लाह की कमाई से लाल होंगे किसान
उत्कर्ष पाण्डेय लातेहार लातेहार जिले में 30 वर्षों बाद फिर से लाह की खेती शुरू हो गई ह
उत्कर्ष पाण्डेय, लातेहार : लातेहार जिले में 30 वर्षों बाद फिर से लाह की खेती शुरू हो गई है। लाह की अच्छी किस्म के उत्पादन में पूरी दुनिया में विशिष्ट पहचान रखने वाले लातेहार जिले के गांव की अर्थव्यवस्था एक बार लाह की लाली से चमक सकती है। पलाश के बड़े-बड़े जंगल और बैर के पौधों की प्रचुरता के कारण अब नक्सल प्रभावित हरातू, नकईटांड़, जान्हो, कोपे जैसे गांवों के किसान जिला प्रशासन के निर्देशन में लाह उत्पादन में जुट गए हैं। दस माह पूर्व दैनिक जागरण की ओर से कराए गए वेबीनार में झारखंड राज्य के कृषि मंत्री बादल पत्र लेख की ओर से लाह उत्पादन को लेकर स्पष्ट निर्देश जारी होने के बाद जिला प्रशासन ने तत्परता दिखाई और अब गांवों में बैर व पलाश के पेड़ पर लाह नजर आने लगे हैं। इस इलाके में लाह के प्रकार
मुख्यत: दो प्रकार के लाह इस क्षेत्र में उत्पादित किए जाते हैं। बैर और पलाश नामक ये लाह बैर एवं पलाश के पेड़ पर उगते हैं जो जिले में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। लाह उत्पादन के लिए पेड़ों की छंटाई ही एक मात्र मेहनत का काम है। इसके उपरांत इसमें कोई खास मेहनत नहीं है। क्या कहते हैं विशेषज्ञ
लाह विशेषज्ञ कैलाश गुप्ता ने कहा कि लाह उत्पादन के लिए जिले में संभावना की कमी नहीं है। मगर लोग जागरूक नहीं हैं, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में लातेहार का नाम दर्ज होने के बावजूद भी जिले में निवास करने वाली नई पीढ़ी में कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें लाह का नाम तक नहीं पता। सरकार की ओर से इस दिशा में सार्थक पहल अच्छी कोशिश है। यह कम लागत में बेहतर लाभ देने वाला रोजगार है। किसान वीरेंद्र मुंडा, विक्रम उरांव, राहुल कुमार, अमर कुमार समेत कई किसानों ने कहा कि लाह की खेती के लिए बीते छह माह के दौरान प्रशासनिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाई गई। कई स्थानों पर ग्रामीणों को प्रशिक्षण भी दिया। इलाके के अनुसार वहां की भौगोलिक स्थितियों की जानकारी लेकर उन्नत किस्म के लाख कीट मुहैया कराने से लाह की खेती शुरू हो गई है। यदि उत्पादन बेहतर हुआ निश्चित तौर पर इलाके को नई पहचान मिल जाएगी।