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रंग लाई डाक बाबू की पहल, हरियाली संदेश से 283 हेक्टेयर में उगा जंगल

रंग लाई शिवनारायण बेदिया की पहल, कभी अकेले निकले थे अभियान में, वन समिति बना लोगों को जंगल बनाने के लिए करते हैं जागरूक

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 02 May 2018 08:53 AM (IST)Updated: Wed, 02 May 2018 04:33 PM (IST)
रंग लाई डाक बाबू की पहल, हरियाली संदेश से 283 हेक्टेयर में उगा जंगल
रंग लाई डाक बाबू की पहल, हरियाली संदेश से 283 हेक्टेयर में उगा जंगल

रामगढ़ [मनोज तिवारी]। झारखंड के रामगढ़ जिले में गिद्दी पोस्ट के डाकिया शिवनारायण बेदिया डाक के साथ हरियाली का संदेश लेकर आता है। जंगल और पेड़ पौधों के प्रति उसके लगाव का नतीजा है कि उसके गांव मिश्राइनमोढ़ा व आसपास के 283 हेक्टेयर जमीन पर पहाड़ वाले बंजर इलाके पेड़-पौधों से लहलहा रहे हैं। ढाई दशक की मेहनत का फल है। यहां सखुआ, सीधा, केंद, पीयर, पेपरोट, धवई, समसीहार आदि के पौधे पेड़ की शक्ल ले चुके हैं। वे घने हो गए हैं।

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बेदिया ने बताया कि 1990 में रेलीगढ़ा डाकघर में डाक प्यून की नौकरी मिली। काम के सिलसिले में घूमता तो पेड़-पौधों का अभाव खटकता था। मिश्राइनमोढ़ा के जंगलों में पनपे पुटूस की झाड़ियों को लोग चूल्हा जलाने के लिए इस्तेमाल करते थे। रही सही हरियाली को गुम होते देख इसे बढ़ाने की ठानी और यहीं से हरियाली के संदेशे का सिलसिला शुरू हो गया। बेदिया ने जंगल बढ़ाने की मुहिम को 1995 में अभियान की तरह शुरू करने का फैसला किया।

सुबह चार बजे से जंगलों में जाकर 10 बजे तक भूखे प्यासे, पहरेदार की तरह खड़े रहते। काम से लौटने के बाद शाम से देर तक उनका यही सिलसिला जारी रहता। जो कोई पेड़-पौधों को काटता उसे मना करते। कई बार पेड़ काटने वालों से उनकी नोकझोंक भी हुई, मगर हारे नहीं। अकेले आदमी के जंगल बढ़ाने के जुनून को देख गांव के रामदयाल बेदिया, माघे मुंडा, भीम प्रसाद गुप्ता, हकीम अंसारी, सहबान अंसारी, जहुर अंसारी, शहादत अंसारी व हसीब खान (अब स्वर्गीय) भी साथ हो लिए।

अभियान को विस्तार देने के लिए चानो, रिकवा, गरसुल्ला और कुरकुट्टा के ग्रामीणों को भी साथ लिया, उन्हें जागरूक किया। इस दौरान 2006-07 में वन समिति का गठन किया। इस बीच उनका रामगढ़, फिर गिद्दी डाकघर में तबादला हो गया, मगर उनका अभियान बढ़ता गया। जंगल को बचाने व बढ़ाने के लिए वन समिति से महिलाओं को भी जोड़ा। आज भी ज्यों ही समय मिलता है, वन समिति के सदस्यों से जंगल पर चर्चा शुरू हो जाती है।

जंगल में जहां पेड़ सूख जाते हैं वहां पौधे लगाकर हरियाली बढ़ाने में जुट जाते हैं। शिवनारायण बेदिया का कहना है कि मिश्राइनमोढ़ा के बड़की टूटकी पहाड़, जुनरागढ़ा पहाड़, लुकईया पहाड़, पहाड़दसवा पहाड़, महुआकोचा पहाड़, मिठहा पहाड़, सलइयाधोरना पहाड़ व लकड़ाही पहाड़ के इलाके में पुटूस की झाड़ियां हुआ करती थीं। आज यहां करीब 283 हेक्टयर जमीन में पसरा हुए घना जंगल देखकर दिल हरा हो जाता है। यह मेरे अकेले के बूते का नहीं था। लोगों का सहयोग मिला और कारवां बढ़ता गया।  


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