न अधिकारियों को सूझ रहा उपाय, न किसी को है फिक्र
लोहरदगा में कृषि की खराब हालत जैसे अब इतनी बीमार हो चुकी है कि न तो अधिकारियों को इसका कोई उपाय सूझ रहा है और न ही जनप्रतिनिधियों को इसकी फिक्र ही दिखाई देती है।
लोहरदगा : लोहरदगा में कृषि की खराब हालत जैसे अब इतनी बीमार हो चुकी है कि न तो अधिकारियों को इसका कोई उपाय सूझ रहा है और न ही जनप्रतिनिधियों को इसकी फिक्र ही दिखाई देती है। कृषि के भरोसे अपने परिवार का गुजारा करने वाले किसान न सिर्फ परेशान है, बल्कि पलायन के रास्ते खुद को बदलने और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं। लोहरदगा जिले में आंकड़ों में समझे तो कुल 81622.8 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। इसमें से सिचित क्षेत्र मात्र 11627.5 हेक्टेयर है। सिचाई समस्याओं की वजह से 15018.6 हेक्टेयर कृषि योग्य बेकार भूमि पड़ी हुई है। अब परती भूमि पर गौर करें तो लोहरदगा में 13272.7 हेक्टेयर परती भूमि है। हर साल कृषि विभाग 47000 हेक्टेयर में खरीफ आच्छादन का लक्ष्य तय करता है, पर खेती की बात करें तो उसके लायक 45435.8 हेक्टेयर की भूमि है। जिले में 47100 हेक्टेयर असिचित क्षेत्र है। जिले में सबसे अधिक सदर प्रखंड में 3044.2 हेक्टेयर सिचित क्षेत्र है। जबकि सबसे कम किस को प्रखंड में 804 हेक्टेयर सिचित क्षेत्र है। खरीफ 2017-18 में कुल 80870 हेक्टेयर में खरीफ उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया था जबकि अच्छादन 67696 हेक्टेयर में हुआ, जो महज 83.7 प्रतिशत था। वर्ष 2018-19 में कृषि विभाग ने कुल 80915 हेक्टेयर में खरीफ आच्छादन का लक्ष्य किया था। जबकि महज 65291 हेक्टेयर में आच्छादन हुआ। यह लक्ष्य का 80.69 प्रतिशत था। रबी फसल की बात करें तो कृषि विभाग ने वर्ष 2017-18 में कुल 41500 हेक्टेयर में खरीफ रबी आच्छादन का लक्ष्य किया था। जबकि महज 32418.25 हेक्टेयर में आच्छादन हुआ। जो लक्ष्य का 78.1 प्रतिशत था। वर्ष 2018-19 में कृषि विभाग द्वारा तय रबी आच्छादन का लक्ष्य 41500 हेक्टेयर था। जबकि महज 20483 हेक्टेयर में आच्छादन हुआ, जो लक्ष्य का महज 49.4 प्रतिशत था। ऐसे में कृषि विभाग खुद तय लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रहा है। ऐसा सिर्फ और सिर्फ सिचाई संसाधनों की कमी की वजह से हुआ है। जिले में मनरेगा और भूमि संरक्षण विभाग के माध्यम से बनो डोभा कब के जमीन से गायब हो चुके हैं। जो इक्का-दुक्का डोभा नजर आते हैं, उनमें पानी का नामोनिशान तक नहीं है। चेकडैम, मनरेगा सिचाई कूप, मनरेगा तालाब का भी यही हाल है। कृषि विभाग करे भी तो क्या करे। वह किसानों को खाद, बीज, प्रशिक्षण और तकनीकी जानकारी ही उपलब्ध करा सकता है। जब किसान के पास सिचाई संसाधन होंगे ही नहीं तो किसान खेती करेगा भी तो कैसे। हालांकि जिला कृषि पदाधिकारी शैलेंद्र कुमार कहते हैं कि सरकार द्वारा संचालित तमाम योजनाओं को विभाग बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। हम उन सभी योजनाओं को किसानों तक पहुंचा रहे हैं। जिसके माध्यम से किसानों की समस्याओं का हल हो सके। ---क्या कहते हैं किसान
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लोहरदगा : किसान भी खेती में सबसे बड़ी समस्या सिचाई संसाधन को मानते हैं। इसके लिए किसान सरकार को दोष देते हैं। कहते हैं सरकार ने कभी भी जमीन पर पहुंचकर समस्या को जानने की कोशिश ही नहीं की। मुमताज अंसारी और सफीक अंसारी का कहना है कि जब खेतों तक पानी पहुंचेगा ही नहीं तो वह खेती करेंगे कैसे। गर्मी शुरू होते ही पानी गायब होता है। सिचाई के बड़े संसाधन है ही नहीं। खेती भला कैसे होगी। किसान रामकेश्वर औऱ सुनील महली का कहना है कि जब तक सरकार सिचाई समस्या को हल नहीं करती है, तब तक खेती का विकास नहीं हो सकता है। किसान पैसे लेकर भला क्या करेगा। जब वह फसल को पानी दे ही नहीं पाएगा।