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यहां पानी का रंग देख लगा लेते हैं बाढ़ का अंदाजा

सुपौल। कोसी के इलाके में लोग पानी का रंग देख बाढ़ आने का अंदाजा लगा लेते हैं। कोसी में जैसे ही लाल प

By JagranEdited By: Published: Wed, 23 May 2018 06:33 PM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 06:33 PM (IST)
यहां पानी का रंग देख लगा लेते हैं बाढ़ का अंदाजा
यहां पानी का रंग देख लगा लेते हैं बाढ़ का अंदाजा

सुपौल। कोसी के इलाके में लोग पानी का रंग देख बाढ़ आने का अंदाजा लगा लेते हैं। कोसी में जैसे ही लाल पानी उतरता है लोग सचेत हो जाते हैं। जानकारों और बुजुर्गों की राय में यह पानी इस बात का संकेत होता है कि इस मौसम का यह पहला पानी है जो हिमालय से उतर गया। पानी का रंग बदलते ही लोग बाढ़ से सुरक्षा की तैयारी शुरू कर देते हैं। लाल पानी का उतरना तटबंध के अंदर के गांवों में एक अजीब से परिस्थिति पैदा कर देता है।

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जब कोसी दिखाती आंख

लाल पानी का एक संदर्भ कोसी के लोग कोसी के आंख लाल होने से लगाते हैं। यहां के लोगों का मानना है जब हमलोग लाल पानी देख लेते हैं तो मान बैठते हैं कि अब कोसी ने आंख दिखाना शुरू कर दिया है। कोसी में लाल पानी मई के दूसरे सप्ताह और जून के प्रथम सप्ताह के बीच अमूमन उतर जाता है। लाल पानी के उतरते ही बाढ़ की अवधि शुरू हो जाती है।

साफ दिखता पानी तो स्थिर मानी जाती कोसी

जब पानी बिल्कुल साफ दिखाई देता है तो लोग नि¨श्चत होते हैं कि कोसी अभी स्थिर है। पानी का रंग जब बिल्कुल ही मटमैला होता है और उसकी गति सामान्य से कुछ तेज रहती है तो लोगों को आभास हो जाता है कि पीछे कहीं किसी गांव को काट रही है कोसी। या फिर इसके लक्षण ठीक नहीं लगते।

आती है बाढ़ दहाती भसाती है आबादी

बिहार का शोक कहलाने वाली नदी कोसी ने हमेशा से कोसीवासियों को दर्द दिया है। यह नदी कभी फसलों को अपने जल प्लावन से बर्बाद करती है तो कभी पूरे गांव को अपने उदर में समा लेती है। रहनुमाओं ने पीड़ितों को हमेशा सब्जबाग तो दिखाए, लेकिन समस्याओं का अंत नहीं हो सका। बरसात का मौसम आता है, दहाती भसाती रहती है आबादी, कटाव-बचाव का खेल चलता रहता है। तरह-तरह की बयानबाजी होती रहती है। कोसी ने यदि सीमा लांघ दी तो कभी बांध टूट गया तो कभी हाय तौबा मचती है। बेशक ऐसे में मदद के लिए कई हाथ खड़े हो जाते हैं। अन्यथा हर साल बाढ़ के मौसम में एक तय औपचारिकता पूरी की जाती है। बरसात खत्म, बात खत्म। सबकुछ उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। जबकि हालात हैं कि साल के छह महीने कोसी के लोग अपने घर में होते हैं तो छह महीने तंबू में। वहीं जिस गांव से कोसी की मुख्य धारा निकल गई, वह पूरा गांव उजड़ गया। कल तक समृद्धि से जीवन बसर करने वाले दाने को मोहताज हो गए और शायद रहनुमाओं को जरा सी भी तरस नहीं आई।

कोट

कोसी रंग से ही पहचानी जाती है कि उसका रूप कैसा होगा। प्रारंभिक दौर में ललपनिया, रौद्र रूप में मटमैला जो उसके गुस्से को दर्शाता है और सौम्य रूप में शांत, निर्मल और स्वच्छ दिखती है कोसी।

-भगवानजी पाठक

संयोजक

कोसी कंसोर्टियम


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