बेकाबू पत्थलगड़ी समर्थकों ने सांसद के घर पर किया हमला, तीन सुरक्षाकर्मियों का अपहरण
झारखंड में खूंटी जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर घाघरा में हो रहे पत्थलगड़ी को रोकने व उसके नेता यूसुफ पूर्ति को गिरफ्तार करने के लिए करीब 500 जवान घाघरा जा रहे थे।
जागरण संवाददाता, खूंटी। झारखंड के खूंटी में मंगलवार को पत्थलगड़ी समर्थक बेकाबू हो गए और सांसद कड़िया मुंडा के आवास पर हमला बोलते हुए तीन सुरक्षाकर्मियों का अपहरण कर लिया। उनके आवास से चार इंसास राइफल भी लेकर चले गए। गनीमत थी कि घटना के वक्त सांसद आवास में नहीं थे, वह फिलहाल दिल्ली में हैं।
जानकारी के अनुसार, खूंटी जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर घाघरा में हो रहे पत्थलगड़ी को रोकने व उसके नेता यूसुफ पूर्ति को गिरफ्तार करने के लिए करीब 500 जवान घाघरा जा रहे थे। घाघरा से चार किलोमीटर पहले ही अनिगड़ा में पत्थलगड़ी समर्थकों से पुलिस की भिड़ंत हो गई। पारंपरिक हथियारों से लैस पत्थलगड़ी समर्थक जब हिंसा पर उतारू हो गए तो पुलिस ने भी लाठियां भांजनी शुरू कर दीं। इसमें एक पत्थलगड़ी समर्थक घायल हो गया, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस की जवाबी कार्रवाई के बाद भागने के क्रम में पत्थलगड़ी समर्थकों ने अनिगड़ा के समीप चांदीडीह स्थित सांसद कडि़या मुंडा के आवास पर हमला बोल दिया।
करीब 300 की संख्या में पत्थलगड़ी समर्थक महिला-पुरुषों ने सांसद आवास के हाउसगार्ड के चार इंसास राइफल लूट लिए और एक हवलदार सहित चार जवानों को घसीटते हुए ले जाने लगे। इसी बीच मौका पाकर हवलदार बैजू उरांव तो पत्थलगड़ी समर्थकों के कब्जे से भाग निकला, लेकिन तीन जवानों को पत्थलगड़ी समर्थकों ने बंधक बना लिया है। जो जवान बंधक बनाए गए हैं, उनमें सुबोध कुजूर, विनोद केरकेट्टा व सियोन सोरेन शामिल हैं। सूचना है कि तीनों जवानों को घाघरा में रखा गया है। जवानों को छुड़ाने के लिए खूंटी के डीसी (उपायुक्त)सूरज कुमार व एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा के नेतृत्व में 10 बड़े वाहनों से बड़ी संख्या में जवान घाघरा के लिए कूच कर गए हैं। पूरे घाघरा क्षेत्र को घेरने की तैयारी है, ताकि उपद्रवी बन चुके पत्थलगड़ी समर्थकों पर सख्त कार्रवाई की जा सके।
कायम करेंगे कानून का राज
एडीजी एडीजी ऑपरेशन आरके मल्लिक ने कहा कि अब तक लगता था कि पत्थलगड़ी समर्थक समझ जाएंगे। उन्हें मनाया गया, समझाया गया, लेकिन वे अब तक नहीं समझे। अब उक्त क्षेत्र में कानून का राज पूरी तरह कायम होगा। अभियान शुरू हुआ है। ग्रामीणों को उनके कार्यो से कोई नहीं रोक रहा, लेकिन कानून को अपना काम करने से रोकने वालों के खिलाफ सख्ती बरती जाएगी। पूर्ति का घर कुर्क, पुलिस को देखकर ग्रामीणों ने बजाई घंटी, उसे भगाया खूंटी से महज तीन किलोमीटर दूर उदबुरू में पत्थलगड़ी नेता यूसुफ पूर्ति का घर है। उसके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट लेकर खूंटी पुलिस मंगलवार सुबह चार बजे उदबुरू पहुंच गई। पुलिस को देखकर ग्रामीणों ने घंटी बजा दी, जिसके बाद यूसुफ पूर्ति भाग निकला। पुलिस ने उसके घर के एक-एक सामान को कुर्क कर लिया है। उदबुरू में यूसुफ पूर्ति के आवास की कुर्की जब्ती की घटना से भी पत्थलगड़ी समर्थक आक्रोशित थे। इसके बाद पत्थलगड़ी रोकने के लिए जा रही पुलिस को देखकर वे बेकाबू हो गए और यह घटना सामने आई।
पत्थलगड़ी शुरू होने के तीन महीने बाद पहली बार पुलिस ने लाठीचार्ज किया है। लाठीचार्ज के बाद से अफरातफरी का माहौल रहा। इस बीच, पत्थलगड़ी समर्थकों ने खूंटी के सांसद कड़िया मुंडा के तीन गार्ड सुबोध कुजूर, बिनोद केरकेट्टा और सियों सोरेन के हथियार लूट लिए और उनको अगवा कर अपने साथ लेते गए। लगभग 300 पत्थलगड़ी समर्थक आए थे। चार हथियार लूट लिए। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं भी पहुंची थी।
तीन माह बाद कोचांग-कुरूंगा पहुंची पुलिस
सूबे के मुखिया रघुवर दास एक तरफ आम जनता की सुरक्षा को लेकर पुलिस को अत्याधुनिक करने मेंं कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं, वहीं पुलिस ने अपने को सुरक्षित और नौकरी बचाने के चक्कर में गांव की जनता की सुरक्षा को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। हालांकि, पुलिस इस बात से इंकार कर रही है। गांव की जनता में पुलिस से अधिक अवैध वर्दीधारियों पर विश्वास होने लगा है। यहीं कारण है कि ग्रामीण अपनी समस्या को लेकर पुलिस के पास नहीं अपराधियों की शरण में जा रहे हैं। दरअसल, जिले के कई ऐसे गांव हैं, जो अति उग्रवाद प्रभावित माने जाते हैं। जैसे अड़की, रनिया, मुरहू, कर्रा और खूंटी प्रखंड क्षेत्र का कुछ एरिया। इनमें से सबसे अधिक अड़की वर्तमान में आगे चल रहा है। इस क्षेत्र में जबसे पत्थलगड़ी शुरू हुई है, उग्रवाद पनप गया है।
गांव-गांव में पत्थलगड़ी कर बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे पुलिस उस क्षेत्र में नहीं जाती है। करीब तीन महीने पहले एक बार पुलिस ने घुसने का प्रयास किया था, उसे बंधक तीन घंटे बंधक बनना पड़ा था। माफीनामा लिखने के बाद ग्रामीणों ने पुलिस-प्रशासन को छोड़ा था। इसके बाद सोमवार को पुलिस तीन माह बाद कोचांग-कुरूंगा क्षेत्र में पहुंची। ऐसा तब हुआ, जब दुष्कर्म के बाद आम लोग व मीडिया का दबाव पड़ा। इसके अलावा साके में पुलिस को बेइज्जत होना पड़ा था। इससे इस क्षेत्र के अपराधियों का मनोबल बढ़ता गया। उनको लगता है कि इस एरिया में कुछ भी करें पुलिस यहां तक नहीं पहुंच सकती है। पुलिस उन क्षेत्रों में न तो गोली चला सकती है और न ही किसी पर लाठी बरसा सकती है। पुलिस के हाथों को ऊपर से बांध दिया गया है। इससे पुलिस उस पत्थलगड़ी क्षेत्र में जाने से परहेज करती है। सूत्रों की माने तो इसमें पुलिस अधिकारी का कोई दोष नहीं है।
कई ऐसे जाबांज पुलिस अधिकारी हैं जो उस क्षेत्र में जाना चाहते हैं, लेकिन ऊपर से उनके हाथ बांध दिए जाते हैं। इससे उनका मनोबल कम हो जाता है। ताजा उदाहरण कोचांग में हुई सामूहिक दुष्कर्म का मामला है। यदि उस क्षेत्र में पुलिस का कोई कैंप होता, तो शायद ऐसी घटना नहीं होती। इसके अलावा उस क्षेत्र में कई ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं, जो पुलिस के संज्ञान में आया ही नहीं है। इस घटना में शिकार पीड़िता सीधे रांची पुलिस मुख्यालय में शिकायत करने पहुंच गई, तो मामला हाईलाइट हो गया और कार्रवाई शुरू हुई। लेकिन कई ऐसे मामले उस क्षेत्र में दफन हो गए हैं, जो पुलिस के पास नहीं पहुंच पाए हैं। उस क्षेत्र में हर दिन किसी ने किसी से किसी बेटी-बहू को दरिंदों का शिकार होना पड़ रहा है, अपराधियों के खौफ से पुलिस तक मामला नहीं पहुंच पाते हैं।
जानिए, क्या है पत्थलगड़ी
पत्थलगड़ी उन पत्थर स्मारकों को कहा जाता है जिसकी शुरुआत समाज ने हजारों साल पहले की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है, जो आदिवासियों में आज भी प्रचलित है। माना जाता है कि मृतकों की याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने पत्थर स्मारकों की रचना की।
पत्थलगड़ी की इस आदिवासी परंपरा को पुरातात्त्विक वैज्ञानिक शब्दावली में ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’ और मेगालिथ कहा जाता है। दुनिया भर के विभिन्न आदिवासी समाजों में पत्थलगड़ी की यह परंपरा मौजूदा समय में भी बरकरार है। झारखंड के मुंडा आदिवासी समुदाय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जिनमें कई अवसरों पर पत्थलगड़ी करने की प्रागैतिहासिक और पाषाणकालीन परंपरा आज भी प्रचलित है।