पहले खेतों में सड़ती थी टमाटर की लाली, ऐसे आई खुशहाली
Tomato farming. खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी की उर्वरता के कारण यहां के किसान बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती करते हैं।
लातेहार, उत्कर्ष पाण्डेय। ट्रक चालकों ने रास्ता क्या दिखाया लातेहार के टमाटरों के पांव निकल आए। दूसरे राज्यों में पहुंचने के साथ-साथ विदेश तक इसकी धमक हो गई है। चीन, दुबई, नेपाल और बांग्लादेश के किचन तक पहुंच हो गई है। अब ज्यादा उत्पादन होने पर भी फेंकने की नौबत नहीं आती। यह हाल के दो-चार साल की प्रगति है। अब नक्सल प्रभावित लातेहार जिले के टमाटर से व्यवसायी लाल हो रहे हैं।
इन दिनों लातेहार के बालूमाथ व बारियातू प्रखंड में उत्पादित टमाटर की सप्लाई देश के विविध हिस्से से लेकर विदेशों तक में हो रही है। जाने माने कृषि वैज्ञानिक डॉ. अमरेश चंद पाण्डेय ने बताया कि इस इलाके में उन्नत किस्म के टमाटर का उत्पादन होता है। खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी की उर्वरता के कारण यहां के किसान बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती करते हैं। फिलवक्त इलाके का टमाटर देश के प्रमुख शहरों के अलावा बांग्लादेश, नेपाल, चीन व दुबई तक पहुंच रहा है।
खेतों से निकले टमाटर।
ऐसे शुरू हुई बाहर सप्लाई
पहले गांव में टमाटर का अच्छा उत्पादन होने के बाद भी किसान लोकल बाजार में टमाटर बेचने को विवश थे। अधिक पैदावार होने और स्थानीय बाजार में उतनी मांग न होने के कारण सीजन में 50 पैसे किलो तक के खरीदार नहीं मिलते। स्थानीय किसानों को रोजाना बड़े पैमाने पर सड़कों के किनारे टमाटर फेंकना पड़ता था। दो-तीन साल पहले की बात है, पंजाब के ट्रक ड्राइवरों ने इलाके से गुजरने के दौरान टमाटर को पंजाब ले जाकर बेचना शुरू किया। इसके बाद अन्य राज्यों से आने वाले ट्रक ड्राइवर भी यहां के टमाटर को अपने इलाके में लेकर जाने लगे। इसी के साथ यहां के टमाटर की ख्याति फैलने लगी। फिर मिनी ट्रक से लेकर बड़े बड़े ट्रकों से देश की प्रमुख मंडियों को टमाटर की सप्लाई यहां से शुरू हो गई।
विदेश जाने के लिए निकला रोजाना 400 टन
टमाटर का व्यवसाय करने वाले मो. दानिश, मो. डब्लू, अर्जुन, आलोक व दीपक आदि ने बताया कि बीते दो सालों से यहां से 400 टन टमाटर रोजाना विदेश जाने के लिए निकलता है। स्थानीय किसानों से टमाटर फिलहाल 8 रुपये प्रति किग्रा की दर से खरीदी जा रही है। इसके बाद पैकिंग और ट्रांसपोर्टिंग का खर्च जोड़कर दूसरे देश के बार्डर तक इसे 25 से 30 रुपये प्रति किग्रा की दर से मुहैया करा दिया जाता है। दुबई और चीन आदि को टमाटर की सप्लाई दिल्ली के बड़े करोबारी दोबारा पैकिंग कर फ्लाइट के जरिए करते हैं।
टमाटर की ढुलाई करने वाले चालकों ने जो बताया
वाहन चालक मो. शमसेर बताते हैं कि बीते दो साल वे टमाटर के सीजन में इलाके से टमाटर लेकर बांग्लादेश बार्डर तक जाते हैं। मांग के अनुरूप सप्लाई कभी भी पूरी नहीं हो पाती। मो. अरशद ने बताया कि इलाके से अपनी गाड़ी में टमाटर लेकर वे नेपाल जाते हैं। पूरे सीजन तक लगभग 40 गाडिय़ां सिर्फ टमाटर की ढुलाई में लगी रहती हैं।
स्थानीय किसानों में बदलाव
टमाटर की खेती करने वाले अजय प्रसाद ने बताया कि टमाटर की मांग बढऩे के कारण खेती करने की सार्थकता बढ़ी है। पहले टमाटर को फेंकना पड़ता था लेकिन अब हमारा टमाटर विदेशों तक में पहुंच जा रहा है। सहदेव ने कहा कि टमाटर की फसल खेत से लाने के बाद सीधे खरीदार के पास जाते ही वजन कर भुगतान कर दिया जाता है। विनीता देवी कहती हैं कि टमाटर की फसल बेचकर ही पूरे साल उनके घर का खर्च और बच्चों की पढ़ाई चलती है। सिर्फ टमाटर की फसल बेचकर छोटे से छोटे किसान भी कम से कम एक लाख रुपये सालाना बचा ले रहे हैं। दूसरी फसल से कमाई करते हैं सो अलग। बड़े रकबे में खेती करने वालों को तो दस लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है।
बाहर भेजने के लिए हो रही टमाटर की लोडिंग।
पैकिंग से कमाई
टमाटर की पैकिंग करने वाले मजदूरों की भी पूरे सीजन चांदी रहती है। यहां प्रति कैरेट पैकिंग और लोडिंग के लिए 10 रुपये दिए जाते हैं। दिन भर में एक मजदूर एक पिकअप वैन में 105 कैरेट टमाटर की लोडिंग कर लेता है। इससे उसे 1050 रुपये की आमदनी एक दिन में हो जाती है। पूरे सीजन एक - एक मजदूर सिर्फ पैकिंग और लोडिंग का काम करके ढाई लाख रुपये तक कमा लेता है।
टमाटर की दो किस्म
लातेहार जिले के बालूमाथ व बारियातू के इलाके में दो किस्म के टमाटर की खेती की जाती है। गुलशन नामक किस्म के टमाटर का छिलका मोटा होता है। इसका इस्तेमाल सब्जी और विशेष तौर पर सलाद के रूप में किया जाता है। वहीं सलेक्शन नामक किस्म के टमाटर के छिलके की परत नरम होती है इसका इस्तेमाल सिर्फ सब्जी, चटनी और टोमैटो कैचअप के लिए किया जाता है।