बढ़ी ¨सचाई क्षमता, फिर भी पानी को तरसे खेत
समय के साथ-साथ आम आवाम की जरूरतों के साथ खेतों में पानी की आवश्यकता बढ़ रही है। जहां अल्पवृष्टि पूरी योजना को विफल कर रहें है, वहीं लोगों की परेशानियां भी बढ़ रही है। वर्तमान वर्ष मॉनसून सीजन में काफी कम बारिश ने कृषि व्यवस्था को चौपट कर दिया है।
कोडरमा: समय के साथ-साथ आम आवाम की जरूरतों के साथ खेतों में पानी की आवश्यकता बढ़ रही है। जहां अल्पवृष्टि पूरी योजना को विफल कर रहें है, वहीं लोगों की परेशानियां भी बढ़ रही है। वर्तमान वर्ष मॉनसून सीजन में काफी कम बारिश ने कृषि व्यवस्था को चौपट कर दिया है। इससे धान समेत अन्य खरीफ फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई। कम बारिश का असर रबी के फसल पर भी पड़ा है, जहां लक्ष्य के अनुसार फसलों की बुआई चुनौती बनी हुई है। विभाग के रिकार्ड के अनुसार पिछले चार वर्षों में करीब 3700 हेक्टेयर भूमि तक ¨सचाई सुविधा बहाल की गई है। इसमें उद्वह ¨सचाई योजना, चैकडैम व श्रृखंलाबद्ध चैकडैम निर्माण, तालाब-आहार जिर्णोद्धार शामिल है। लघु ¨सचाई विभाग द्वारा अब तक 68 योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया। इसमें खरीफ आधारित फसलीय 2960 हेक्टेयर तथा रबी आधारित 777 हेक्टेयर भूमि तक ¨सचाई क्षमता विकसित की गई। हालांकि चालू वित्तीय वर्ष विभाग ¨सचाई योजनाओं को बहाल करने में सुस्त रहा। इस वर्ष मात्र 3 योजनाओं का ही क्रियान्वयन किया गया। जबकि वित्तीय वर्ष 15-16 में 13 योजनाओं के माध्यम से 790 हेक्टयेर, वित्तीय वर्ष 16-17 में 26 योजनाओं के माध्यम से 1890 हे. तथा वित्तीय वर्ष 17-18 में 26 योजनाओं के माध्यम से 950 हेक्टेयर भूमि को ¨सचाई योग्य बनाया गया। बावजूद जिले में
खरीफ फसल के कुल करीब 40 हजार हेक्टेयर भूमि में मात्र 20 फीसदी भूमि में ही ¨सचाई की सुविधा अब तक बहाल हो पाई है। जबकि शेष भूमि पर खेती वर्षा जल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। रबी में भी हाल कुछ यही है। हालांकि रबी की फसल के लिए निचली भूमि का ज्यादा उपयोग होता है, बावजूद इस वर्ष जलस्त्रोतों में पानी का जमाव कम रहने तथा वाष्पीकरण के कारण तेजी से घटते जल रबी फसल पर ग्रहण लगा रहा है। वहीं जिले में ¨सचाई क्षमता बढ़ाने के दिशा में जिस लिहाज से कदम उठाया जाना चाहिए, वैसा नहीं है। आने वाले वर्षों में आम आवाम के साथ-साथ खेतों में भी पानी की आवश्यकता बढे़गी। ऐसे में वर्तमान कदम को धीमा माना जा रहा है। इस संबंध में जिला कृषि पदाधिकारी सुरेश तिर्की ने बताया कि प्रधानमंत्री ¨सचाई योजना के तहत कई योजनाएं चलाई जा रही है। विभाग का प्रयास कम पानी में अच्छी पैदावार का भी है। लिहाजा किसानों को तकनीकि रूप से प्रशिक्षित भी किया जा रहा है। पर ड्रॉप मोर क्रॉप के तहत भी स्प्रिंकलर व अन्य यंत्र वितरण की जा रही है। अन्य विभागों को भी प्रस्ताव दिया जा रहा है। :::::::::कृषि में बढ़ेगी पानी की जरूरतें:::::
कोडरमा: विभागों द्वारा पिछले वर्ष तैयार किये गये सर्वे रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में कृषि जरूरत के लिए 3.74 खरब लीटर पानी की आवश्यकता हो रही है। जबकि वर्ष 2020 तक जरूरत बढ़कर 4.87 खरब लीटर हो जाएगी। जो जिले में उपलब्ध सतही व भूमिगत जल की अपेक्षा अधिक होगी। सर्वे के अनुसार जिले में कुल उपलब्ध जल 5.51 खरब लीटर है। जबकि आने वाले समय में 11.15 खरब लीटर पानी की आवश्यकता होगी। इस लिहाज से कृषि के क्षेत्र में भी पानी की आवश्यकता बढ़ेगी। ::::::::छोटी ¨सचाई योजनाओं पर है जोर::::::::
कोडरमा: पानी को लेकर किये गये सर्वे के बाद छोटी ¨सचाई योजनाओं पर जोर दिया गया है। इसके तहत मध्यम इरिगेशन, लिफ्ट ऐरिगेशन, पर ड्रॉप मोर क्रॉप, माइक्रो इरिगेशन सहित अन्य ¨सचाई योजनाओं पर जोर दिया गया है। विभाग स्तर से हर खेत को पानी के तहत छोटी योजनाओं पर विशेष फोकस किया जा रहा है।