रोज आठ किमी दूर खाली पेट मैदान पहुंचती थी मधुमिता
दिलीप कुमार ¨सह, रामगढ़ : तमाम झंझावतों को पार कर अपनी ढृंढ इच्छाशक्ति को मन में लेकर आगे बढ़ते हुए मुधमिता ने राज्य व जिला के लोगों को गौरवांवित होने का अवसर दिया है। कठिन मेहनत के सहारे बैतरनी पार करने वाली मधुमिता ने देश को गोल्ड देने की उम्मीद जगा दी है। आठ किलो मीटर की दूरी तय कर वह खेल मैदान में पहुंचती थी। स्कूल से आने के बाद सीधे खेल मैदान के लिए दौड़ लगाने लगती थी।
दिलीप कुमार ¨सह, रामगढ़ : तमाम झंझावतों को पार कर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से आगे बढ़ मुधमिता ने पूरे देश को गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। मधुमिता के इस सफलता से जिले के लोगों में हर्ष व्याप्त है। कठिन मेहनत के सहारे बैतरनी पार करने वाली मधुमिता ने देश को गोल्ड देने की उम्मीद जगा दी है। मधुमिता के पिता वेस्ट बोकारो घाटो के मुकुंदबेडा निवासी टिस्को के सीनियर डोजर ऑपरेटर जितेंद्र नारायण ¨सह बताते हैं उसमें खेल के प्रति शुरू से गजब का जुनून था। वह रोज आठ किलोमीटर की दूरी तय कर खेल मैदान में पहुंचती थी। न खाने की सुध रहती थी न कुछ और, स्कूल से आने के बाद खाली पेट सीधे खेल मैदान के लिए दौड़ पड़ती थी। उसकी इसी लालसा को देखकर घरवालों ने भी उसके साथ दो कदम चलने का मन बनाया। आज उसक इसी लगन और समर्पण ने अंतर्राष्ट्रीय फलक पर जिला व राज्य का नाम रोशन किया है। जितेंद्र नारायण ¨सह बताते हैं कि वह देश के लिए कुछ करना चाहती थी। आज उसके इस उपलब्धी पर सीना चौड़ा हो गया है। सभी लोग उससे देश के लिए गोल्ड जितने की उम्मीद लगाकर दुआ कर रहे है। मालूम हो कि जकार्ता में चल रहे एशियन गेम में रविवार को देश की उम्मीदों को ¨जदा रखते हुए मधुमिता ने प्रतिद्वंदी चाइनिज ताइपे को 222 के मुकाबले 225 अंक से सेमीफाइनल में पराजित करते हुए सेमीफाइनल में अपनी जगह सुनिश्चित कर ली है। मधुमिता की मां सुमन देवी पूर्णत: गृहणी है। बड़े भाई चंद्रशेखर ¨सह रेलवे में नौकरी करते है। मधुमिता की तीन बहने अनुपमा ¨सह, नेहा ¨सह व शालीनी ¨सह संयुक्त परिवार का हिस्सा हैं। उसे परिवार का साथ हर कठिन से कठिन मोड़ पर साथ मिला। इससे उसकी इच्छाशक्ति और मजबूत होती चली गई। मधुमिता सिल्ली कॉलेज से बीए की फाइनल इयर की पढ़ाई पूरी कर रही है। मधुमिता को बचपन से ही खेल से लगाव रहा है। श्रमिक विद्या निकेतन से प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही प्रशिक्षकों शिशिर महतो व प्रकाश राम की नजर उस पर पड़ी। मधु के शारीरिक ढ़ांचा को देख उन्हें भविष्य की उम्मीद दिखी, प्रशिक्षकों ने उसका चयन किया। घर से चार किलो मीटर पैदल आना और जाना नित्य रोज का काम बन गया। उसे चीरा टूंगरी मैदान में प्रशिक्षण दिया जाने लगा। वहां से वह अपने पॉकेट मनी से अपनी उम्मीद को ¨जदा रखते हुए देश के लिए सपना संजोने लगी। बाद में बिरसा मुंडा आर्चरी अकादमी सिल्ली में आर्चरी सेंटर का स्थापना होने के बाद उसे वहां शिफ्ट कर दिया गया। वहां पर मधुमिता के प्रशिक्षकों ने उसे तरासने का काम शुरू कर दिया। पढ़ाई के साथ खेल का प्रेशर उसके बाद भी उसकी लगन देखने लायक थी। सेंटर में वह आगे बढ़ते गई। उसके बाद वह फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखी। उसकी मेहनत को देखते हुए पूर्व उपमुख्य मंत्री सुदेश महतो ने भी उसकी पीठ को थपथपाते हुए आगे बढ़ने को प्रेरित किया।