तालाबों में छठ मनाने की मिली छूट से लोग खुश
इस महापर्व को लेकर छठ व्रतियों ने धुलियान के गंगा नदी व पवित्र सरोवर में स्नान कर कद्दू-भात बनाकर भगवान को प्रसाद स्वरूप चढ़ाया।
पाकुड़ : लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ बुधवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। इस महापर्व को लेकर छठ व्रतियों ने धुलियान के गंगा नदी व पवित्र सरोवर में स्नान कर कद्दू-भात बनाकर भगवान को प्रसाद स्वरूप चढ़ाया। इसके उपरांत कद्दू भात छठ व्रतियों व श्रद्धालुओं ने प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया। महापर्व के दूसरे दिन गुरुवार को खरना का आयोजन किया जाएगा। छठ व्रत में खराना का विशेष महत्व बताया जाता है।
सरकार की ओर से छठ महापर्व तालाबों पर करने की छूट मिलने के बाद व्रतियों, हिदू समाज सहित धार्मिक संगठनों के लोग काफी उत्साहित है। लोगों ने सरकार के आदेश का स्वागत करते हुए प्रसन्नता जाहिर की है। कहा कि छठ घाटों पर कोविड नियम का पालन किया जाएगा। इधर, कद्दू-भात को लेकर स्थानीय बाजारों में कद्दू की मांग काफी थी जिसके कारण कद्दू के कीमतें आसमान छू रही थी। सब्जी विक्रेताओं ने बताया कि बंगाल एवं आसपास के क्षेत्रों में बारिश के कारण कद्दू की फसल नष्ट होने के कारण कद्दू की कीमत बढ़ी है।
आज दिन भर निराहार रहकर शाम में खरना की पूजा महेशपुर (पाकुड़): सूर्योपासना का महापर्व छठ बुधवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। छठ के पारंपरिक गीत गूंजने लगे हैं। 19 नवंबर को व्रती दिनभर निराहार रहकर शाम को खरना का अनुष्ठान पूरा करेंगी। इसके बाद 36 घंटे का निराहार आरंभ हो जाएगा। 20 को अस्ताचलगामी सूर्य एवं 21 नवंबर की सुबह व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महापर्व का समापन होगा।
पर्व में गलती की कोई जगह नहीं पाकुड़िया (पाकुड़) : श्रद्धा, आस्था, समर्पण, शक्ति और सेवा भाव से जुड़ा चार दिवसीय छठ महापर्व बुधवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। आस्था के महापर्व को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है। इसके महत्व का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती। इस पर्व में तन व मन दोनों की शुद्धता का ख्याल रखा जाता है। बुधवार को छठ व्रती ने सबसे पहले घर की पूरी साफ-सफाई की। फिर सुबह नदी तालाब, कुएं या चापाकल से स्नान की। व्रती महिला चने की दाल, अरवा चावल और कद्दू की सब्जी बनाई। इसमें सेंधा नमक ही इस्तेमाल किया गया। पहले गणेश जी और सूर्य देव को भोग लगाने के बाद व्रती ने इसका सेवन किया। फिर परिवार के दूसरे सदस्यों ने भी इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया।