जूट के धागे से जीवन का तानाबाना बुन रही ये महिलाएं, दूसरों के लिए बन रहीं सहारा
Jute threads. ये महिलाएं जूट के रेशा से जीवन का तानाबाना बुन रही हैं। जिंदगी संवार रही हैं। अपनी जरूरत के लिए खुद आत्मनिर्भर हो रही हैं।
राकेश कुमार सिन्हा, लोहरदगा। जूट, जिससे कभी सिर्फ रस्सियां बना करती थीं, आज झोला, इलाहाबादी अंदाज वाले स्टाइलिश थैले, मैट, फ्लावर पॉट और कई तरह के सजावटी सामान बन रहे हैं। ऐसे सामान, जो घर को चार चांद लगा जाएं। सब सामान एक से एक नायाब। यह सब कर रही हैं झारखंड के छोटे से शहर लोहरदगा के पिछड़े इलाके इस्लाम नगर की महिलाएं। ये महिलाएं जूट के रेशा से जीवन का तानाबाना बुन रही हैं। जिंदगी संवार रही हैं। अपनी जरूरत के लिए खुद आत्मनिर्भर हो रही हैं। पूरी तरह इको फ्रेंडली उत्पाद।
रंगीन और आकर्षक उत्पादों ने महानगरों में भी अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी है। यहां के थैले बड़े शहरों में कामकाजी महिलाओं या कॉलेज गोइंग छात्राओं के कंधे पर झूलते नजर आ सकते हैं। प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा तो जूट के थैले की मांग भी बढ़ गई है।
बना ली है कंपनी
लोहरदगा जैसे छोटे से शहर के अति पिछड़े क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं आज अपनी मेहनत और कला की बदौलत महानगरों में पहचान बना रही है। सशक्त समाज का निर्माण कर रही हैं। लोहरदगा में लावापानी क्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड का निर्माण कर लिया है। इसके बैनर तले इस्लाम नगर की रहने वाली दर्जनभर महिलाएं झारक्राफ्ट या कहें कि जूट क्राफ्ट की मदद से आज अपने परिवार के लिए सहारा बन रही हैं। अपनी पहचान कायम कर रही हैं। नाबार्ड ने सहयोग किया तो इनके सपनों और हौसलों को पंख लग गए। कंपनी बनाकर कदम आगे बढ़ा रही हैं।
दूसरों के लिए बन रहीं सहारा
दर्जनभर महिलाओं ने जूट क्राफ्ट का काम शुरू किया था। सिलसिला चल पड़ा तो सैकड़ों महिलाएं इससे जुड़ गईं। ये महिलाएं भी अब एंबेसडर का काम कर रही हैं। जिले भर में घूम-घूमकर आर्थिक रूप में कमजोर दूसरी महिलाओं को जोड़ रही हैं। प्रेरित कर रही हैं। यह महिलाओं की ओर से महिलाओं के लिए महिला सशक्तीकरण का अभियान बन गया है। घर बैठे घरेलू काम से फुर्सत के क्षणों में चार-छह घंटे काम कर आसानी से पांच-छह हजार रुपये महीने की आमदनी हो जाती है। काम कर रहे हैं और साथ में छोटे बच्चे भी हैं तो भी कोई परेशानी नहीं। यानी घर की जिम्मेदारी संभालते हुए सब हो रहा है।
नाबार्ड है न
जूट से उत्पाद के निर्माण के काम में जुटी महिलाओं को कच्चे माल और बाजार में बिक्री की भी चिंता करने की जरूरत नहीं होती। नाबार्ड अनुदान के साथ कच्चा माल और बाजार उपलब्ध कराता है। महिलाओं का काम बस कच्चे सामान से बैग, थैला, फ्लावर पॉट, मैट, सजावटी दूसरे सामान तैयार करना होता है। समय-समय पर लगने वाले मेलों में भी इनके उत्पाद की खूब मांग रहती है।
लालवानी का दिया सुंदर नाम
लावापानी लोहरदगा के पेशरार की खूबसूरत वादियों में बसा एक बेहद खूबसूरत झरना है। इस्लाम नगर की महिलाओं ने इसी प्रकृति की सुंदरता को अपने उत्पाद से आत्मसात करते हुए अपनी कंपनी का नाम लावापानी क्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड दिया है। यह एक रजिस्टर्ड कंपनी है।
काम में आ रहा है मजा
इस काम से जुड़ी तसीमा खातून और अख्तरी खातून का कहना है कि उन्हें काम करने में काफी आनंद आ रहा है। कोई परेशानी नहीं है। घर के आसपास रह कर ही कमाई हो जाती है। नाबार्ड का पूरा सहयोग प्राप्त होता है। नाबार्ड के इस प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने वाले अमर कुमार देवघरिया कहते हैं कि नाबार्ड सहयोग कर रहा है। असली काम तो महिलाएं कर रही हैं।