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फसल के साथ मुरझा जाती हैं अन्नदाता की उम्मीदें

जिले के किसान सिचाई के लिए वर्षा पर आश्रित हैं। समय से वर्षा हो गई तो किसान खुश लेकिन बारिश नहीं होने पर फसल के साथ किसानों की उम्मीदें भी मुरझा जाती हैं। सिचाई के साधन नगण्य हैं। यह क्षेत्र का बड़ा चुनावी मुद्दा है। खूंटी लोकसभा क्षेत्र के लिए कोई भी बड़ी सिचाई परियोजना प्रस्तावित नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 10:21 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 05:08 AM (IST)
फसल के साथ मुरझा जाती हैं अन्नदाता की उम्मीदें
फसल के साथ मुरझा जाती हैं अन्नदाता की उम्मीदें

खूंटी : जिले के किसान सिचाई के लिए वर्षा पर आश्रित हैं। समय से वर्षा हो गई तो किसान खुश, लेकिन बारिश नहीं होने पर फसल के साथ किसानों की उम्मीदें भी मुरझा जाती हैं। सिचाई के साधन नगण्य हैं। यह क्षेत्र का बड़ा चुनावी मुद्दा है। खूंटी लोकसभा क्षेत्र के लिए कोई भी बड़ी सिचाई परियोजना प्रस्तावित नहीं है।

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जिले में एक लाख चार हजार हेक्टेयर में खेती होती है। मात्र 6-7 फीसद खेत ही सिचित हैं। यहां की मुख्य फसल धान है। धान के लिए अधिक पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन किसान प्रकृति पर निर्भर हैं। सिचाई के साधन नहीं होने के कारण दूसरी फसलों का लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है।

आबादी में तेजी से इजाफा हो रहा है। बढ़ी जनसंख्या को खिलाने के लिए हरित क्रांति लाने की मुहिम चल रही है, लेकिन सिचाई के साधनों के अभाव में इसे धरातल पर नहीं उतारा जा सकता। धान का सीजन खत्म होने के बाद किसान पूर्णत: मजदूर बन जाते हैं। शहरों में जाकर दिहाड़ी मजदूरी कर अपना एवं अपने परिवार के लोगों का भरण-पोषण करते हैं। सिचाई के साधन नहीं होने का असर युवाओं पर अधिक देखने को मिलता है। काम की तलाश में वे दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। पढ़ने-लिखने की आयु में हजारों बच्चे मजदूर बनकर अपना भविष्य चौपट करने को मजबूर हैं।

मई 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शहीद जबरा मुंडा के गांव मेराल से जल संचयन पखवाड़ा का शुभारंभ किया था। कार्यक्रम के दौरान बताया गया था कि खूंटी जिले में चार हजार से अधिक तालाबों का निर्माण किया गया है। जलछाजन के माध्यम से 455 तालाबों का निर्माण हुआ है, लेकिन इनमें ज्यादातर तालाब गर्मी में सूख जाते हैं। इससे सिचाई संभव नहीं है। जिले में कई जगहों पर दशकों वर्ष पूर्व चेकडैम बने थे, लेकिन अब उनके अवशेष ही दिखते हैं।

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कोई बड़ी परियोजना प्रस्तावित नहीं

क्षेत्र के लिए कोई भी बड़ी परियोजना प्रस्तावित नहीं है। 1974 से कोयलकारो परियोजना लोगों के विरोध के कारण लटकी है। इससे बिजली उत्पादन के साथ सिचाई की भी योजना है, लेकिन विस्थापन एवं पर्यावरण की समस्या के मुद्दे पर इसका विरोध किया गया। परियोजना के तहत कोयल और कारो नदी पर बांध बनाए गए हैं। दक्षिण कोयल नदी पर बसिया में एवं उत्तरी कारो नदी पर लोहजिमा में बांध बनाए गए हैं। इधर, मध्यम सिचाई योजना लतरातू डैम से नहर निकाली गई है, लेकिन इसका कोई फायदा किसानों को नहीं मिल रहा है। नहर को पक्का किया जा रहा है, लेकिन तकनीकी त्रुटियों के कारण यह अनुपयोगी बना है।

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पहले कई सिचाई परियोजनाएं संचालित थीं। लिफ्ट इरिगेशन के माध्यम से किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाया जाता था, लेकिन सरकार का ध्यान किसानों के हित पर नहीं है। किसानों के खेतों के लिए सिचाई योजनाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

कालीचरण मुंडा, पूर्व विधायक

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यहां के किसान सिचाई के लिए वर्षा पर आश्रित हैं। कहीं-कहीं कूप से सिचाई कर कुछ सब्जी की फसल निकाल लेते हैं। सिचाई की व्यवस्था हो जाए तो किसानों के घरों में खुशहाली आ जाएगी।

-काशीनाथ महतो, विधायक प्रतिनिधि।

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सिचाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण किसान मजदूर बन रहे हैं। फसलें मारी जाती हैं। खेतों में डीप बोरिग कर सिचाई की व्यवस्था की जा सकती है। सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।

-आनंद कुमार, भाजपा नेता

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सिचाई की व्यवस्था अत्यंत जरूरी है। छोटी सिचाई परियोजना के अलावा मध्यम परियोजना पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि अधिक संख्या में किसान इसका लाभ ले सकें। डैम बनाकर नहर के माध्यम से सिचाई की व्यवस्था करने की जरूरत है।

-सोनामती देवी, वार्ड पार्षद


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