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जुबान से निकलकर सीधे हृदय तक पहुंचती है मातृभाषा

बिना सीमाओं वाली भाषाएँ । हां यहीं थीम है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2020 की ।राष्ट्रसंघ प्रत्येक वर्ष विश्व मातृभाषा दिवस का थीम तैयार कर्ता है ।21 फरवरी को मातृभाषा के प्रति सम्मान प्रेम आदर देने की यह परंपरा 1991 से मनाया जा रहा है ।यह दिवस हमें जागरूक बनाता है कि किस प्रकार मातृभाषा मे कही लिखी और समझी गई बातें मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती है तथा उसके मस्तिष्क को सींचती है ।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Feb 2020 07:54 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2020 07:54 PM (IST)
जुबान से निकलकर सीधे हृदय तक पहुंचती है मातृभाषा
जुबान से निकलकर सीधे हृदय तक पहुंचती है मातृभाषा

कोडरमा: बिना सीमाओं वाली भाषाएं। यही थीम है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2020 का। राष्ट्रसंघ प्रत्येक वर्ष विश्व मातृभाषा दिवस का थीम तैयार करता है। 21 फरवरी को मातृभाषा के प्रति सम्मान, प्रेम, आदर देने की यह परंपरा 1991 से मनाई जा रही है। यह दिवस हमें जागरूक बनाता है कि किस प्रकार मातृभाषा में कहीं, लिखी और समझी गई बातें मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती है तथा उसके मस्तिष्क को सींचती है। मातृभाषा की अहमियत को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को ने ही 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस घोषित किया, ताकि हर देश की सरकार मातृभाषा को अहम दर्जा दें, स्वीकृति दें। मातृभाषा किसी  वंश और जाति के लोगों की अपनी मूल भाषा  होती है, जो जुबान से निकलकर सीधे हृदय तक पहुंचती है। दुनिया के जितने भी विकसित देश है, वहां के बच्चे प्रारंभिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में ही ग्रहण करते हैं। मातृभाषा बोलने और लिखने के लिए विशेष आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह स्वत: फूटती और निकलती है। गुरूदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने कहा था कि मातृभाषा मां के दूध के समान है, जो बच्चों को पुष्ट बनाती है। यह शहद की तरह है जो बोलने वाले को शांति और सुकून प्रदान करती है। भाषाई  व सांस्कृतिक विविधता, बहुभाषिता को बढ़ावा देने के  उद्देश्य से पूरे विश्व मे मातृभाषा  दिवस मनाने मूल कारण पूर्वी पाकिस्तान का भाषा आन्दोलन है। पूर्वी पाकिस्तान के  अवाम को अपने मातृभाषा के प्रति प्रेम और उनके द्वारा  बांग्ला को राजभाषा की दर्जा दिए जाने की सरकार से की जाने वाले  मांग पर तत्कालीन पाकिस्तान के सुप्रीमो  मो.अली जिन्ना ने पूर्वी  पाकिस्तान में 22 मार्च  1948 को एक सभा कर आन्दोलन बंद करने की चेतावनी देते हुए उर्दू को ही  एकमात्र  भाषा के रूप मे मान लेने को कहा, जिसके फलस्वरूप आन्दोलन और तेज हो गया लोग मातृभाषा के लिए  सड़कों पर उतरे। कवि, बुद्धिजीवी, छात्र,लेखक, समाजसेवी सभी ने एक सूत्र से अपनी मातृभाषा के सम्मान के लिए आन्दोलन में शामिल होने लगे। सरकार  की दमनकारी नीति के खिलाफ यह आन्दोलन और तेज होता गया। 21 फरवरी 1952 मे ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों और कुछ प्रबुद्धजनों ने मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया और यह प्रदर्शन नरसंहार में बदल गया। पाकिस्तान सरकार की पुलिस ने इन प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसा दी। इस घटना में 'रफीक,जब्बार, शफीउल, सलाम,बरकत जैसे छात्रों के साथ 16 लोगों की जान चली गई। बाद में भाषा के इस बड़े आन्दोलन से अलग देश का निर्माण बांग्लादेश के रूप मे हुआ। बांग्लादेश मे '21 फरवरी' शहीद दिवस के रूप मे मनाया जाता है ।भाषा के इस बड़े आन्दोलन मे शहीद हुए मातृभाषा प्रेमियों की याद में 1999 मे यूनेस्को ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की। कहा सकते है कि बांग्ला भाषा बोलने वालों का मातृभाषा के लिए प्यार की वजह से ही आज पूरे विश्व मे यह दिवस मनाया जाता है। विश्व  मे तकरीबन 6 हजार से भी ज्यादा भाषा है। विश्व  के प्राय: 43 फिसद भाषा संकट में है। हर दो सप्ताह मे एक भाषा  पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत के साथ  विलुप्त हो रही है। राष्ट्रीय एकता के ²ष्टिकोण से भिन्न -भिन्न भाषाओं को संरक्षण और उसमें ताजातरीन लाने के लिए यह एक संयुक्त प्लेटफार्म है ,जिससे राष्ट्रीय एकता, प्रेम, और सछ्वावना का संपूर्ण विकास हो सके। जहां दुनिया मे अगले 40 साल में चार हजार से अधिक भाषाओं के खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। वहीं भारत जैसे देश बहुभाषी देश में जहां के  लिए यह कहावत मशहूर है कि कोस-कोस में पानी बदले और कोस-कोस में वाणी। यह भयावह है कि अंग्रेजी के कारण नये  तरह की  अपभ्रंश वाली भाषा की उत्पत्ति हो रही है। पूर्वी राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने स्वयं के  अनुभव के आधार पर कहा कि मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना क्योंकि मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा मे प्राप्त की थी। मातृभाषा के साथ एक भावनात्मक सम्पर्क होता है, जिसे खोने का मतलब अपनी भावनाओं और संवेदनाओं से नाता तोड़ लेना है। इस दिवस मे हम यही प्रतिज्ञा  करें कि मातृभाषा अगर हमारी मां है  तो अन्य भाषाएं  मौसी के समान सम्मानीय है। तभी  हम सीमाओं वाली  भाषाएं के  इस थीम को स्वीकार कर पाएंगे।

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संदीप मुखर्जी

सचिव,  निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन कोडरमा इकाई ।


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