तरबूज हो रहे लाल, किसानों का चेहरा पड़ने लगा पीला
कोरोना संक्रमण के बढ़ती रफ्तार के कारण जिले के किसानों के चेहरे का रंग एक बार फिर उड़ता दिखाई दे रहा है।
खूंटी : कोरोना संक्रमण के बढ़ती रफ्तार के कारण जिले के किसानों के चेहरे का रंग एक बार फिर उड़ता दिखाई दे रहा है। कोरोना महामारी के कारण किए गए लॉकडाउन के कारण पिछले वर्ष किसानों के उपजाए तरबूज खेतों में ही सड़ गए थे। इस वर्ष की परिस्थिति वैसी ही बन रही है। पिछले साल से जारी कोरोना के कहर से तरबूज उत्पादक किसानों के चेहरे पीले पड़ने लगे हैं। पिछले साल खूंटी जिले में तरबूज का भरपूर उत्पादन हुआ था, लेकिन, कोरोना संकट को लेकर लॉकडाउन हो जाने के कारण किसानों की फसल खेतों में ही सड़ गई। कुछ बहुत खरीदार मिले, पर कमाई नहीं हुई। 2020 में तो कोरोना के कारण फसल नहीं बिकी, पर किसानों को उम्मीद है कि इस साल तो उन्हें कमाई होगी, पर जिस रफ्तार से कोरोना का कहर बढ़ रहा है, लाल तरबूज उगाने वाले किसानों के चेहरे पीले पड़ने लगे हैं। उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि कहीं फिर लॉकडाउन लग गया, तो उनकी मेहनत और कमाई पर पानी फिर जाएगा।
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सात सौ एकड़ में हुई है तरबूज की खेती
खूंटी जिले में सात सौ एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में तरबूज की खेती की गई है। तरबूज की खेती के लिए खूंटी जिले की मिट्टी काफी उपजाऊ है। ग्रामीण इलाकों में तरबूज की भरपूर फसल होती है। जिले के सभी प्रखंडों के ग्रामीण इलाकों में हजारों टन तरबूज का उत्पादन होता है। स्थानीय बाजार में इतनी मात्रा में तरबूज बिकना संभव नहीं है। किसानों को बाहर की मंडियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। खूंटी के तरबूज बंगाल, ओडिशा ही नहीं नेपाल तक भेजे जाते हैं।
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तरबूज की फसल से कमाई तो अच्छी हो जाती है, पर पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण ने बर्बाद कर दिया। इस बार भी लॉकडाउन लगा, तो किसान बर्बाद हो जाएंगे। लॉकडाउन के कारण उनकी फसल खेतों में ही सड़ गई थी। गाड़ियों का परिचालन बंद होने से खूंटी के तरबूज मंडियों तक नहीं पहुंच पाए थे।
- अभिमन्यु गोप, किसान, चीदी
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कोरोना संकट को देखते हुए जिला प्रशासन को किसानों की सुधि लेनी चाहिए और तरबूज के लिए उचित बाजार की व्यवस्था करनी चाहिए। पिछले वर्ष कोरोना महामारी में किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। इस बार भी अगर परिस्थिति वैसी ही रही तो किसान बर्बाद हो जाएंगे। एक तो गंभीर जल संकट के बीच किसानों ने तरबूज की खेती की। उस पर अगर उन्हें नुकसान उठाना पड़े तो किसानों की स्थिति खराब हो जाएगी।
- विलकन टोपनो, किसान, दियांकेल