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हर चीज खाते में नहीं डाली जाएगी, कुरकुरे लेकर आओ

खूंटी जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर बिरसा मृग विहार। दूर-दूर से लोग आए हैं। आने-जाने वालों का सिलसिला जारी है। यहां पहुंचने वाले ज्यादतर युवा पीढ़ी ही होती हैं। युवाओं से चुनावी मूड-माहौल जानने के लिए

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 07:39 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 07:39 PM (IST)
हर चीज खाते में नहीं डाली जाएगी, कुरकुरे लेकर आओ
हर चीज खाते में नहीं डाली जाएगी, कुरकुरे लेकर आओ

खूंटी : जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर बिरसा मृग विहार है। दूर-दूर से लोग आए हैं। आने-जाने वालों का सिलसिला जारी है। यहां पहुंचने वाले ज्यादातर युवा पीढ़ी ही होती हैं। युवाओं से चुनावी मूड-माहौल जानने के लिए मैं भी एक साथी अनुज के साथ पॉर्क पहुंच गया। काउंटर पर तीन युवतियां बैठी हैं। मैंने टिकट मांगा, लेकिन लड़कियां आपस में बातचीत करने में मशगूल हैं। पुन: मैंने उसका ध्यान आकृष्ट कराया। इनमें से एक ने मजाकिया लहजे में कहा, इतनी हड़बड़ी क्या है सर। टिकट इतनी जल्द थोड़े ही मिलता है। देखिए न, चुनाव नजदीक आ गया है और पार्टीवाले टिकट फाइनल कर ही नहीं कर रहे हैं। उम्मीदवार बनने के लिए लोग दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। यहां तो आप आए और टिकट मिल गया। थोड़ा सा (विलंब) तो चलता है।

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टिकट लेकर अंदर घुसा। दूर-दूर तक मृग फुदकते नजर आ रहे हैं। मेरी सबसे पहले मुलाकात एक युवा जोड़ी से हुई। मृग की फुदकन देखने में उनका ध्यान कम है। दोनों आपस में ही खोए हैं। मैंने मृग के झुंड की तस्वीर लेनी चाही। युवक को लगा तस्वीर में वह भी आ गया है। आकर बात करने लगा। मैंने चुनाव पर चर्चा छेड़ी। युवक ने बताया, हमलोग रांची से आए हैं। छिपते-छिपाते। नाम नहीं छापिएगा। पर, सरकार के बारे में बहुत कुछ कहना है। कहा, सरकार निर्णय लेने में बोल्ड है, लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन में भी वैसे ही बोल्ड होने की जरूरत है, तभी तो सही आदमी को इसका फायदा मिल सकेगा। नहीं तो ऐसे निर्णय का फायदा क्या? इस पर उसके साथ आई लड़की ने असहमति जतायी। कहा, भ्रष्टाचारियों पर पूर्णत: लगाम नहीं लगा है, लेकिन उनमें सरकार का खौफ तो है। बहुत सारे अच्छे काम हो रहे हैं, लेकिन कुछ लोग सरकार एवं खास संगठन के नाम पर युवा जोड़ियों को बेवजह परेशान करते हैं। प्रताड़ित भी करते हैं, जो गलत है। हम लोग साथ पढ़ते हैं, तो कभी-कभी साथ में इंज्वाय करने निकल जाते हैं। इसका गलत अर्थ नहीं लगाना चाहिए। मैं आगे बढ़ा। तमाड़ से रंजीत कुमार अपने परिवार के साथ घूमने आए हैं। उनकी टीम में तीन महिलाएं एवं कई बच्चे हैं। रंजीत किसान हैं। चुनाव की बात आते ही बोल पड़ते हैं, सरकार ने किसानों के लिए अच्छी योजना लाई है। आयुष्मान, उज्ज्वला एवं आवास योजना भी उम्दा है, लेकिन कुछ अधिकारी भोले-भाले ग्रामीणों को बेवजह परेशान करने में लगे हैं। अपना घर बनाने के लिए नजदीक की नदी से बालू नहीं निकाल सकता। पुलिस वाले पीछे पड़ जाते हैं। उनसे साठगांठ कर ली जाए, तो सब न्यायसंगत हो जाता है।

बगल में बैठकर दो युवा जोड़ी मृग को पुचकार रही है। मृग भी युवक की खाली हथेली को चूम रहा है। युवक कहता है कुछ लेकर नहीं आया। अगली बार कुछ अच्छी सी चीज लेकर आऊंगा। तभी लड़की डपट देती है, यहां चुनावी भाषण नहीं चलेगा। हर चीज खाते में नहीं डाली जाएगी। बाहर जाकर दो पैकेट कुरकुरे लेकर आओ। सभी लोग हंस पड़ते हैं।

बाहर में एक युवक खरबूजा बेच रहा है। रोशन उससे 20 रुपये का खरबूजा मांगता है। खरबूजा देने में थोड़ा विलंब होता है। वह बोल पड़ता है- मोदी राज है। इस पर उसका ही साथी उलझ जाता है, ऐसा क्यों बोला? वह कहता है कि ज्यादातर काम में विलंब हो रहा है, इसलिए बोला। तभी उसका साथी गौरव बोल पड़ता है, मोदीराज में हर चीज दुरुस्त होती है। खरबूजे वाला चाकू एवं खरबूजा धो लेगा तब, तो काटकर देगा। यहां कई लोग पक्ष एवं विपक्ष में बंटकर उलझ जाते हैं। तभी खरबूजा वाला आग्रह करता है, भैया पैसा दीजिए और यहां बेमतलब भीड़ नहीं लगाइए। हम छोटा धंधेवाले हैं।


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