Lok Sabha Polls 2019: जब पलामू के चार लाल एक साथ पहुंचे थे संसद
Lok Sabha Polls 2019. आजादी से लेकर अबतक पलामू पिछड़ा कहा जाता रहा है। हर क्षेत्र में धनी होने के बावजूद इस क्षेत्र के माथे पर पिछड़ेपन का टिका लगा हुआ है।
पलामू, [तौहीद रब्बानी]। आजादी से लेकर अबतक पलामू पिछड़ा कहा जाता रहा है। सच्चाई भी है कि हर क्षेत्र में धनी होने के बावजूद इस क्षेत्र के माथे पर पिछड़ेपन का टिका लगा हुआ है। पलामू की धरती ऐसी है कि यहां जंगल-पहाड़, खेत-खलिहान व मैदान सब कुछ है। पलामू में कई बड़ी-बड़ी नदियां, राष्ट्रीय स्तर के नेता, मंत्री व सांसद रह चुके हैं। संयुक्त पलामू आज तीन जिलों का प्रमंडल बन गया है।
पलामू प्रमंडल विशेषकर पलामू लोक सभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि अपनी गोद में पूरा इतिहास समेटे हुए है। पलामू को पिछड़ा कहने वालों को शायद पता नहीं है कि यहां के चार लाल ने एक साथ झारखंड के चार अलग-अलग संसदीय सीट पर कब्जा जमा रखा था। वर्ष 2004 में पूरे देश में 14वीं लोकसभा का आम चुनाव हुआ।
इसमें पलामू सीट से राजद प्रत्याशी सतबरवा निवासी मनोज कुमार, संयुक्त पलामू निवासी अब गढ़वा जिला के मंझिआंव चौखरा गांव निवासी चंद्रशेखर दुबे धनबाद, पलामू जिला मुख्यालय से सटे चियांकी गांव निवासी रामेश्वर उरांव लोहरदगा व पलामू के ही सुबोधकांत सहाय रांची से एक साथ सांसद बने थे। इन चारों में से पलामू पर राजद और अन्य तीनों लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने अपना परचम लहराया था।
उस समय पलामू वासियों का सीना गर्व से चौड़ा गया था। इस पिछड़े क्षेत्र के चार योद्धाओं ने दूसरे संसदीय क्षेत्र में अपनी धाक जमाकर पलामू का नाम रौशन किया था। पलामू की धरती पूरे विश्व को यह संदेश देने में कामयाब रही कि गरीबी में भी उसके पास अमीरी है। वर्ष 2009 में भी पलामू के दो धरती पुत्र इंदरसिंह नामधारी व सुबोधकांत सहाय सांसद बने थे।
इंदरसिंह नामधारी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चतरा लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी। सुबोधकांत सहाय ने सूबे की राजधानी रांची संसदीय क्षेत्र से लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की थी। इससे पूर्व देखें तो चार दशक पहले भीष्मनारायण सिंह पलामू के चमकते सितारे थे। पलामू के छतरपुर प्रखंड के उदयगढ़ गांव निवासी भीष्मनारायण सिंह राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचकर पलामू को विश्व पटल पर लाने का प्रयास किया।
वे केंद्रीय खेल-कूद व युवा मंत्री रहे। उनके कार्यकाल में ही 1982 में नई दिल्ली में एशियाड हुआ। वे सात राज्यों के राज्यपाल भी रहे। इंदिरा गांधी के काफी करीबी थे। करीब डेढ़ वर्ष पूर्व इनका निधन हो गया। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हर स्तर पर बुलंदी तक पहुंचाने वाली पलामू प्रमंडल की धरती अपने पिछड़ेपन पर आंसू बहाने को विवश है। पलामू प्रमंडल के लोगों को को इंतजार है एक ऐसे रहबर की, जो आए और पलामू को गरीबी-मुफलिसी की बेड़ी से एक हद तक आजाद करा दे।