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नशा से जीत गए, अब गरीबी से जंग

पाकुड़ पाकुड़ प्रखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूर देवपुर गांव है। यहां सभी जाति व

By JagranEdited By: Published: Sun, 01 Dec 2019 09:47 AM (IST)Updated: Sun, 01 Dec 2019 09:47 AM (IST)
नशा से जीत गए, अब गरीबी से जंग
नशा से जीत गए, अब गरीबी से जंग

पाकुड़ : पाकुड़ प्रखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूर देवपुर गांव है। यहां सभी जाति व धर्म के मानने वाले करीब 350 परिवार रहते हैं। गांव की आबादी 2200 के करीब है। यहां की महिलाओं के प्रयास से देवपुर के ग्रामीणों ने नशा जैसी बुराई से मुक्ति पा ली है। गांव में शराब की दुकान नहीं है। यहां शराब बेचने की भी मनाही है। अब यहां के लोगों की जंग गरीबी से है।

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बता दें कि देवपुर एक ऐसा गांव है, जहां पहाड़ नहीं है लेकिन यहां पहाड़िया समुदाय की आबादी अच्छी खासी है। यहां के मुखिया भी पहाड़िया ही हैं। शनिवार को गांव के लोगों का चुनावी मिजाज जानने के लिए 12.30 बजे देवपुर पहुंचा। यहां के एक नंबर मोहल्ला पहुंचने पर मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ता सपन प्रमाणिक से होती है। सपन गांव के मुहाने पर ही एक पीपल पेड़ के नीचे बैठे चुनावी चर्चा में मशगुल थे। सपन ने बताया कि यह पीपल का पेड़ पुरखों के समय से है। गांव के हरेक सुख दुख का गवाह है। इस पेड़ के समीप ही एक तालाब है। वह बताते है यह राय पोखर है। इसका पानी प्रयोग करने योग्य नहीं है। यहां गांव के लोगों के समक्ष पानी की समस्या है। कुछ दूर आगे बढ़ने पर गांव में बाहरी लोगों को देखकर कुछ महिलाएं व दूसरे ग्रामीण जमा हो जाते हैं। उन्हें लगता है कोई वोट मांगने वाला आया है। फिर हम उन्हें अपने बारे में बताते हैं। तो लोगों की जिज्ञासा शांत होती है। ग्रामीण महिलाएं गर्व से बताती है हम लोगों ने मिलकर गांव में शराब की दुकानें बंद करा दी है। इसके बाद काफी शांति मिली है। रोज की मारपीट हुडदंग रूक गया है। बुलबुली पहाड़िन ने बताया कि उन लोगों ने 2016 में सामाजिक

उत्थान समिति बनाई। इसी समिति के तहत गांव के अभियान चलाकर आंदोलन कर गांव के शराब दुकान का बंद कराया। शराब छोड़ चुके रवि तुरी कहते हैं पहले शराब का विरोध कर रही महिलाओं पर बहुत गुस्सा आता था लेकिन अब अच्छा लगता है। पहले असानी से सुलभ होने के कारण छोटे छोटे बच्चे भी शराब पी लेते थे।

गांव में समस्याओं की भरमार

यहां हमारी मुलाकात सत्यवान दास से होती है। वे कहते हैं कि घर नहीं मिला। इसकारण झोपड़ी में रहते हैं। यहां मुखिया और ग्रामीणों के बीच अच्छी नहीं बनती है। किशोर मापहाड़िया, दया मालपहाड़िया कहते है। उन्हें किसी योजना का लाभ नहीं मिला है। गांव के अधिकतर लोग उज्ज्वला या प्रधानमंत्री आवास

योजना के लाभ से वंचित हैं। कई महिलाओं ने बताया कि राशन कार्ड में उनका नाम नहीं है जिसके कारण उन्हें उज्ज्वला योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। गांव की सड़के काफी संकरी है।


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