पत्थलगड़ी के मास्टरमाइंड युसूफ पूर्ति के घर पुलिस का छापा, तोड़फोड़
झारखंड के खूंटी में सामूहिक दुष्कर्म के मामले में पत्थलगड़ी के मास्टरमाइंड युसूफ पूर्ति के गांव उद्बुरु और उसके घर पुलिस ने छापेमारी की।
खूंटी, जेेएनएन। पांच युवतियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामले में पत्थलगड़ी के मास्टरमाइंड युसूफ पूर्ति के गांव उद्बुरु और उसके घर पुलिस ने आज छापेमारी की। पुलिस ने खूंटी के घाघरा में पत्थलगड़ी समर्थकों पर लाठीचार्ज भी किया।
जानकारी के मुताबिक, मंगलवार अहले सुबह चार बजे भारी पुलिस बल के साथ पहुंची पुलिस व सीआरपीएफ की टीम युसुफ पूर्ति के घर उदुबुरू पर दबिश दी। खोजने के क्रम में उसके घर में जमकर तोड़फोड़ भी की। तकरीबन दो सौ से अधिक जवान कांबिंग ऑपरेशन में शामिल थे। युसुफ पूर्ति के गिरफ्तार होने की बात कही जा रही है। लेकिन पुलिस अभी इसकी पुष्टि नहीं कर रही है।
खूंटी के घाघरा में हुई पत्थलगड़ी, हजारों की संख्या में मौजूद थे समर्थक
सामूहिक दुष्कर्म मामले में पत्थलगड़ी करने वालों पर उठती उंगली के बीच खूंटी के घाघरा में मंगलवार को फिर पत्थलगड़ी हुई। इस दौरान हजारों पत्थलगड़ी समर्थक भी मौजूद थे। पुलिस ने खूंटी के घाघरा में पत्थलगड़ी समर्थकों पर लाठीचार्ज किया। इस दौरान एक व्यक्ति के जख्मी होने की सूचना है। पत्थलगड़ी शुरू होने के तीन महीने बाद पहली बार पुलिस ने लाठीचार्ज किया है। अभी अफरातफरी का माहौल है। गौरतलब है कि इससे पहले भी झारखंड में कई जगह पत्थलगड़ी हो चुकी है।
जानिए, क्या है पत्थलगड़ी
पत्थलगड़ी उन पत्थर स्मारकों को कहा जाता है जिसकी शुरुआत समाज ने हजारों साल पहले की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है, जो आदिवासियों में आज भी प्रचलित है। माना जाता है कि मृतकों की याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने पत्थर स्मारकों की रचना की।
पत्थलगड़ी की इस आदिवासी परंपरा को पुरातात्त्विक वैज्ञानिक शब्दावली में ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’ और मेगालिथ कहा जाता है। दुनिया भर के विभिन्न आदिवासी समाजों में पत्थलगड़ी की यह परंपरा मौजूदा समय में भी बरकरार है। झारखंड के मुंडा आदिवासी समुदाय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जिनमें कई अवसरों पर पत्थलगड़ी करने की प्रागैतिहासिक और पाषाणकालीन परंपरा आज भी प्रचलित है।