गुमनामी में खो गया संस्कृति का पुरोधा
संस्कृति को जीवन देने वाले की आज कोई सुध नहीं ले रहा है। पद्मश्री मुकुंद नायक के साथी लोहरदगा जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत ईटा गांव निवासी गो¨वद शरण लोहरा को लोग लोक संस्कृति के पुरोधा के रूप में जानते हैं।
लोहरदगा : संस्कृति को जीवन देने वाले की आज कोई सुध नहीं ले रहा है। पद्मश्री मुकुंद नायक के साथी लोहरदगा जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत ईटा गांव निवासी गो¨वद शरण लोहरा को लोग लोक संस्कृति के पुरोधा के रूप में जानते हैं। दक्षिणी छोटानागपुर की भाषा और संस्कृति को पटना, दिल्ली, कोलकाता व अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक पहुंचाने वाले गो¨वद शरण आज गुमनामी के अंधेरे में खोकर रह गए हैं।
वर्ष 1977 से अपने सांस्कृतिक जीवन की शुरुआत करने वाले गो¨वद शरण लोहरा 65 साल के हो चुके हैं। पांच साल पहले वे लकवा शिकार हो गए थे। तब से लेकर आज तक बैसाखी के सहारे अपनी ¨जदगी काट रहे हैं। जिस कलाकार ने लोक संस्कृति को देशभर में पहचान दिलाई वह आज अंधेरे में खामोश पड़ा हुआ है। सरकारी सहायता के नाम पर उन्हें महज वृद्धा पेंशन ही मिलती है। इसके अलावा कोई और सहायता नहीं मिलती। ऐसे में सरकार की व्यवस्था और संगीत के अंजाम को लेकर गो¨वद शरण लोहरा काफी निराश हो जाते हैं। गो¨वद शरण कहते हैं कि उन्होंने कभी भी लोक संस्कृति को पीछे नहीं हटने दिया। यदि वे कोई दूसरा काम करते तो शायद अपने परिवार के लिए कुछ कर पाते पर संगीत और लोक संस्कृति ने उन्हें निराश करके रख दिया। गो¨वद शरण लोहरा की आवाज में आज भी एक कशिश नजर आती है। झारखंड की संस्कृति की झलक दिखाई देती है। गो¨वद शरण का हाल लेने के लिए समय-समय पर पद्मश्री मुकुंद नायक भी आते रहे हैं। गो¨वद शरण को यह तसल्ली मिलती है कि उनके साथियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा पर उनकी संस्कृति, सरकार और गायन ने उनका साथ छोड़ दिया है। निश्चित रूप से गो¨वद शरण जैसे कलाकार की हालत देखकर आज काफी अफसोस होता है। इस संबंध में विधायक सुखदेव भगत कहते हैं कि वे इस मामले में प्रयास करेंगे। जो भी सहायता वे नियम के अनुसार दिला सकें, अवश्य दिलाएंगे।