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ग्रामीण चाहते हैं विकास, समाज के अगुवा तोड़ रहे आस

खूंटी दो साल पहले उठी पत्थलगड़ी की धधक अब विधान सभा चुनाव के ठीक पहले फिर से धधकने लगी है। कुछ लोग इस धधकती हुई आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। आम ग्रामीण अपने ही गांव में खास लोगों के भय से थर्रा रहे हैं। उनमें भय इतनी कि वह संबंधित खास लोगों के भय के कारण अपना मुंह तक खोलना नहीं चाहते हैं। पत्थलगड़ी समर्थक के आकाओं द्वारा अंदर ही

By JagranEdited By: Published: Wed, 26 Jun 2019 06:59 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 06:39 AM (IST)
ग्रामीण चाहते हैं विकास, समाज के अगुवा तोड़ रहे आस
ग्रामीण चाहते हैं विकास, समाज के अगुवा तोड़ रहे आस

खूंटी : दो साल पहले उठी पत्थलगड़ी की आग अब फिर विधानसभा चुनाव के ठीक पहले धधकने लगी है। कुछ लोग इस धधकती हुई आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। आम ग्रामीण अपने ही गांव में खास लोगों के भय से थर्रा रहे हैं। उनमें भय इतना कि वह संबंधित खास लोगों के भय के कारण अपना मुंह तक खोलना नहीं चाहते हैं। पत्थलगड़ी समर्थक के आकाओं द्वारा अंदर ही अंदर खास कॉकस भी तैयार कर लिया गया है, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में भी उन्हें लाभ मिल सके। इन्हें कुछ राजनीतिक दल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हवा भी दे रहे हैं। हालांकि, इस बात पर खुलेआम कोई भी व्यक्ति कुछ भी बोलने से कतराता है। सूत्रों के अनुसार खास दल के नेता अंदर ही अंदर खास लोगों को अपने पक्ष में करने और चुनाव में लाभ लेने की मंशा रख रहे हैं। यही कारण है कि संबंधित राजनीतिक दल के नेता पत्थलगड़ी समर्थकों के समर्थन में हां में हां मिला रहे हैं। वैसे नेता भी भलीभांति जानने लगे हैं कि उनके वोट बैंक पर किसी तरह की आंच आनेवाला नहीं है। वहीं, कुछ ग्रामीण अब यह समझने लगे हैं कि उन्हें खास लोगों के द्वारा बरगलाया जा रहा है। पर, इन्हें रहना तो गांव में ही है मुंह खोलकर जाएंगे कहां। इसी बात पर अब ग्रामीण भी अपनी बात पर अडिग हैं। ग्रामीण जानते हैं कि वे दोहरी चाल की रणनीति में फंस चुके हैं। यही कारण है कि वे प्रशासन का डंडा चलने या न चलने पर भी वे हर किसी की हां में हां मिलाते हैं। वहीं गांव के अंदर वे पत्थलगड़ी समर्थकों के साथ भी सुर में सुर मिलाते हैं, जो उनकी मजबूरी है।

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प्रशासन कशमकश में

सूत्रों का कहना है कि राजनीतिक दलों की बगैर सहायता के पत्थलगड़ी की आग को बुझा पाना असंभव है। परंपरा के रूप में दो साल पहले शुरू की गई पत्थलगड़ी की आग अब राजनीतिक रंग में रंग चुकी है और जब संबंधित क्षेत्र के अगुवा ही इसे टच करने से कतराते हैं, फिर बाहर से आए प्रशासन यहां की ज्वलंत समस्या को भला कैसे समझा सकते हैं। ऊपर से आदेश आते ही यहां के प्रशासन पर सीधे तौर पर राजनीति दबाव पड़ने लगता है। न चाहते हुए भी वे समझ नहीं पाते हैं कि करें तो क्या करें। एक बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पत्थलगड़ी परंपरा का एक स्वरूप है। किसी के परंपरा पर चोट पहुंचाना गलत है और कोई योजना ले या न लें इस बात से क्या फर्क पड़ेगा। किसी पर जबरन थोपा तो नहीं जा सकता है। वैसे भी सिर्फ प्रशासन को ही इस बात के लिए जिम्मेदार ठहरा देना गलत होगा, क्योंकि जबरन किसी गांव में घुसकर ताबड़तोड़ मारपीट कर देना भी पत्थलगड़ी का ठोस समाधान नहीं हो सकता है। इसके लिए चाहिए कि संबंधित क्षेत्र के स्थानीय जनप्रतिनिधि ही इसके लिए आगे बढ़कर गांववालों को समझाए-बुझाएं और उनसे बातचीत कर समस्या का समाधान निकालें।

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बरगलानेवालों से निपटना जानता है प्रशासन : नीलकंठ

ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा कि पत्थलगड़ी आदिवासियों की परंपरा है लेकिन कुछ लोग हैं, जो इन्हें गलत दिशा में ले जाने के लिए हवा देने में लगे हुए हैं। हालांकि, जनता और उनके बीच कहीं कोई संवादहीनता नहीं है। जनता लगातार योजनाओं का लाभ ले रही है। उनसे बात की जाती है। व्यक्तिगत तौर पर भी वे उनसे मिलने आते-जाते रहते हैं। शतप्रतिशत योजनाओं का लाभ जनता को मिले इसके लिए लगातार ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर भी लोगों को समझाया जाता है। हां कुछ लोग हैं, जो जमीन छीन लेने की बात पर जनता को भरमाने में जुटे हुए हैं। कुछ लोग पत्थलगड़ी की आड़ में गांव के भोलेभाले ग्रामीणों को बरगलाने में लगे हुए हैं, जिनपर प्रशासन की नजर है। प्रशासन ऐसे लोगों से निपटना भलीभांति जानता है।

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पत्थलगडी के खेल में राजनीतिक दल के लोग भी शामिल : दिलीप

दो साल पहले जब पत्थलगड़ी की शुरुआत हुई थी, तब इसपर काम हुआ था, लेकिन अब इसे प्रशासन का फेल होना कहा जा सकता है। धीरे-धीरे एक बार फिर से पत्थलगड़ी की सुगबुगाहट होने लगी है, तब सबकी नींद खुल रही है। वैसे परंपरा से हटकर काम करना गलत है। पत्थलगड़ी की आड़ में जिस तरह कुछेक लोगों द्वारा इसपर ग्रामीणों को बरगलाने का खेल-खेला जा रहा है, वह गलत है। वैसे तो आदिवासियों की परंपरा में पत्थलगड़ी शामिल है, बशर्तें इसकी सही रूप से व्याख्या हो। हालांकि, कुछ तथाकथित राजनीति दल भी इस खेल में शामिल हैं। इसे भी जनता को समझना होगा। जनता सही बातों को परखते हुए काम करें। किसी दल की बातों में आकर ऐसा कोई काम न करे, जिससे यहां के लोगों को ही उसका परिणाम भुगतना पड़े। हालांकि, प्रशासन और पद पर विराजमान लोगों को समझना होगा कि सालों बीतने के बाद भी जब ग्रामीणों को पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा, तब ग्रामीण करें भी तो क्या करें।

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कई गांवों में मनी पत्थलगड़ी की पहली वर्षगांठ

घाघरा समेत कई जगहों पर बुधवार की अहले सुबह से ही पत्थलगड़ी की पहली वर्षगांठ मनाई गई। इस दौरान ग्रामीणों ने पत्थलगड़ी की पूजा-अर्चना कर एक-दूसरे को बधाई दी। संबंधित पत्थलगड़ीवाली जगह को धोया गया और सिदूर कसैली, अगरबत्ती, धूप धुवन से अनुष्ठान का आयोजन संपन्न हुआ। कुछ दिन पहले से ही संबंधित क्षेत्र के सदस्यों ने गाडे़ गए पत्थल की व्यापक रूप से सफाई कर लोगों को पूजन में शामिल होने का आमंत्रण दिया था। इस दौरान वे काफी सक्रिय रहे, ताकि गांव में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश न हो जाए। क्योंकि, पिछली बार आज ही के दिन घाघरा में स्थिति विस्फोटक थी। इसके साथ ही अलग-अलग दिन संबंधित क्षेत्रों में लगातार अनुष्ठान किए जाते हैं।

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कोचांग समेत कई गांवों में चला जागरूकता अभियान

अड़की : उपायुक्त सूरज कुमार के निर्देश पर पत्थलगड़ी प्रभावित तोड़ांग, बीरबांगी, बौहंडा, कोचांग, मदहातु, तिनतीला व तिरला पंचायत में बुधवार को प्रशासन द्वारा जागरूकता अभियान चलाया गया। इस दौरान लोगों को सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी गई। लोगों को योजनाओं को लेने के लिए प्रेरित किया गया। पंचायत के जनसेवक, ग्रामसेवक, रोजगार सेवक, जेईई द्वारा संबंधित अपने-अपने कार्य क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान चलाकर लोगों को योजना की जानकारी दी गई।

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