अपनों से दूर करती है अहंकार की अज्ञानता : दशरथ
मनुष्य कितनी भी ऊंचाइयों को क्यों नहीं छू लें अपनी संस्कृति
संवाद सहयोगी, जयनगर कोडरमा : मनुष्य कितनी भी ऊंचाइयों को क्यों नहीं छू लें, अपनी संस्कृति, संस्कार व जड़ से नहीं कटना चाहिए। अपने अतीत को नहीं भूलना चाहिए। अपने अंदर अहंकार की भावना को नहीं आने दें तो उसे जीवन में कभी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह सब हमें संस्कृति की ज्ञान से मिलता है। नैतिक शिक्षा से मिलता है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम वाली है। इसमें सभी को समान भाव से देखा जाता है। सभी के प्रति सम्मान का भाव मन में रखा जाता है। दैनिक जागरण संस्कारशाला की संस्कृति से संस्कार प्रसंग में मौसी (गुड्डी) ने दिल्ली से दीदी के गांव आने के बाद जिस तरह लोगों से घुल मिलकर बर्ताव किया, वह उसके सुसंस्कारों का ही नतीजा है। यह प्रसंग हमें इस बात की शिक्षा देता है कि खुद के अभिमान में दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृति हमें समाज से अलग करती है। मौसी ने अपने व्यवहार से लोगों को इतना प्रभावित किया कि उसके बारे में परिवार के लोगों की सारी पूर्व धारणा गलत साबित हुई। मतलब साफ है। कई बार थोड़ी सी संपन्नता आने पर हमारे अंदर अज्ञानतावश अहंकार का भाव आ जाता है। हम दूसरों को नीचा समझने लगते हैं। यही भाव हमें अपनों से दूर करता है। क्योंकि भौतिक सुख असली सुख नहीं है। जो सुख अपनत्व में है, वह विलासिता की चीजों में नहीं। यदि हम अपने अंदर ज्ञान का प्रकाश जगाकर अपने मूल से जुड़े रहें तो हमें जीवन में कहीं भी कोई तकलीफ नहीं होगी। साथ ही हम हर जगह सम्मान के अधिकारी होंगे। दशरथ राणा, डायरेक्टर, आदर्श शिशु प्लस टू उवि बाघमारा, जयनगर।