उपेक्षा से कंचनगढ़ को नहीं मिली पहचान
पाकुड़ पाकुड़ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। प्रशासन व जनप्रतिनिधियों द्वारा ठोस पहल नहीं ह
पाकुड़ : पाकुड़ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। प्रशासन व जनप्रतिनिधियों द्वारा ठोस पहल नहीं हो रही है। इस कारण लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, अमड़ापाड़ा, पाकुड़िया प्रखंड के धार्मिक व सार्वजनिक स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किया जा सका। इसका उदाहरण लिट्टीपाड प्रखंड की करमाटांड़ पंचायत अंतर्गत छोटा सूरजबेड़ा गांव के नजदीक है कंचनगढ़ गुफा।
यां भगवान शिव विराजते हैं। चारों ओर जंगलों से घिरा गुफा में प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि में धूमधाम से पूजा-अर्चना होती है। दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। आदिवासी-पहाड़िया समुदाय की ओर से भव्य मेला का भी आयोजन किया जाता है।
तत्कालीन डीसी डीके झा के प्रयास से श्रद्धालुओं के बैठने के लिए यहां चबूतरा बनाया गया।
वहीं महेशपुर प्रखंड अंतर्गत भेंटाटोला पंचायत के गमछा नाला गांव के बगल स्थित पीर पहाड़ मजार आस्था का केंद्र बना हुआ है। इसे भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसी तरह हिरणपुर प्रखंड के लंगटा मशान, लिट्टीपाड़ा प्रखंड के छोटा चटकम स्थित गरम जलकुंड, पाकुड़िया प्रखंड के सीदपुर मौजा स्थित गरम जलकुंड को भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। महेशपुर विधायक प्रो. स्टीफन मरांडी विधानसभा में भी कई बार सवाल उठा चुके हैं।
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प्रकृति विहार भी नहीं हो पाया विकसित
जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित अमड़ापाड़ा प्रखंड मुख्यालय में स्थित है प्रकृति विहार पार्क। यह पार्क बांसलोई नदी के किनारे अवस्थित है। तत्कालीन उपायुक्त वैदेही शरण मिश्र ने प्रकृति विहार परियोजना की परिकल्पना तैयारी की थी। नदी किनारे स्थित रहने के कारण पार्क का दृश्य काफी रमणीय लगता था। देखरेख के अभाव में प्रकृति विहार पार्क अपनी पहचान खोने लगीा है।