अब नहीं रही अनाड़ी, यहा अदालत चलाती है नारी
अनूप कुमार, कोडरमा : सदियों से अबला मानी जानी वाली नारी यहा अबला नहीं है। झारखंड के कोडरम
अनूप कुमार, कोडरमा : सदियों से अबला मानी जानी वाली नारी यहा अबला नहीं है। झारखंड के कोडरमा जिले के चंदवारा व इससे सटे हजारीबाग जिले के बरही व चौपारण के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने इस अबला के भ्रम को तोड़ दिया है। नारी अदालत लगाकर ये दूसरी महिलाओं को भी न्याय दे रही हैं। घरेलू हिंसा, दापत्य विवाद जैसे मामलों का निबटारा कर रही हैं। दामोदर महिला मंडल द्वारा संचालित नारी अदालत करीब 170 मामलों का निबटारा कर चुकी है। लिटिगेशन पॉलिसी, लोक अदालत और फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिये अदालतों से मुकदमों का बोझ कम किया जा रहा है। नारी अदालत एक कदम आगे बढ़कर काम कर रही है। फैसले के बाद उसके असर पर भी नजर रखती है। इसी आदर्श स्थिति को देखते हुए झारखंड की राज्यपाल ने द्रौपदी मुर्मू ने इसकी तारीफ की थी। राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए सिफारिश करने की बात कही थी।
प्रशिक्षित महिलाएं चला रहीं अदालत
महिला मंडल में शामिल ग्रामीण महिलाएं आवश्यक प्रशिक्षण लेने के बाद अदालत का संचालन कर रही हैं। न्याय के लिए विधिवत आवेदन लेने के बाद, निर्धारित फार्मेट में दूसरे पक्ष को नोटिस और अनुसंधान का काम भी किया जाता है। विधिवत सुनाई होती है। निर्णय 9 अथवा 11 महिला जजों की पीठ करती हैं। निर्णय के बाद भी फैसले का रिकार्ड रखा जाता है। वर्ष 2008 से संचालित इस नारी अदालत में अबतक घरेलू ¨हसा के 150 और दापत्य विवाद के 20 मामलों का निपटारा किया गया है। कई परिवारों को टूटने से बचाया गया है।
अदालत कैसे करती है काम
पारिवारिक व दापत्य विवादों के निपटारे का प्रथम फोरम गाव स्तर पर गठित स्वंय सहायता समूह है, जहा पीड़ित अपनी व्यथा रखती हैं। उसके बाद ग्राम संगठन में केस को भेजा जाता है। तीसरा पायदान दामोदर महिला मंडल की नारी अदालत है। महीने में दो-तीन दिन चंदवारा के पिपराडीह, ढाब व मदनुंडी में नारी अदालत लगती है, जिसमें मामलों की सुनवाई होती है। मुख्य केंद्र पिपराडीह है, यहा न्यायालय के संचालन के लिए पूरी व्यवस्था है। नारी अदालत में प्रथम पक्ष अपना अभियोग दर्ज करते हैं, जिसे पंजीकृत किया जाता है। इसके बाद पीड़ित पक्ष से पूछा जाता है कि क्या वे नारी अदालत के फैसले का पालन करेंगे? इसके बाद दूसरे पक्ष को नोटिस देकर बुलाया जाता है। अधिकतम दो नोटिस किया जाता है। इसमें यदि द्वितीय पक्ष उपस्थित नहीं हुआ तो कानूनी प्रक्त्रिया शुरू की जाती है, जो नोटिस में भी अंकित होता है। मामला दर्ज होने के पश्चात महिला मंडल के 4-5 सदस्य गाव का दौरा कर वस्तुस्थिति का पता करते हैं और इससे संबंधित साक्ष्य जुटाते हैं। इसकी प्रक्त्रिया गुप्त होती है। इसके बाद गाव के पारा लीगल वॉलेंटियर दोनों पक्षों से अलग-अलग मशविरा करते हैं। इसके बाद न्यायालय में दोनों पक्षों व उनके गवाहों को सुनने के बाद उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर न्यायालय फैसला सुनाती है। नारी अदालत गंभीर आपराधिक मामलों पर सुनवाई नहीं करती।
फैसले के बाद भी नजर
नारी अदालत की अध्यक्ष टुकलेश्वरी देवी व सदस्य रागिनी रंजन बताती हैं कि इतने में ही नारी अदालत की जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती। फैसले के बाद भी नजर रखी जाती है कि फैसले के अनुरूप दोनों पक्ष चल रहे हैं या नहीं। स्थिति में सुधार नहीं होने पर पीड़ित पक्ष की सहमति से मामले को न्यायिक प्रक्रिया के लिए भेज दिया जाता है। यानी अदालती प्रक्रिया से पहले नारी अदालत में ही मामले को सुलझाने की कोशिश होती है।
प्रदान ने दिखाया रास्ता
नई दिल्ली की संस्था प्रदान द्वारा संचालित महिला मंडल ने दामोदर महिला मंडल की सदस्यों को 2007 में सहारनपुर में दिशा संस्था द्वारा संचालित नारी अदालत का अवलोकन कराया था। मार्ग (मल्टीपल एक्शन रिसर्च ग्रूप) संस्था की राची इकाई में भी कई राउंड का प्रशिक्षण दिलाया गया।
राज्यपाल ने की थी सराहना
वर्ष 2016 में झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने चंदवारा के पिपराडीह में संचालित नारी अदालत गईं थी। देर तक ठहरीं। नारी अदालत में काम के तरीकों को देखने के बाद इसकी जमकर प्रशसा की। उन्होंने कहा था कि पूरे प्रदेश में यह व्यवस्था लागू होनी चाहिए। उन्होंने चंदवारा के नारी अदालत के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार की अनुसंशा करने की बात कही थी।