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स्‍टाइल में सुन रहे हैं कनफोड़ू म्‍यूजिक तो कर लें वॉल्‍यूम धीमा, हो सकते हैं दिल की बीमारी व बहरेपन का शिकार

कानफोड़ू अंदाज में गाने बजाए जाने के कितने नुकसान हैं इसका आप सोच भी नहीं सकते हैं। दिल की बीमारी और बहरेपन के अलावा इससे मौत तक हो सकती है। अकेले यूरोप में हर साल इससे 16600 से अधिक लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenPublished: Thu, 18 May 2023 11:49 AM (IST)Updated: Thu, 18 May 2023 11:49 AM (IST)
स्‍टाइल में सुन रहे हैं कनफोड़ू म्‍यूजिक तो कर लें वॉल्‍यूम धीमा, हो सकते हैं दिल की बीमारी व बहरेपन का शिकार
कानफोड़ू संगीत से दिल की बीमारी व बहरेपन के हो सकते हैं शिकार

रविंद्र नाथ, कोडरमा। शादी-ब्याह, धार्मिक आयोजन, रैलियों में कानफोड़ू संगीत अब सामान्य बात हो गई है। इससे ध्वनि प्रदूषण होता है यह सातवीं क्लास के बच्चे को भी पता होता है, लेकिन इससे मनुष्यों के साथ-साथ अन्य जीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की जानकारी कितने लोगों को है।

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कनफोड़ू म्‍यूजिक जान पर भी भारी

समारोह में बड़ी शान से जिस तरह कानफोड़ू अंदाज में गाने बजाए जाते हैं, उससे यही लगता है कि इससे स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान की अधिकतर लोगों को जानकारी ही नहीं है और जिन्हें जानकारी है, उन्हें चिंता ही नहीं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण भी स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक पर्यावरणीय खतरों में से एक है। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण के कारण अकेले यूरोप में हर साल 16,600 से अधिक लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है। साथ ही 72,000 से अधिक लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अनदेखी

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2005 में आदेश दिया था कि लाउडस्पीकर की आवाज 75 डीबी से कम होनी चाहिए। आपात स्थिति को छोड़कर रात में (रात 10 से सुबह छह बजे तक) लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, आज भी ग्रामीण क्षेत्र में धार्मिक स्थलों पर सुबह चार या पांच बजे से ही लाउडस्पीकर तेज आवाज में बजने लगता है।

यही नहीं, हेडफोन्स और ईयरबड्स 85 से 110 डेसिबल तक ध्वनि उत्सर्जित कर सकते हैं। इंजन के आकार के आधार पर मोटरसाइकिलों से 73-77 डीबी और कार से 82 डीबी तक शोर होता है। यानि घर से लेकर बाहर तक हर जगह ध्वनि प्रदूषण का गंभीर खतरा बना हुआ है। बता दें कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 के उल्लंघन पर कारावास और जुर्माने का प्रविधान है।

आठ घंटे लगातार शोर में रहने से बच्चों में बहरेपन का जोखिम

ईएनटी विशेषज्ञ डा. मनोज कुमार ने बताया कि 2018 में अध्ययनों की समीक्षा में वैज्ञानिकों ने पाया कि बड़ी संख्या में बच्चे ध्वनि प्रदूषण से बहरेपन का शिकार होते जा रहे हैं।

आठ घंटे लगातार शोर के संपर्क में रहने से बच्चों में स्थायी बहरेपन का जोखिम काफी बढ़ सकता है। द इंडियन जर्नल आफ पीडियाट्रिक्स में छपे शोध के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण भ्रूण, शैशवावस्था और किशोरावस्था सहित विकास की आयु वाले बच्चों में समस्या आ सकती है।

कई देशों ने की पहल

सऊदी अरब ने 2021 में धार्मिक आयोजनों के लिए लाउडस्पीकर की आवाज को एक-तिहाई तक सीमित करने का निर्देश दिया। इंडोनेशिया ने भी आवाज कम रखने के निर्देश दिए।


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