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माइका के कचरे का भी कारोबार 300 करोड़ में

कभी माइका के लिए विश्व प्रसिद्ध कोडरमा माइका फिल्ड में आज माइका के कचरे का प्रतिवर्ष कारोबार 200 से 300 करोड़ में है। यह कचरा ऐसा कुबेर का खजाना है कि जो तीन दशक में भी खत्म नहीं हो रहा है। अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष दो लाख टन माइका का निर्यात विदेशों में है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 06:52 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 06:52 PM (IST)
माइका के कचरे का भी कारोबार 300 करोड़ में
माइका के कचरे का भी कारोबार 300 करोड़ में

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जागरण संवाददाता, कोडरमा: कोडरमा माइका फिल्ड में भले ही माइका के अधिकृत लीज एक भी नहीं है, बावजूद इसके इसके कचरे का प्रतिवर्ष कारोबार 200 से 300 करोड़ में है। इससे इस क्षेत्र में संभावनाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। माइका के पुराने खदानों के बाहर ओवरबर्डन किए डंप में अभी भी माइका इतनी तादाद में है जो तीन दशकों से यहां के कारोबार को संभाले हुए हैं। हालांकि इसकी आड़ में जंगली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध माइनिग से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष दो लाख टन माइका का निर्यात विदेशों में है। सरकार ने भी एक-दो बार इस कचरे के ढेर की निलामी कर इस कारोबार को सैद्धांतिक तौर पर मान्यता दे चुकी है। दरअसल, कभी माइका के उत्पादन के लिए विश्व प्रसिद्ध रहे कोडरमा, गिरिडीह व बिहार के नवादा जिला के सीमावर्ती इलाके में वर्ष 1980 में वन सुरक्षा अधिनियम के लागू होने के बाद जंगली क्षेत्र में चल रहे सारे माइका के खदान बंद होते चले गए। तब अधिकतर खदानें जंगली क्षेत्र में ही संचालित थीं। जेएसएमडीसी ने भी अपनी खदानों को वर्ष 2003 के तक पूरी तरह से बंद कर दिया। लेकिन जंगली क्षेत्र में स्थित खदानों से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से माइका का उत्खनन जारी रहा। वहीं कारोबार को वैधानिक मान्यता देने लिए लिया गया माइका स्क्रैप का सहारा, जिसे स्थानीय बोलचाल की भाषा में ढिबरा कहते हैं। तर्क दिया गया कि माइका खदानों के बाहर पूर्व में उत्खनन के दौरान जमा हुए कचरे से ढेर से स्थानीय मजदूर माइका के छोटे-छोटे टुकड़े चुनकर लाते हैं, यही माइका स्क्रैप यानी ढिबरा कारोबार व्यापारी कर रहे हैं। बिहार माइका एक्ट से अनुसार दो इंच से छोटा माइका स्क्रैप की श्रेणी में आता है, जिसपर कोई टैक्स लागू नहीं होता है। दो वर्ष पूर्व स्थानीय जनप्रतिनिधियों के स्तर से जब माइका के कारोबार के पुनर्जीवित करने की मांग उठी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के निर्देश पर खनन विभाग ने जिले के कुछ माइका डंपों की निलामी के लिए निविदा निकाली, ताकि कारोबार को वैधानिकता प्रदान की जाए। लेकिन पिछले वर्ष लगभग 50 चिह्नित डंपों में से दो-तीन डंप को ही कुछ लोगों ने नीलामी के माध्यम करीब से लिया, जिससे कोडरमा व गिरिडीह दोनों जिलों से सरकार को करीब 15 करोड़ का राजस्व मिला। इसके माध्यम से कारोबार को वैधानिकता देने के लिए कुछ लोगों को माइनिग चालान मिल गया। लेकिन इसमें भी कई विसंगतियों के कारण गत वर्ष एक भी डंप की निलामी लोगों ने नहीं ली। यानी पूरे कारोबार में कोई खनन रॉयल्टी नहीं। वहीं इसके निर्यात में भी कोई सेस या कस्टम ड्यूटी नहीं है। क्या कहते हैं अधिकारी:

माइका को पुनर्जीवित करने के लिए सरकारी स्तर पर पहल चल रही है। पहले माइका मेजर मिनरल की श्रेणी में था। इसके अब माइनर मिनरल की श्रेणी में लाया गया है। माइनर मिनरल में लीज के लिए निलामी आमंत्रित की जाती है। कोडरमा व गिरिडीह क्षेत्र में माइका के दो ब्लॉक की ऑनलाइन नीलामी आमंत्रित की गई है। अभी कोविड के कारण इसकी प्रक्रिया रूकी हुई है। जिले में कोडरमा व गिरिडीह को मिलाकर माइनिग की जीओलॉजिकल विग की स्थापना सरकार के स्तर से हाल में की गई है, जो इस क्षेत्र में संभावनाओं का पता लगाएगी। वहीं दो वर्ष पहले भी कुछ डंपों की लीज जेएसएमडीसी के स्तर से की गई थी।

मिहिर सलकर, जिला खनन पदाधिकारी, कोडरमा।


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