इलाज के अभाव में पशुओं की हो जाती है अकाल मौत : कुजूर
बारिश में पशुओं को पीपीआर लासोता व रानीखेत नामक संक्रामक बीमारियां हो जाती हैं। इनका इलाज न होने पर कई पशु अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। यह बीमारी मानसून के समय व्यापक रूप से फैलती है। अति तीव्र गति से फैलने वाली यह बीमारी छूत का रोग भी है।
तोरपा : बारिश में पशुओं को पीपीआर, लासोता व रानीखेत नामक संक्रामक बीमारियां हो जाती हैं। इनका इलाज न होने पर कई पशु अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। यह बीमारी मानसून के समय व्यापक रूप से फैलती है। अति तीव्र गति से फैलने वाली यह बीमारी छूत का रोग भी है। लक्षण के साथ ही इलाज न शुरू होने पर एक-दो दिन में पशु मर जाता है। इस बीमारी में पीड़ित पशु के मुंह से ढेर सारी लार निकलती है। गर्दन में सूजन के कारण सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज आती है और अंतत: 12 से 24 घंटे के बीच पशु की मौत हो जाती है। यह जानकारी जरिया पंचायत की रहने वाली पशु सखी मार्था कुजूर ने दी।
उन्होंने कहा कि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में किसान ज्यादातर बकरी, मुर्गी, बत्तख और सुअर पालन कर अपना जीवन-यापन करते हैं। इन गरीब तबके के परिवारों के लिए पशु ही आजीविका का महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी सुविधा न मिलने पर कई पशुओं का इलाज नहीं हो पाता है। बरसात के चलते पशुओं में कृमि की समस्या अक्सर पाई जाती है। बकरियों में फैलने वाले संक्रामक रोग पीपीआर से ग्रसित 50 से 90 प्रतिशत पशु एक सप्ताह में मर जाते हैं। ऐसे ही मुर्गी में रानीखेत रोग अक्सर पाया जाता है, परंतु सरकार की ओर से बीमारी को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जाती है। इस कारण पशु मर जाते हैं, लेकिन सरकार के भरोसे न रहकर इन सभी रोगों का निवारण करने के लिए और इस आजीविका गतिविधि को प्रोहत्सान देने के लिए प्रदान संस्था अपनी टीम के साथ ग्रामीण क्षेत्र का दौरा कर अभी तक 15 सौ परिवारों के मुर्गी व बकरी को कृमिनाशक दवा तथा 700 परिवारों को लिवेर्तोनिक की दवा का वितरण कर चुकी है। वहीं पीपीआर और लासोता का टीकाकरण गांव-टोला स्तर पर शुरू कर दिया गया है।