Lok Sabha Polls 2019: योजनाओं के क्रियान्वयन में बोल्ड होने की जरूरत
Lok Sabha Polls 2019. टिकट इतनी जल्दी थोड़े ही मिलता है। देखिए न चुनाव नजदीक आ गया है और पार्टी वाले टिकट फाइनल कर ही नहीं पा रहे हैं।
खूंटी, [कंचन कुमार]। जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर बिरसा मृग विहार। दूर-दूर से लोग आए हुए हैं। आने-जाने वालों का सिलसिला जारी है। यहां आने वाले ज्यादातर युवा ही होते हैं। युवाओं से चुनावी माहौल जानने के लिए मैं भी एक साथी अनुज के साथ पार्क पहुंच गया। काउंटर में तीन युवतियां बैठी हैं। मैंने टिकट मांगा। लेकिन युवतियां आपस में बातचीत करने में मशगूल हैं।
मैंने पुन: उनका ध्यान आकृष्ट कराया। इनमें से एक ने मजाकिया लहजे में कहा, इतनी हड़बड़ी क्या है सर। टिकट इतनी जल्दी थोड़े ही मिलता है। देखिए न, चुनाव नजदीक आ गया है और पार्टी वाले टिकट फाइनल कर ही नहीं पा रहे हैं। उम्मीदवार बनने के लिए लोग दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। यहां तो आप आए और टिकट मिल गया। थोड़ा सा (विलंब) तो चलता है। मैं टिकट लेकर अंदर गया।
दूर-दूर तक मृग फुदकते नजर आ रहे हैं। सबसे पहले मेरी मुलाकात एक युवा जोड़ी से हुई। मृग को देखने पर उनका ध्यान कम है। दोनों आपस में ही खोए हुए हैं। मैंने मृग के झूंड की तस्वीर लेनी चाही। युवक को लगा कि तस्वीर में वह भी आ गया है। आकर बात करने लगा। मैंने चुनाव पर चर्चा छेड़ी। युवक ने बताया, हमलोग रांची से आए हैं। छिपते-छिपाते। नाम नहींं छापिएगा। लेकिन सरकार के बारे में बहुत कुछ कहना है।
कहा, सरकार निर्णय लेने में बोल्ड है। लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन में भी वैसे ही बोल्ड होने की जरूरत है, तभी तो सही आदमी को इसका फायदा मिल सकेगा। नहीं तो ऐसे निर्णय का क्या फायदा? इस पर उसके साथ आई लड़की ने असहमति जतायी। कहा- भ्रष्टाचारियों पर पूर्णत: लगाम नहीं लगा है। लेकिन उनमें सरकार का खौफ तो है। बहुत सारे अच्छे काम हो रहे हैं।
लेकिन कुछ लोग सरकार एवं खास संगठन के नाम पर युवा जोडिय़ों को बेवजह परेशान करते हैं। प्रताडि़त भी करते हैं, जो गलत है। हम लोग साथ पढ़ते हैं तो कभी-कभी साथ में इंज्वाय करने निकल जाते हैं। इसका गलत अर्थ नहीं लगाना चाहिए। मैं आगे बढ़ा। तमाड़ से रंजीत कुमार अपने परिवार के साथ घूमने आए हैं। उनकी टीम में तीन महिलाएं एवं कई बच्चे हैं। रंजीत किसान हैं।
चुनाव की बात आते ही बोल पड़ते हैं, सरकार ने किसानों के लिए अच्छी योजना लाई है। आयुष्मान, उज्ज्वला एवं आवास योजना भी उम्दा है। लेकिन कुछ अधिकारी भोले-भाले ग्रामीणों को बेवजह परेशान करने में लगे हुए हैं। अपना घर बनाने के लिए नजदीक की नदी से बालू नहीं निकाल सकता। पुलिस वाले पीछे पड़ जाते हैं। उनसे साठगांठ कर लेने पर सब न्यायसंगत हो जाता है। बगल में बैठकर दो युवा जोड़ी मृग को पुचकार रही है।
मृग भी युवक की खाली हथेली को चूम रहा है। युवक कहता है, कुछ लेकर नहीं आया। अगली बार कुछ अच्छी-सी चीज लेकर आऊंगा। तभी लड़की डपट देती है, यहां चुनावी भाषण नहीं चलेगा। हर चीज खाते में नहीं डाली जाएगी। बाहर जाकर दो पैकेट कुरकुरे लेकर आओ। सभी लोग हंस पड़ते हैं। बाहर में एक युवक खरबूजा बेच रहा है। रोशन उससे 20 रुपये का खरबूजा मांगता है। खरबूजा देने में थोड़ा विलंब होता है। वह बोल पड़ता है- मोदी राज है।
इस पर उसका ही साथी उससे उलझ जाता है- ऐसा क्यों बोला? वह कहता है कि ज्यादातर काम में विलंब हो रहा है, इसलिए बोला। तभी उसका साथी गौरव बोल पड़ता है, मोदीराज में हर चीज दुरुस्त होती है। खरबूजे वाला चाकू एवं खरबूजा धो लेगा तब तो काटकर देगा। यहां कई लोग पक्ष एवं विपक्ष में बंटकर उलझ जाते हैं। तभी खरबूजा वाला आग्रह करता है, भैया पैसा दीजिए और यहां बेमतलब भीड़ नहीं लगाइए। हम छोटे धंधे वाले हैं।