भाजपा के समक्ष अभेद्य किले को बचाने की चुनौती
भाजपा के लिए पिछले 20 वषरें से अभेद्य किला बने खूंटी सीट पर जहा एक ओर पार्टी प्रत्याश
खूंटी : भाजपा के लिए पिछले 20 वषरें से अभेद्य किला बने खूंटी सीट पर जहा एक ओर पार्टी प्रत्याशी और सूबे के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के समक्ष इस अजेय दुर्ग को बचाने की चुनौती है, वहीं झामुमो सहित अन्य दलीय और निर्दलीय प्रत्याशी नीलकंठ सिंह मुंडा की जीत को रोकने के लिए कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहते। भाजपा कार्यकर्ता एक ओर जहा जीत की आस से लबरेज हैं, वहीं विपक्षी भी सरकार की खामिया गिनाकर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने का पुरजोर प्रयास में लगे हैं। खूंटी विधान सभा क्षेत्र में किसी भी प्रत्याशियों की जीत में मुंडा आदिवासियों की भूमिका अहम रहती है। शुरुआत में मुंडा वोटर झारखंड पार्टी के कोर वोटर माने जाते थे लेकिन 40 वषरें से मुंडा वोटरों का झुकाव राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशियों की ओर होने लगा। यही कारण है कि वर्ष 1980 से लगातार 20 वषरें तक खूंटी सीट पर काग्रेस का कब्जा रहा। वहीं 1999 से यह सीट भाजपा के कब्जे में है। मुंडा वोटरों की इस गणित को समझकर सभी प्रत्याशी इन्हें रिझाने के प्रयास में जुटे हैं। भाजपा कार्यकर्ता पूर्व की तरह आदिवसियों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं। वहीं झामुमो ने भी इस बार मुंडा प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारकर मुंडा वोटरों में सेंधमारी करने का प्रयास किया है। झामुमो आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भाजपा को आदिवासी विरोधी बताकर आदिवासियों को अपने पाले में करने का प्रयास कर रहा है। यही कारण है कि चुनाव होने में कुछ ही दिन शेष रहने के बावजूद शहरी क्षेत्रों में चुनाव का शोर नजर नहीं आ रहा है। सभी दलों ने अपना फोकस ग्रामीण क्षेत्रों पर कर रखा है। वहीं मतदाता भी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। मतदाताओं की चुप्पी ने प्रत्याशियों की नींद उड़ा रखी है।
यूं तो खूंटी विधान सभा क्षेत्र में इस बार 11 प्रत्याशी चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे हैं इनमें से भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा, झामुमो के सुशील पाहन व झापा समर्थित निर्दलीय मसीह चरण पूर्ति के बीच चुनावी मुकाबला होने की परिस्थिति बन रही है। इनके अतिरिक्त झाविमो की दयामनी बारला, झारखंड पार्टी के रामसूर्या मुंडा, अखिल भारतीय झारखंड पार्टी के विल्सन पूर्ति, बसपा के सोमा कैथा, भारतीय ट्राइबल पार्टी की मीनाक्षी मुंडा, अंबेडकराइट पार्टी के कल्याण नाग, जनता दल (यूनाइटेड) के श्याम सुंदर कच्छप और निर्दलीय पास्टर संजय कुमार तिर्की अपने-अपने तरीके से चुनावी मुकाबले में आने का जीतोड़ प्रयास कर रहे हैं। कुल मिलाकर परिदृश्य यह बता रहा है कि इस चुनाव में भी आदिवासी वोटर तुरुप का इक्का साबित होंगे। जिस प्रत्याशी को इनका समर्थन मिलेगा उसकी चुनावी डगर आसान हो जाएगी।
ज्ञात हो कि अविभाजित बिहार के समय से अब तक हुए 15 विधान सभा चुनाव में सर्वाधिक सात बार काग्रेस ने खूंटी सीट पर कब्जा जमाया है। वहीं भाजपा ने चार बार, झापा ने तीन बार और जेपी आदोलन के समय जनता पार्टी ने एक बार इस सीट पर विजय हासिल की थी। भाजपा र्प्रत्याशी नीलकंठ सिंह मुंडा पिछले चार चुनावों से अपने प्रतिद्वंद्वियों को लगातार पटकनी देते आ रहे हैं। राज्य गठन के बाद पहले विधान सभा चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा ने जहा काग्रेस की दिग्गज नेता सुशीला केरकेट्टा को मात दी थी, वहीं 2005 में सुशीला केरकेट्टा के पुत्र और काग्रेस प्रत्याशी रोशन सुरीन को पराजित किया था। 2009 के चुनाव में नीलकंठ झामुमो के मसीह चरण पूर्ति को 436 वोटों से हराकर विधायक बने थे। 2014 के चुनाव में भी उन्होंने झामुमो के जीदन होरो को 10 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। जनजातियों के लिए सुरक्षित खूंटी सीट वैसे तो परंपरागत रूप से झारखंड पार्टी की सीट रही है, जहा से उसके उम्मीदवार ने 1952, 1957 और 1962 में लगातार जीत की हैट्रिक बनाई थी। 1967, 1969 और 1972 में काग्रेस ने झापा से यह सीट छीन ली। 1977 में पहली बार जनता पार्टी के उम्मीदवार खुदिया पाहन को जीत मिली थी। लेकिन, 1980, 1985, 1990 और 1995 में काग्रेस उम्मीदवारों ने भी यहा जीत का चौका लगाया था। वर्ष 2000 में झारखंड गठन के बाद अब तक हुए चार विधान सभा चुनाव में सत्ताधारी दल के अलावा किसी भी अन्य पार्टी ने जीत का मुंह नहीं देखा। आगामी सात दिसंबर को होने वाले मतदान को लेकर जहा पूरे क्षेत्र में राजनीतिक सरगर्मी चरम पर है, वहीं चौक-चौराहों से लेकर सरकारी कार्यालयों तक में लोग अपने-अपने समीकरण के भरोसे हार-जीत के दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं। चर्चाओं पर भरोसा करें तो खूंटी सीट में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार नजर आ रहे हैं। 2009 के चुनाव में नीलकंठ सिंह मुंडा के प्रतिद्वंद्वी रहे मसीह चरण पूर्ति इस बार भी उन्हें टक्कर देने के लिए ताल ठोंक रहे हैं। यह बात अलग है कि इस बार वे किसी दल से नहीं बल्कि स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं। वहीं झामुमो के सुशील पाहन भी विधान सभा पहुंचने के लिए जोर-आजमाइश कर रहे हैं। स्थानीय राजनीति पर पकड़ रखने वालों का कहना है कि मुख्य मुकाबला भाजपा, झामुमो और निर्दलीय मसीह चरण पूर्ति के बीच होने की संभावना है। अन्य दलों की भूमिका वोट कटवा से अधिक नहीं होगी।