पलामू: प्रकृति की छांव में खोजी आय सृजन की राह, अब दूसरी महिलाओं के लिए बनीं आशा
आशा ने तालाब के चारों ओर फलदार व इमारती लकड़ियों के पेड़-पौधे लगाए जो अब फूल-फल देने के साथ ही उनकी आमदनी का अच्छा जरिया बन गए हैं। इसके अलावा तालाब में मछली पालन से भी उन्हें अच्छी आय हो रही है।
मृत्युंजय पाठक, मेदिनीनगर (पलामू)। झारखंड में सहिया नाम से जानी जानेवाली आशा स्वास्थ्यकर्मी ग्रामीण, जनजातीय तथा दूरदराज के इलाकों में मातृ व शिशु स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाती हैं। पूरे राज्य में इनकी संख्या लगभग 42 हजार है।
बीमारियों के नियंत्रण से लेकर स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों में ये महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पलामू की सहिया 45 वर्षीय आशा सिंह भी इन्हीं में से एक हैं। उन्होंने स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण और जल संरक्षण के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय काम कर मिसाल कायम की है।
जिला मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 80 किलोमीटर दूर हुसैनाबाद प्रखंड की ऊपरी कला पंचायत के होल्या गांव की रहनेवाली आशा ने कुछ साल पहले गांव में तालाब के जरिये खुशहाली लाने का संकल्प लिया और मेहनत के दम पर इसे पूरा कर दिखाया।
जलसंकट और सूखा के लिए चर्चा में रहनेवाले पलामू के लिए इस पहल के खास मायने हैं। आशा सिंह ने अपने गांव में अपनी जमीन पर तालाब खुदवाया और इससे अपने साथ औरों के खेतों में भी सिंचाई की समस्या दूर की।
इतना ही नहीं बेहतर सोच के जरिए उन्होंने तालाब को बहुआयामी बनाकर उसे आय के अच्छे स्रोत के रूप में भी विकसित कर लिया और पर्यावरण को भी बेहतर बनाया।
आशा ने तालाब के चारों ओर फलदार व इमारती लकड़ियों के पेड़-पौधे लगाए, जो अब फूल-फल देने के साथ ही उनकी आमदनी का अच्छा जरिया बन गए हैं। इसके अलावा तालाब में मछली पालन से भी उन्हें अच्छी आय हो रही है।
उनकी अच्छी सोच, सफलता और खुशहाली देख गांव के कई अन्य लोग भी प्रेरित हो रहे हैं। आशा भी लोगों को पर्यावरण और जल संरक्षण से जुड़े कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।
होल्या गांव में तालाब ने लिया अभियान का रूप
आशा के कार्यों में पति सत्येंद्र सिंह भी सहयोग करते हैं। वहीं, आशा से प्रेरित होकर गांव की आधा दर्जन से अधिक महिलाएं तालाब खुदवाकर गांव में खुशहाली के बीज बो चुकी है।
तालाबों के खुद जाने से गांव का जलस्तर भी पहले से बेहतर हो रहा है। साथ ही पर्यावरण भी हरा-भरा हो गया है। सिंचाई का अच्छा साधन विकसित हो जाने के कारण सब्जी, फल और मछली से लोगों की अच्छी आमदनी हो जाती है।
आय बढ़ी तो आशा ने तालाब के निकट ही अपना घर भी बनवा लिया। अब उनका पूरा परिवार प्रकृति की छांव में आनंदित है। आशा बताती हैं कि तालाब सदियों से जल संरक्षण का बड़ा माध्यम रहे हैं।
गांव में धीरे-धीरे तालाबों के सिकुड़ने की स्थिति को देख मैंने इस स्थिति को बदलने का निर्णय लिया था। हमारे इस निर्णय में पति, परिवार के लोगों और समाज के लोगों ने काफी सहयोग दिया।
बाद में इस अभियान से गांव के अन्य महिला-पुरुष भी जुड़े और कई तालाबों का इसी पैटर्न पर निर्माण कराया। अच्छे काम के लिए लोगों की सराहना मिलती है तो गर्व की अनुभूति होती है।
लगता है हमने कुछ अच्छा काम किया, जिससे अपने साथ दूसरों को भी लाभ हो रहा है। महिलाओं को मैं बताती हूं कि तालाब व पेड़ किसी एख व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए फलदायी होते हैं।
इसलिए धार्मिक व जनकल्याण की दृष्टि से भी जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण की चिंता सभी करें। आशा बताती हैं कि पहले हमसे प्रभावित होकर गोतिया के चार परिवारों ने सिंचाई के लिए तालाब खुदवाए।
इसके बाद गांव के आधा दर्जन से अधिक लोगों ने तालाब खुदवाए। अब तक गांव में 10 लोग तालाब खुदवा चुके हैं। हमें खुशी है कि इससे धीर-धीरे गांव में खुशहाली आ रही है।
इस संबंध में ऊपरी कला पंचायत की मुखिया प्रेमा देवी ने कहा कि पर्यावरण व जल संरक्षण के क्षेत्र में आशा के कार्य अनुकरणीय हैं। ऊपरी कला की अन्य कई महिला एवं पुरुष ने आशा की प्रेरणा से तालाब का निर्माण कराया है।
इनमें होल्या की कंचन देवी पति सुरेंद्र सिंह और सरिता देवी पति नागेंद्र सिंह आदि उल्लेखनीय हैं। हम सभी को उनसे प्रेरणा लेना चाहिए।
पानी और पेड़ों के बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। जरूरी है कि हम सभी जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अपनी क्षमता के अनुसार काम करें। यही सोच कर हमने तालाब का निर्माण करवाया। मुझे खुशी है कि गांव के लोगों ने इसे समझा और अनुसरण कर इस दिशा में आगे बढ़े। -आशा सिंह, सहिया, होल्या गांव, पलामू।