, लेकिन सरकार की ओर से जिले के प्रतिभा को निखारने के लिए कोई खास इंतजाम नहीं किया गया है। मारांग गोमके के जिले में महिला हॉकी खिलाड़ियों के लिए आवासीय प्रशिक्षण की भी सुविधा नहीं है। यहां सिर्फ लड़कों के लिए आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था किया गया है। महिला हॉकी के लिए जिले में डे वोडिंग की सुविधा है। जहां लड़कों का टीम भी प्रशक्षण लेता है। आवासीय प्रशिक्षण की सुविधा नहीं रहने के कारण जिले के ग्रामांचलों के प्रतिभावान खिलाड़ियों को अपने हुनर को निखारने का मौका नहीं मिल रहा है।

मैदान की भी किल्लत

जिला मुख्यालय स्थित एसएस प्लस टू स्कूल के मैदान में ही हॉकी खिलाड़ी प्रशिक्षण लेते हैं। यहां सबसे बड़ी मुसीबत तब खड़ी हो जाती है जब आवासीय प्रशिक्षण ले रहे लड़को का टीम, डे वोडिंग के लड़को व लड़कियों के टीम को प्रशिक्षण के दौरान खेलना पड़ता है। एक ही मैदान में तीन टीमों का खेलना संभव ही नहीं रहता है। ऐसे में किसी भी टीम को समुचित रूप से खुलकर खेलने नहीं मिलता है।


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