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महज कागजी खानापूर्ति से कर लिया सेव द गर्ल चाइल्ड

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन झारखंड के निर्देश पर गत 25 फरवरी से 9 मार्च तक मनाया जानेवाला सेव द गर्ल चाइल्ड पखवाड़ा जिले में महज कागजी खानापूर्ति के साथ पूरा कर लिया गया। निदेशक एनआरएचएम के पत्र के आलोक में सिविल सर्जन कोडरमा ने जिले के अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की जांच के लिए एक टीम गठित की थी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Mar 2019 11:04 PM (IST)Updated: Sat, 09 Mar 2019 11:04 PM (IST)
महज कागजी खानापूर्ति से कर लिया सेव द गर्ल चाइल्ड
महज कागजी खानापूर्ति से कर लिया सेव द गर्ल चाइल्ड

कोडरमा : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन झारखंड के निर्देश पर 25 फरवरी से 9 मार्च तक मनाया जानेवाला सेव द गर्ल चाइल्ड पखवाड़ा जिले में महज कागजी खानापूर्ति के साथ पूरा कर लिया गया। निदेशक एनआरएचएम के पत्र के आलोक में सिविल सर्जन कोडरमा ने जिले के अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की जांच के लिए एक टीम गठित की थी। टीम को 4 से 9 मार्च तक प्रतिदिन जिले में संचालित अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की सघन जांच कर चेकलिस्ट के साथ जांच प्रतिवेदन समर्पित करने का निर्देश दिया गया था। लेकिन 9 मार्च को अभियान समाप्त हो गया। इस बीच केवल दो दिन ही टीम अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की जांच के लिए निकली और औपचारिकता के रूप में चार अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की जांच की। जबकि जिले में अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की कुल संख्या 16 है। अभियान के प्रति अधिकारियों के रवैया की सबसे बड़ी बानगी है कि सिविल सर्जन द्वारा अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की जांच के लिए गठित टीम कभी भी अपने फूल स्ट्रेंथ के साथ नहीं निकली। सिविल सर्जन द्वारा अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों की जांच के लिए गठित टीम में कार्यपालक दंडाधिकारी संतोष सिंह, कोडरमा सदर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. रंजन कुमार, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रद्धा, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. भारती सिन्हा और एनजीओ के कार्यकर्ता असीम सरकार को रखा गया था। लेकिन 8 मार्च को की गई जांच में डीएस डॉ. रंजन कुमार, डॉ. भारती सिन्हा और एनजीओ कार्यकर्ता असीम सरकार ने झुमरीतिलैया शहर में संचालित ओम साईं क्लिनिक की जांच की, जबकि 9 मार्च को जांच टीम के केवल दो सदस्य डॉ. भारती सिन्हा और असीम सरकार ने झुमरीतिलैया शहर के तीन क्लिनिकों में जांच के लिए गई, जिसमें एक राहत अल्ट्रासाउंड बंद पाया गया। दो क्लिनिक सहारा अल्ट्रासाउंड और एडवांस अल्ट्रासाउंड की जांच की गई, जिसमें सब कुछ सामान्य पाया गया। पूरे अभियान में एक भी दिन टीम में कार्यपालक दंडाधिकारी शामिल नहीं रहे, जबकि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों को सील करने या इनके विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई के लिए कार्यपालक दंडाधिकारी का रहना आवश्यक होता है। कहते हैं सिविल सर्जन सिविल सर्जन डॉ. हिमांशु भूषण बरवार ने माना कि पखवाड़ा के तहत मात्र दो दिन के अभियान में चार अल्ट्रसाउंड क्लिनिकों की जांच की गई है, जिसमें कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। उन्होंने कहा कि स्टेट से अभियान को 15 मार्च तक कर देने की खबर है, आगे बचे क्लिनिकों की जांच की जाएगी। जिले में लिगानुपात में भयावह गिरावट

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जिले में अल्ट्रसाउंड क्लिनिकों के चालू होने के बाद पिछले दो दशक में लिगानुपात में भयावह गिरावट आई है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार जहां जिले का लिगानुपात 1001 था, वह अब घटकर 814 पर पहुंच गया है। यहां संचालित अल्ट्रसाउंड क्लिनिकों में भ्रूण जांच धड़ल्ले से हो रहा है और नर्सिंग होमों में कन्या भ्रूण हत्या भी हो रही है, लेकिन विभाग का दस्ता और सरकारी अमला इसपर अंकुश लगाने में पूरी तरह से विफल है। नियमानुसार क्लिनिकों के खुलने और बंद होने की सूचना कई क्लिनिकों में अंकित नहीं होती है। रेडियोलॉजिस्ट व सहयोगी टेक्निशियन गाउन या ड्रेस में इक्का दुक्का छोड़कर कहीं नहीं होते हैं। कुछ क्लिनिक तो सप्ताह में एक-दो दिन ही खोलने का आदेश प्राप्त कर रखे हैं, लेकिन वह कौन सा दिन है, इसे भी बोर्ड में डिस्प्ले नहीं किया गया है।

बेटी बचाओ अभियान के लिए मिल चुका है राष्ट्रीय पुरस्कार

बेटी बचाओ अभियान के तहत कोडरमा जिला को इस वर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। लेकिन बेटी बचाने के सरकार व स्वास्थ्य विभाग के इस अभियान के प्रति अधिकारियों की उदासीनता कुछ और ही बयां कर रहा है। क्या है पीसी एंड पीडीटी एक्ट

अल्ट्रासाउंड क्लिनिकों को नियंत्रण में रखने के लिए बना इस एक्ट के तहत रेडियोलॉजिस्ट, गायनोकोलॉजिस्ट ही मशीन संचालित करेंगे। क्लिनिक के निबंधन के बाद ही मशीन खरीदी जा सकती है। निबंधन स्थल का होता है। मकान, डॉक्टर आदि परिवर्तन करने से पहले अनुमति प्राप्त करना होता है। कानून के तहत एप्रोप्रिएट ऑथोरिटी जिले के उपायुक्त होते हैं। इसमें जिला निरीक्षण, अनुश्रवण व जिला सलाहकार समिति होते हैं।


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