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स्कूलों में शिक्षकों का टोटा, कैसे संवरे भविष्य

उत्कर्ष पांडेय लातेहार जिला मुख्यालय में शिक्षा हमें जितनी अनिवार्य और सुलभ नजर आती है गा

By JagranEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 06:08 PM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 06:08 PM (IST)
स्कूलों में शिक्षकों का टोटा, कैसे संवरे भविष्य
स्कूलों में शिक्षकों का टोटा, कैसे संवरे भविष्य

उत्कर्ष पांडेय, लातेहार : जिला मुख्यालय में शिक्षा हमें जितनी अनिवार्य और सुलभ नजर आती है, गांवों में उतनी ही दुर्लभ और उपेक्षित है। सबके लिए शिक्षा आधारभूत आवश्यकता है लेकिन गांव में इसका मोल शायद कुछ भी नहीं। गांव के स्तर पर छात्र-छात्राओं का मन नहीं होने पर स्कूल छोड़ देना आम बात है। ग्रामीण लड़कियों की शिक्षा को लेकर काम करने वाली संस्था ड्रिम्स के अविनाश ने बताया कि लातेहार जिले में बालिका शिक्षा की स्थिति में सुधार की गति तो अच्छी है। लेकिन गांवों में अब भी हकीकत यही है कि स्थित सरकारी विद्यालयों में आठवीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद हर साल 100 में से औसतन 14 लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं। पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों ने जो कहा :

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गांवों के स्तर पर वास्तविकता का पता लगाने के लिए दैनिक जागरण की टीम जिला मुख्यालय से दूर सुदूर गांवों में जाकर कई लड़कियों से बात की। बसिया गांव में रेखा (बदला हुआ नाम) मिली। उसने अपनी उम्र 18 वर्ष बताई और बताया कि पांचवी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी है। जब पांचवी में थी तो चाची के छोटे बच्चे थे। उनकी देखभाल के लिए पढ़ाई छूट गई। रेखा अपने माता-पिता की मदद करने के लिए उनके साथ म•ादूरी करती है। क्या वो दोबारा पढ़ना चाहेगी के सवाल पर कहा कि अब पढ़ना नहीं चाहती। मां-पिता काम करते हैं, उन्हीं की मदद करना है। हमसे छोटे भाई-बहन हैं इसलिए मां पिता अकेले कहां तक करेंगे। मैं उनका हाथ बंटा रही हूं। खाड़ गांव की कविता (बदला हुआ नाम) ने बताया कि उनकी उम्र 15 साल है। उसने बताया कि मैने पांच साल पहले पढ़ाई छोड़ दी थी क्योंकि स्कूल जाने का मन नहीं था। स्कूल में पढ़ाई तो होती थी लेकिन हमारा मन ही नहीं लगता था। हमें घर में रहना अच्छा लगता है। मां अकेले रहती हैं तो उनकी मदद करने के लिए हमने स्कूल छोड़ दिया। यहीं पानी भरकर खाना बनाते हैं, इस ही तरह दिन बीत जाता है। दोबारा स्कूल में नामांकन की बात पर साफ कह दिया कि स्कूल नहीं जाएगी। गांव वालों ने बताया कि रेखा व कविता की कहानी तो महज बानगी भर है, गांवों में बहुत सी लड़कियां हैं जो प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं। जिले के 79 हाईस्कूल में शिक्षकों की कमी :

जिले में हाईस्कूलों की संख्या 79 है। लेकिन किसी भी स्कूल में विषयवार शिक्षक नहीं हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि 56 हाईस्कूल में प्रयोगशाला कक्ष ही नहीं है। जहां कहने मात्र को प्रयोगशाला कक्ष है वहां उपकरणों का टोटा बना हुआ है। उदाहरण के लिए प्लस टू विद्यालय चंदवा में भौतिकी और रसायन के शिक्षक नहीं हैं। वहीं जिला मुख्यालय लातेहार में स्थित प्लस टू विद्यालय लातेहार में गणित और रसायन के शिक्षक नहीं है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जिले भर के हाईस्कूलों में क्या स्थिति होगी। तीन वर्षों से हो रहा है रिजल्ट में सुधार :

मैट्रिक के रिजल्ट में तीन वर्षों से लातेहार जिले में निरंतर सुधार हो रहा है। वर्ष 2018 में रिजल्ट 38.19 फीसद, वर्ष 2019 में 53.93 फीसद व 2020 में 66.69 फीसद रिजल्ट रहा।


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