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Lok Sabha Election 2019: यहां सिंचाई के अभाव में मुरझा जाती हैं अन्नदाता की उम्मीदें

Lok Sabha Election 2019. खूंटी लोकसभा क्षेत्र में कोई बड़ी सिंचाई परियोजना नहीं होने से यहां के किसानों की उम्मीदें मुरझा जाती हैं। जिले के किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर आश्रित हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 04:38 PM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 04:38 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: यहां सिंचाई के अभाव में मुरझा जाती हैं अन्नदाता की उम्मीदें
Lok Sabha Election 2019: यहां सिंचाई के अभाव में मुरझा जाती हैं अन्नदाता की उम्मीदें

खूंटी, [कंचन कुमार]। जिले के किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर आश्रित हैं। समय से वर्षा हो गई तो किसान खुश। नहीं होने पर फसल के साथ किसानों की उम्मीदें भी मुरझा जाती हैं। सिंचाई के साधन नगण्य हैं। यह इस क्षेत्र का बड़ा चुनावी मुद्दा है। खूंटी लोकसभा क्षेत्र के लिए कोई भी बड़ी सिंचाई परियोजना प्रस्तावित नहीं है। जिले में एक लाख चार हजार हेक्टेयर में खेती होती है।

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इसमें मात्र 6-7 फीसद खेत ही सिंचित है। यहां की मुख्य फसल धान है। धान के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है। लेकिन पानी के लिए किसान प्रकृति पर निर्भर हैं। सिंचाई के साधन नहीं होने के कारण किसानों को दूसरी फसलों का लाभ नहीं मिल पाता है। यहां की आबादी में तेजी से इजाफा हो रहा है। बढ़ती जनसंख्या को खिलाने के लिए हरित क्रांति लाने की मुहिम चल रही है।

लेकिन सिंचाई के साधन के अभाव में इसे धरातल पर नहीं उतारा जा सका है। धान का सीजन खत्म होने के बाद किसान पूर्णत: मजदूर बन जाते हैं। शहरों में जाकर दिहाड़ी मजदूरी कर अपने एवं अपने परिवार का भरन-पोषण करते हैं। सिंचाई के साधन नहीं होने का असर युवाओं पर अधिक देखने को मिलता है। काम की तलाश में वे दूसरे राज्यों के लिए पलायन करते हैं।

पढऩे-लिखने की आयु में हजारों बच्चे मजदूर बन अपना भविष्य चौपट करने के लिए मजबूर हैं। मई 2018 में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शहीद जबरा मुंडा के गांव मेराल से जल संचयन पखवारा का शुभारंभ किया था। कार्यक्रम के दौरान बताया गया था कि खूंटी जिले में चार हजार से अधिक तालाबों का निर्माण किया गया है।

जलछाजन के माध्यम से 455 तालाबों का निर्माण हुआ है। लेकिन इनमें से ज्यादातर तालाब गर्मी में सूख जाते हैं। इससे सिंचाई संभव नहीं है। जिले में कई जगहों पर दशकों वर्ष पूर्व बने चेकडैम हैं। लेकिन अब उसका अवशेष ही दिखता है।

कोई बड़ी सिंचाई परियोजना प्रस्तावित नहीं

क्षेत्र के लिए कोई भी बड़ी सिंचाई परियोजना प्रस्तावित नहीं है। लोगों के विरोध के कारण कोयल-कारो परियोजना 1974 से लटकी हुई है। इससे बिजली उत्पादन के साथ सिंचाई करने की भी योजना है। लेकिन विस्थापन एवं पर्यावरण की समस्या के मुद्दे पर इसका विरोध किया गया।

परियोजना के तहत कोयल और कारो नदी पर बांध बनाए गए हैं। दक्षिण कोयल नदी पर बसिया में एवं उत्तरी कारो नदी पर लोहजिमा में बांध बनाए गए हैं। इधर मध्यम सिंचाई योजना के तहत लतरातू डैम से नहर निकाला गया है। लेकिन इसका कोई फायदा किसानों को नहीं मिल रहा है। नहर को पक्का किया जा रहा है। लेकिन तकनीकी त्रुटियों के कारण यह अनुपयोगी बना हुआ है।

पहले कई सिंचाई परियोजनाएं संचालित थीं। लिफ्ट इरिगेशन के माध्यम से किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाया जाता था। लेकिन राज्य की भाजपा सरकार का ध्यान किसानों के हित पर नहीं है। किसानों के खेतों के लिए सिंचाई योजनाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। -कालीचरण मुंडा, कांग्रेस प्रत्याशी।

कांग्रेस के कार्यकाल में सिंचाई योजनाओं के नाम भारी पैमाने पर लूट की गई। बड़ी योजनाएं ले ली गई, लेकिन खेतों तक पानी कैसे पहुंचेगा, इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। क्योंकि उनका मकसद किसानों का हित नहीं था। केंद्र सरकार अब ऐसी योजनाओं पर काम कर रही है। -अर्जुन मुंडा, भाजपा प्रत्याशी।

यहां के किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर आश्रित हैं। कहीं-कहीं कूप से सिंचाई कर कुछ सब्जी की फसल ले लेते हैं। सिंचाई की व्यवस्था हो जाए तो किसानों के जीवन में खुशहाली आ सकती है। -अनिल भगत, तोरपा।

सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण किसान मजदूर बन रहे हैं। फसलें मारी जा रही हैं। खेतों में डीप बोरिंग कर सिंचाई की व्यवस्था की जा सकती है। सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। -घूरन महतो, कर्रा।

सिंचाई की व्यवस्था अत्यंत जरूरी है। छोटी सिंचाई परियोजना के अलावा मध्यम परियोजना पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि अधिक संख्या में किसान इसका लाभ उठा सकें। डैम बनाकर नहर के माध्यम से सिंचाई की व्यवस्था करने की जरूरत है। -राजू महतो, कर्रा।


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