अब जिदगी की गाड़ी खींचने की चुनौती मुंह बाएं खड़ी हो गई
इतिहास साक्षी रहा हैं महामारियां जब भी आई हैं बड़ी मुश्किल।
दिलीप कुमार सिंह, रामगढ़ : इतिहास साक्षी रहा हैं, महामारियां जब भी आई हैं, बड़ी मुश्किलें अपने साथ लाई हैं। इन चुनौतियों के बीच इंसानी जीवन को और अधिक व्यवस्थित करने का काम किया है। इंसान के आचार-विचार और कार्य व्यवहार से लेकर हर क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है। महामारी के बाद जीवन को आगे बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती के रूप में इंसान के सामने मुंह बाएं खड़ी रहती है। ऐसे में जो महामारी के काल में उठ खड़े होकर आगे बढ़ना चाहते हैं उन्हें जिदगी की गाड़ी खींचने की चुनौती कई संघर्ष के रास्ते पर चलने को मजबूर कर देता है। कोरोना वायरस संक्रमण काल में आई परेशानी के बाद अपने परिवार को बेहतर जिदगी देने की इच्छा लेकर बाहर राज्य कमाने के लिए गए युवक, मजदूर आदि अपने घरों व गांवों के लिए लौट पड़े है। उनके समक्ष जीवन को आगे बढ़ाने की चुनौती है। बाहर से लौटे मजदूर अपने हुनर में कुशल है। उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का पैसा बाहर प्रदेश में मिलता था। अब उन्हें अपना हुनर अपने गांव व राज्य में ही दिखाना होगा। क्योंकि बाहर रहकर घरों को पैसा भेजा करते थे। ताकि परिवार सुरक्षित तरीके से रह सके। सरकार जो मनरेगा योजना का हवाला दे रही हैं वह उनके गुजर-बसर के लिए काफी नहीं है। क्योंकि मनरेगा से उनका काम नहीं चलेगा। ज्यादा पैसे कमाने होंगे। इसके बाद भी अब बाहर तो नहीं जाएंगे। जान बच गई यही काफी है। अब अपने घरों में ही रहकर बेहतर करने का प्रयास करेंगे।
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हैदराबाद के संगारेड्डी जिला के आईआईटी में इलेक्ट्रिक मैकेनिक का काम करते थे। वहां से लौटने के बाद क्वारंटाइन में रह रहे है। इसके बाद जिदंगी से दो-दो हाथ करना है। हैदराबाद में इलेक्ट्रिक के कार्य में कुशल होने के कारण कंपनी ने वहां काम दिया था। संक्रमण काल में कंपनी ने सीधे धोखा दे दिया। किसी प्रकार की कोई राशि नहीं दी। इससे समस्याएं और बढ़ गई। कंपनी ने संपर्क कर पूरी स्थिति साफ होने के बाद आने को कहा है। इससे इतर अब बाहर जाना नही है। क्योंकि अब अपने हुनर को अपने गांव व राज्य में ही तरासेंगे। अपने गांव के युवाओं को इससे जोड़ेंगे। अपने परिवार के अब रहकर ही जीवन आगे बढ़ाएंगे।
-किशोर बेदिया
कटेलियाबेड़ा, बरकाकाना।
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कोरोना वायरस संक्रमण ने जिदगी जीना ही सिखा दिया है। जान बचाकर लौट आया हूं यह उपर वाले का आशीर्वाद है। अब बाहर नहीं जाना है। अपने कुशल हुनर को अपने गांव और राज्य में ही रहकर तरासेंगे। हैदराबाद में रहने के बाद जिदगी क्या होती हैं यह बहुत ही नजदीक से जाना है। अपने घर में रहकर खेती-बाड़ी भी करेंगे। अपने भाईयों के साथ जो भूमि हैं उस पर पैदावार कर और बेहतर जिदगी बनाने की कोशिश करेंगे। हां बाहर प्रदेश में पैसे थोड़ा ज्यादा मिलते थे। इससे इतर अपनों का साथ नहीं होता था। अब यहीं रहेंगे, यहीं काम करेंगे, यहीं कमाएंगे और मस्ती के साथ रहेंगे। परिवार जहां होता हैं वहां विवाद भी होता हैं और प्यार भी होता है।
-बलराम बेदिया
कटेलियाबेड़ा, बरकाकाना।
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कहते हैं वार्ड सदस्य
यह एक बड़ी सम्सया है। भविष्य पर ही निर्भर करेगा की क्या होगा। इतना अवश्य है कि समस्याएं बढ़ेगी। वर्तमान में स्थिति सामान्य है। भविष्य में क्या होगा, क्या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएंगा। वर्तमान में ऐसी कोई विवाद या समस्या नहीं है। अब तो विवेक से कार्य करना होगा। क्योंकि सभी को अपना जीवन जीने का अधिकार है।
-प्रभु करमाली
छावनी परिषद सदस्य, वार्ड सात