Move to Jagran APP

जीवटता के आगे दुख के पहाड़ ने भी झुकाया शीश, 118 महिलाओं को बनाया स्वावलंबी

उनके मजबूत इरादों ने जिंदगी को एक नई दिशा दी। हाथों में हुनर था, जिसे उन्होंने जिंदगी की जंग का हथियार बनाया। दुखों को पीछे छोड़ कारोबार शुरू किया।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 26 Aug 2018 11:24 AM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 02:45 PM (IST)
जीवटता के आगे दुख के पहाड़ ने भी झुकाया शीश, 118 महिलाओं को बनाया स्वावलंबी
जीवटता के आगे दुख के पहाड़ ने भी झुकाया शीश, 118 महिलाओं को बनाया स्वावलंबी

रामगढ़, मनोज कुमार सिंह। अंजली पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। पति के निधन के बाद, एक-एक कर दोनों बेटे भी चल बसे थे। उनको समझ नहीं आ रहा था कि अब जिएं तो किसके लिए और क्यों? न किसी से बोलना, न ही किसी से मिलना-जुलना। किसी से बात भी करतीं तो फफक पड़तीं। लेकिन, उनके मजबूत इरादों ने जिंदगी को एक नई दिशा दी। हाथों में हुनर था, जिसे उन्होंने जिंदगी की जंग का हथियार बनाया। दुखों को पीछे छोड़ कारोबार शुरू किया। आज हालात यह हैं कि वह सालाना 25 लाख रुपये का कारोबार करती हैं। 118 महिलाओं को प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बना चुकी हैं। इसके अलावा 25 महिलाओं व युवतियों को प्रशिक्षण भी दे रही हैं। आखिर उनकी जीवटता के आगे दुखों का पहाड़ भी झुक गया।

loksabha election banner

झारखंड में रामगढ़ जिले के पतरातू प्रखंड निवासी अंजली हलदर की शादी के कुछ साल बाद ही पति की मौत हो गई। जीवन में आई इस विपदा ने उनको पूरी तरह से तोड़ दिया। किसी तरह उन्होंने खुद को संभाला और इस भयावह स्थित से निकलकर अपने घर की गुजर बसर के लिए आसपास के क्षेत्रों मे घूम-घूमकर साड़ी बेचना शुरू किया। जिंदगी थोड़ी संभली ही थी कि जवान बेटा कैंसर की चपेट में आ गया। जो थोड़ा-बहुत कमाया था, सब इलाज पर खर्च हो गया, लेकिन बेटे को बचा न सकीं। बुरी तरह टूट गईं, लेकिन छोटे बेटे के लिए मेहनत करती रहीं। इसी दौरान अंजली ने बिना किसी सरकारी सहायता के अचार, पापड़ बनाने का काम शुरू किया। आसपास की अन्य महिलाएं भी इस रोजगार से जुड़ती गईं।

अंजली के प्रशिक्षण से दूसरी महिलाएं भी स्वावलंबी बनने लगीं। धीरे-धीरे अंजली का कारोबार चल निकला। जब लग रहा था कि अंजली की जिंदगी में थोड़ी खुशियां आ गईं तभी एक और विपदा ने बज्रपात किया। छोटा बेटा राजू भी चल बसा। राजू मध्यप्रदेश स्थित एक कंपनी में नौकरी करने गया था, जहां अचानक बीमार पड़ा। उसका शुगर लेवल काफी बढ़ गया था, ऐसे में इलाज के बावजूद डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए। अंजली रोईं और फिर से एक शून्य ने उन्हें घेर लिया, लेकिन इतना दुख झेल चुकी थीं कि इस बार फिर हिम्मत जुटाई। गम भूलकर फिर से अपने कारोबार को संभाला। वह कहती हैं, अब मेरे साथ जुड़ी महिलाएं ही मेरा परिवार हैं। अब तो बस उनकी किस्मत संवारनी है।

सीएम व राज्यपाल ने सराहा

अंजली के अचार व पापड़ पूरे राज्य में मशहूर हैं। राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक उनके उद्योग की प्रशंसा कर चुके हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा था कि कोई अंजली के हौसले से प्रेरणा ले। उन्होंने कैसे न सिर्फ खुद का कारोबार खड़ा किया, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे रहीं हैं। उन्हें स्वावलंबी बना रही हैं। कई उद्योग मेला में अंजली को सम्मानित भी किया जा चुका है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.