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आदिम जनजाति की महिला की मौत के चौथे दिन बाद हुई नसीब मिट्टी

महुआडांड़ : महुआडांड़ प्रखंड के अंबवाटोली निवासी 82 वर्षीय आदिम जनजाति की महिला बुधनी बृ

By JagranEdited By: Published: Thu, 03 Jan 2019 05:55 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jan 2019 05:55 PM (IST)
आदिम जनजाति की महिला की मौत के चौथे दिन बाद हुई नसीब मिट्टी
आदिम जनजाति की महिला की मौत के चौथे दिन बाद हुई नसीब मिट्टी

महुआडांड़ : महुआडांड़ प्रखंड के अंबवाटोली निवासी 82 वर्षीय आदिम जनजाति की महिला बुधनी बृजिया को पैसे के अभाव में निधन के चौथे दिन मिट्टी नसीब हो पाई। मिली जानकारी के अनुसार पैसे के अभाव के कारण मृतक के परिजन तीन दिनों से दाह संस्कार नहीं कर पा रहे थे। वहीं चार दिनों तक इस मामले की जानकारी स्थानीय प्रशासन व अपने आप को गरीबों का मसीहा का तमका लेने वाले जनप्रतिनिधि, मुखिया, पंसस, वार्ड सदस्य व राजनीतिक दल के नेताओं तक को नही हुई। इसकी जानकारी महुआडांड़ के पत्रकारों के समक्ष पहुंची तो वे घटनास्थल पर पहुंचकर मामले की जानकारी लेकर तुरंत इसकी जानकारी महुआडांड़ अनुमंडल पदाधिकारी सुधीर कुमार दास, बीडीओ प्रीति किस्कु, सीओ जुल्फीकार अंसारी व महुआडांड़ थाना प्रभारी सुरेश मुंडा को दूरभाष पर दी। तब कहीं जाकर प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की आंखे खुली व आनन फानन में सीओ जुल्फीकार अंसारी व महुआडांड़ थाना प्रभारी सुरेश मुंडा घटनास्थल पर पहुंचे तथा मृतक के परिजनों से मुलाकात कर शव का अंतिम संस्कार करने के लिए संयुक्त रूप से अपनी ओर से मृतक के परिजनों को दो हजार रुपये नगद दिया। अंचल अधिकारी जुल्फिकार अंसारी ने स्थानीय पंचायत के मुखिया को मृतक के परिजनों को अविलंब 50 किलो चावल, 5 किलो दाल, आलू, तेल, मसाला इत्यादि उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। मिली जानकारी के अनुसार मृतका काफी दिनों से बीमार थी। पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पा रही थी। ठंड व बीमारी से 82 वर्षीय आदिम जनजाति की महिला बुधनी बृजिया की मृत्यु गत चार दिनों पूर्व सोमवार को हो गई थी। परंतु पैसे के अभाव में उसके परिजन शव का अंतिम संस्कार नही कर रहे थे। चार दिनों तक शव घर में पड़ा था। लोगों ने बताया कि मृतका बुधनी बृजिया छत्तीसगढ़ के बरदला बालापानी की रहने वाली थी। आर्थिक स्थिति काफी दयनीय रहने के कारण 40 वर्ष पूर्व कामकाज की तलाश में महुआडांड़ आकर किराया के घर में अपने परिवार के साथ रह रही थी। यहां भी उनलोगों की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी। पति का पूर्व मे ही देहांत हो चुका था। मृतका का एक पुत्र एवं एक पुत्री है जो कि शादी शुदा हैं। किसी तरह से मजदूरी करके घर का खर्च चलते हैं। वहीं चालीस वर्ष से रहने के बाद भी आदिम जनजाति समुदाय के होने के बावजूद भी आदिम जनजाति के लोगों को मिलने वाला सरकारी लाभ, राशन कार्ड, वृद्धा पेंशन आदि से भी वंचित थी। हालांकि मृतका के द्वारा राशन कार्ड के लिए कई बार अंबाटोली के मुखिया संजय एक्का के घर का चक्कर लगाया गया। मगर उसको सरकारी लाभ नही मिल पाया।

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