Lok Sabha Polls 2019: वर्ष 2004 से पहले अपने दम पर चुनाव लड़ती थी पार्टियां
Lok Sabha Polls 2019. लोहरदगा लोकसभा सीट पर वर्ष 2004 से पहले गठबंधन नहीं बल्कि पार्टियां अपने दम पर चुनाव लड़ती थी। इससे पूूूूर्व 2004 में कांग्रेस व जेएमएम ने गठबंधन किया था।
लोहरदगा, [राकेश कुमार सिन्हा]। लोहरदगा लोकसभा सीट पर वर्ष 2004 से पहले गठबंधन नहीं, बल्कि राजनीतिक दल अपने दम पर चुनाव लड़ते थे। लोहरदगा लोकसभा सीट पर इससे पहले 2004 में कांग्रेस व जेएमएम ने गठबंधन किया था। तब गठबंधन के तहत कांग्रेस के टिकट पर डॉ. रामेश्वर उरांव चुनाव मैदान में उतरे थे।
इसके बाद इस लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही बड़ी पार्टियां गठबंधन के तहत लोहरदगा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। महागठबंधन के तहत कांग्रेस के टिकट पर सुखदेव भगत चुनाव मैदान में हैं। जबकि आजसू और भाजपा के बीच हुए गठबंधन में भाजपा की ओर से सुदर्शन भगत चुनाव मैदान में हैं। यह पहली बार है जब दोनों प्रमुख पार्टियां लोहरदगा लोकसभा सीट से गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही हैं।
वर्ष 1957 का चुनाव जब हुआ था तो उस समय लोहरदगा सीट रांची लोकसभा सीट में समाहित थी। तब जेकेपी/जेएचपी के इग्नेश बेक सांसद चुने गए थे। 1962 के चुनाव में एसडब्ल्यूए के टिकट पर डेविड मुंजनी लोहरदगा के सांसद चुने गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस के कार्तिक उरांव को महज 11 प्रतिशत वोट मिले थे। 1967 में कार्तिक उरांव कांग्रेस के टिकट पर 13 प्रतिशत वोट लाकर लोहरदगा के सांसद चुने गए थे।
1971 के चुनाव में कार्तिक उरांव 30 प्रतिशत वोट लाकर सांसद चुने गए थे। 1977 के चुनाव में बीएलडी के टिकट पर लालू उरांव 25 प्रतिशत वोट लाकर सांसद चुने गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस के कार्तिक उरांव को महज 13 प्रतिशत वोट मिले थे। 1980 में कांग्रेस के टिकट पर कार्तिक उरांव चुनाव जीते थे। 1982 के उप चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सुमति उरांव चुनाव जीती थी।
1984 में सुमती उरांव कांग्रेस के टिकट पर फिर एक बार चुनाव जीत गई थी। 1989 में भी कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव जीत लिया था, तब भी सुमति उरांव कांग्रेस की प्रत्याशी थी। 1991 में भाजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ते हुए चुनाव जीता था। भाजपा के टिकट पर ललित उरांव चुनाव जीत गए थे।
1996 में भी भाजपा के टिकट पर ललित उरांव ने लोहरदगा लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी। 1998 में कांग्रेस के टिकट पर इंद्रनाथ भगत ने चुनाव जीता था। 1999 के चुनाव में दुखा भगत चुनाव जीत गए थे। इस समय तक राजनीतिक दल अपने दम पर चुनाव में उतरते थे। इसके बाद से तो जैसे गठबंधन की हवा लग गई।