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लोहरदगा में आम लोगों को बीमार कर रहा पानी

लोहरदगा में पानी अब प्यास बुझाने के साथ-साथ लोगों को बीमार भी कर रहा है। यहां पानी के बेतहासा दोहन की वजह से यह समस्या उत्पन्न हुई है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट चितित करती है। लोगों के लिए पानी में रसायनों की स्थिति परेशान करने वाली है। लोहरदगा में पानी में आयरन और नाइट्रेट की स्थिति यह बताने के लिए काफी है

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 08:58 PM (IST)Updated: Wed, 27 Mar 2019 08:58 PM (IST)
लोहरदगा में आम लोगों को बीमार कर रहा पानी
लोहरदगा में आम लोगों को बीमार कर रहा पानी

राकेश कुमार सिन्हा, लोहरदगा : लोहरदगा में पानी प्यास तो बुझा रही है लेकिन लोगों को बीमार भी कर रही है। यहां पानी के बेतहासा दोहन की वजह से यह समस्या उत्पन्न हुई है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट चितित करती है। लोगों के लिए पानी में रसायनों की स्थिति परेशान करने वाली है। लोहरदगा में पानी में आयरन और नाइट्रेट की स्थिति यह बताने के लिए काफी है कि यही हाल रहा तो आने वाले समय में पानी में रसायन की स्थिति काफी खतरनाक स्थिति में पहुंच जाएगी। केंद्रीय भू-जल परिषद की वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 6.55 बिलियन क्यूबिक मीटर भू-जल का भंडार का उपयोग हो रहा है। यह राज्य के सभी जिलों की औसत स्थिति है। ऐसे में पानी की कीमत को न पहचान कर लोग अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। पानी के बेतहाशा दोहन के कारण पानी में रसायनों की मात्रा बढ़ रही है। लोहरदगा जिला केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार नाइट्रेट की अधिक मात्रा वाले जिले में आता है। नाइट्रेट की अधिक मात्रा के कारण नवजात शिशु में ब्लू बेबी या मैथमोग्लोबिनियमिया नामक बीमारी होती है। इस बीमारी के मामले समाज में काफी तेजी से बढ़े हैं। यहां नाइट्रेक की मात्रा 45 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक है। लोहरदगा में पानी में रसायनों की जांच करने वाली ईंकाई की रिपोट बताती है कि यहां 1 मिली प्रति लीटर के कई बाद आयरन की मात्रा अधिक हो जाती है। आयरन की मात्रा बढ़ने की स्थिति में लोग गैस सहित कई बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। हालांकि आयरन की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है। गर्मी के दिनों में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है। समस्या की गंभीरता को देखने के बाद भी लोग पानी की बर्बादी को रोकने और भू-गर्भ जल स्तर को बढ़ाने को लेकर जागरूक नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में आने वाला समय चिता का है। पानी में रसायनों की मात्रा को नियंत्रित रखने को लेकर भू-गर्भ जल स्तर को बढ़ाना बेहद जरूरी है। यह तभी संभव है, जब वर्षा जल को संरक्षित किया जाए। वाटर हार्वेस्टिग जैसी योजनाओं को लागू किया जाए।

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