पपीता की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे किसान
लोहरदगा जिला कृषि के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान है।
राहुल कुमार चौधरी, कुडू (लोहरदगा) : लोहरदगा जिला कृषि के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान रखता है। यहां धान और गेहूं की खेती के बाद सब्जियों की खेती सबसे अधिक होती है। हाल के समय में कोरोना संक्रमण के कारण और बाजार व्यवस्था ने किसानों को निराश करने का काम किया। ऐसे समय में किसानों ने परंपरागत खेती से अलग फल की खेती को प्राथमिकता दी है। लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड के कड़ाक गांव निवासी एलेन कुजूर ने पपीता की खेती को आर्थिक प्रगति का माध्यम चुना। बेहद कम समय में ही एलेन कुजूर ने अपनी तकदीर को बदल कर रख दिया। एलेन पपीता की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं। हर दिन की कमाई उन्हें होती है। बेहद कम पूंजी और मेहनत के दम पर एलेन ने काफी मुनाफा पाया है। एलेन ने खेती को बाजार की मांग और जरूरत के हिसाब से बदल दिया।
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कोरोना संक्रमण के दौरान शुरू की थी पपीता की खेती
ऐलेन ने कोरोना संक्रमण के दौरान मार्च के महीने में महज एक एकड़ में पपीता की खेती शुरु की थी। छह महीने में ही पौधे तैयार हो गए। फल आने लगा और एलेन को विगत ढाई महीने से अच्छी कमाई हो रही है। एलेन ने इसके लिए न तो बहुत ज्यादा मेहनत की और न ही बहुत अधिक पूंजी ही लगाई। थोड़ी सी मेहनत से उन्हें लाभ मिला है। दूसरी सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को बाजार के लिए परेशान होना पड़ता था, जबकि एलेन के यहां व्यापारी आ कर पपीता खरीद कर ले जाते हैं।
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आसानी से मिलता है पपीता का बाजार
एलेन को पपीता बेचने को लेकर परेशान नहीं होना पड़ता है। घर में रह कर ही वे पपीता बेच पाते हैं। ज्यादातर पपीता व्यापारी घर आ कर खरीद कर ले जाते हैं। जबकि कुछ पपीता वे स्थानीय बाजार में ले जा कर बेचते हैं। एक पपीता की कीमत बीस से तीस रुपये होती है। एलेन अब तक तीस से चालीस हजार रुपये की कमाई कर चुके हैं। बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। मजेदार बात यह है कि पपीता के एक पेड़ में 10 से 15 फल निकलता है। जिससे कम पूंजी में इसकी अच्छी फसल होती है।
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महज पच्चास हजार में शुरू की थी खेती
कड़ाक गांव निवासी एलेन ने महज 50 हजार रुपये में खेती शुरू की थी। अभी इस खेती से अगले तीन महीने तक फल मिलेंगे। जिससे कई गुणा लाभ की उम्मीद की जा रही है। एलेन कुडू, चंदवा, लातेहार, बालूमाथ, चान्हो के बाजारों में पपीता को बेचते हैं। ढलती उम्र के बावजूद एलेन ने इस खेती से युवा किसानों को एक संदेश देने का काम किया है। अब तो दूसरे किसान भी इस खेती से जुड़ रहे हैं। एलेन इस खेती से काफी खुश हैं। वे दूसरे किसानों को भी जानकारी देने का काम करते हैं।
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क्या कहते हैं एलेन
एलेन कुजूर का कहना है कि परंपरागत खेती से अलग हमें दूसरे खेती की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। परंपरागत खेती में नुकसान हो सकता है, परंतु पपीता और दूसरे फल की खेती में नुकसान की आशंका कम है। किसानों को बाजार की आवश्यकता के अनुसार अपनी खेती को बदलने की जरूरत है।
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क्या कहते हैं अधिकारी
कुडू बीडीओ मनोरंजन कुमार का कहना है कि सरकार इस प्रकार की खेती के लिए सहयोग देती है। यदि किसानों को सरकार की योजना का लाभ लेना है तो उन्हें प्रखंड कार्यालय आ कर मिलना चाहिए। सरकार स्वरोजगार को बढ़ावा देने को लेकर प्रतिबद्ध है। वे खुद क्षेत्र भ्रमण कर खेती का निरीक्षण करेंगे।