'मैं' नहीं 'हम' की रखें भाव, होगा सर्वागीण विकास
रामगढ़ : विद्यालय के सर्वांगीण विकास, साफ-सफाई व सुंदर बनाने के लिए 'मैं' नहीं 'हम' की जरूरत है।
रामगढ़ : विद्यालय के सर्वांगीण विकास, साफ-सफाई व सुंदर बनाने के लिए 'मैं' नहीं 'हम' की जरूरत है। विद्यालय हो या गांव विकास करने के लिए मैं नहीं हम की आवश्यकता है। हम सब का तात्पर्य सामूहिकता से होती है। इसमें मैं नहीं सिर्फ हम रहता है। इस विचार और सोच में सभी लोग शामिल होने लगे तो हमारा विद्यालय , हमारा गांव , हमारा राज्य, हमारा देश, विकसित होने लगता है। मैं अहंकार को दर्शाता है। परंतु हम लोगों की दूरियां मिटा कर ,नजदीकीयां बढ़ाता है । हम एकजुटता का प्रतीक है । समाज कोई भी व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में विकास के शिखर तक पहुंचा है तो व्यक्ति निश्चित ही, मैं त्याग कर हम को महत्व देना होगा। हम से हमारी कार्य क्षमता बढ़ती है। कठिन से कठिन कार्य भी हम आसानी से कर लेते हैं। टीम वर्क में एक दूसरे को भरोसा एवं आदर करना बहुत ही जरूरी है। इससे टीम मजबूत होती है और प्रभावशाली रूप से समस्या का समाधान होता है। हम एक दूसरे के लिए बने हैं जो करें एक साथ करें कोई भी लक्ष्य अकेला प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक दूसरे की मदद की जरूरत होती है। विद्यालय में भी हम की भावना से बच्चों में संस्कार विकसित किया जा रहा है । अगर हम की भावना व्यक्तियों में हो तो निश्चित ही परिवर्तन होगा और एक दूसरे को आगे बढ़ाने का भी प्रयास करेगा ।
आज विद्यालय में हम को विकसित किया जा रहा है। इसके लिए विद्यालय में बच्चों के बीच जन्मदिन, रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटक, स्वच्छता अभियान ,पौधारोपण, आदि कई तरह के कार्यक्रम कर एक दूसरे को मदद करने की ललक बच्चों में पैदा हो रही है । बच्चों को बचपन से ही या भावना विकसित करने की आवश्यकता है अगर ऐसा होता है तो निश्चित ही वह सफल इंसान बनेगा। टीम वर्क से सभी को सीखने का मौका मिलता है। टीम सदस्य एक दूसरे को विचारों का समर्थन करेंगे तो सभी कार्य सफल होंगे। एकजुट होकर कार्य करने से किसी भी समस्या का समाधान कर अपना लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। आज छोटा परिवार में सदस्यों की संख्या चार से पांच तक रह कर गई है। पहले एक संयुक्त परिवार हुआ करता था। इसमें दादा-दादी, चाचा-चाची, माता-पिता सभी हुआ करते थे । परंतु अब छोटा परिवार में माता-पिता की व्यस्त ¨जदगी के कारण बच्चे एक दायरे मे आकर सिमट गए हैं। बच्चे आगे के बारे में सोच नहीं पा रहे हैं। पहले मैं और हमारा परिवार, हमारा समाज, हुआ करता था। अब के बच्चों में मैं और हमारा मोबाइल, हमारा लैपटॉप तक सिमट गए हैं। बच्चे फेसबुक व वाट्सएप में पूरा समय दिया करता है ।
बच्चों में मैं इस तरह हावी है कि वह कुछ कर नहीं पा रहा है। किसी बच्चे को तालाब में डूबने की वीडियो वायरल हो जाता है, परंतु बचाने का प्रयास तक नहीं किया जाता। मैं ही जिसकी वजह से किसी की मुसीबत आने पर वह अकेला खड़ा दिखाई देता है। मदद के लिए ना ही रिश्तेदार होते हैं,और ना ही पड़ोसी ,कामकाज की ¨जदगी में रिश्तेदारों से सीधी संवाद कम होते जा रहा है । एक दूसरे के साथ मिल कर रहना मदद करना कमजोरी नहीं बल्कि समझदारी है।
बच्चों में संस्कारों की बुनियाद उसी तरह जरूरी है जैसे मकान के लिए मजबूत बुनियाद, बुनियाद कमजोर तो मकान कमजोर उसी तरह संस्कारहीन व्यक्ति समाज में ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाता। विद्यालय में अब बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ मानवता की पाठ, नैतिकता, व्यवहारिक ज्ञान के लिए शिक्षा दी जा रही है। बच्चे मैं की भावना त्याग कर हम की भावना को विकसित करें वर्तमान समय में बच्चों में प्रेम और भाईचारे की भावना संचार करने की जरूरत है।
विद्यालय में कई तरह की गतिविधियों के माध्यम से बच्चों मे एक-दूसरे के सहयोग करने की भावना विकसित हो रही है। सहयोगात्मक रवैया से मन में सकारात्मक विचार आते हैं और कुछ बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है।
- प्रदीप रजक
-मॉडल उत्क्रमित उच्च विद्यालय, सिउर, रामगढ़।