नवरात्र में भतुआ की बढ़ी मांग, स्वास्थ्य के लिए भी है गुणकारी
माता के चरणों में कटने को तैयार है भुआ अष्टमी-नवमी कीसंधि बेला दी जाती है बलि संवाद सहयोगी कोडरमा नवरात्र में अष्टमी-नवमी की संधि बेला में बलि का काफी महत्व है। वैसे
संवाद सहयोगी, कोडरमा: नवरात्र में अष्टमी-नवमी की संधि बेला में बलि का काफी महत्व है। वैसे तो शास्त्र व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पशु बलि देने की परंपरा है, लेकिन पशु के स्थान पर आजकल अधिकतर जगहों पर भतुआ की बलि दी जाती है। कई स्थानों पर नवरात्र में कलश स्थापना के साथ बलि के जरिए माता को प्रसन्न किया जाता है। जबकि संधि पूजा के दौरान बलि आवश्यक रूप से दी जाती है। पुरोहित लक्ष्मीकांत पांडेय ने बताया कि शनिवार को 11 बजे दिन तक अष्टमी है और उसके बाद नवमी का प्रवेश हो जाएगा और इसी शुभ मुहूर्त में संधि पूजा के दौरान भतुआ बलि देंगे। वहीं बेलाटांड़ दुर्गापूजा समिति के पुरोहित दिवाकर बताते हैं कि पशु बलि देने के पीछे उद्देश्य पाश्विकता की बलि देना है। शास्त्र के अनुसार पशु बलि देने के नियम है, लेकिन विकल्प के तौर पर भतुआ, केला व ईख की भी बलि दी जाती है। कई स्थानों पर इन तीनों की बलि दी जाती है। 6 महीने से अधिक समय बाद भी नहीं होता है खराब
नवरात्र में भतुआ बलि को लेकर बाजार में इसकी मांग बढ़ गई है। झुमरीतिलैया बाजार में बड़े पैमाने पर इसकी बिक्री हो रही है। भतुआ कई खासियत से भरा फल है। जहां इस 6 महीने से अधिक समय तक रखने के बावजूद यह सड़ता-गलता नहीं है। वहीं इससे पेठा और कई तरह की मिठाइयां भी बनाई जाती हैं। साथ ही इसे अलग-अलग दाल के साथ मिलाकर बरी भी तैयार की जाती है, जिसका इस्तेमाल सब्जी के रूप में किया जाता है। इसे सफेद कुम्हड़ा के नाम से भी जाना जाता है। झुमरीतिलैया बाजार में भतुआ 50-70 रूपए के भाव से बिक रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संधि पूजा के वक्त इसकी बलि देने के बाद इसे हवनकुंड की अग्नि में प्रवाह किया जाता है।
आयुर्वेद के लिहाज से काफी अहम है भतुआ
धार्मिक और पौराणिक महत्व के साथ कई खूबियों से परिपूर्ण भतुआ आयुर्वेद के लिहाज से भी काफी अहम है। इसका सेवन कई बीमारियों को नाश करने में सक्षम है। खासकर इसका सेवन कैंसर जैसी घातक बीमारी में असरदायक माना जाता है। आयुर्वेद चिकित्सक सुधा मिश्रा बताती हैं कि अलग-अलग प्रकार से इसका सेवन किया जा सकता है। लंबे समय तक नहीं सड़ने-गलने वाला यह फल मानसिक शांति के साथ साथ पेट और किडनी रोग में भी फायदेमंद है। वहीं इम्युनिटी बढ़ाने और वजन कम करने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।