युवा संत दंड देते पहुंचे मुरलीपहाड़ी
मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) केदारनाथ त्राशदी में जब वर्ष 2013 में अपने परिवार के 21 लोगों को खो दिया तो गृहस्थ जीवन से ही विरक्ति हो गई। प्राकृतिक कहर हिम स्खलन ने केदारनाथ यात्रा के दौरान जब भरे पूरे परिवार को उत्तराखंड के रामबाड़ा नामक स्थान से बहा दिया और मुझे जीवन दान दिया तो मानव जीवन के मोह से भरे संसार से निकलकर संत बनने को ठाना और संत बनकर विश्व कल्याण के लिए द्वादश ज्योतिर्लिग दंड यात्रा पर निकल पड़ा।
मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) : केदारनाथ त्राशदी में जब वर्ष 2013 में अपने परिवार के 21 लोगों को खो दिया तो गृहस्थ जीवन से ही विरक्ति हो गई। प्राकृतिक कहर हिम स्खलन ने केदारनाथ यात्रा के दौरान जब भरे पूरे परिवार को उत्तराखंड के रामबाड़ा नामक स्थान से बहा दिया और मुझे जीवन दान दिया तो मानव जीवन के मोह से भरे संसार से निकलकर संत बनने को ठाना और संत बनकर विश्व कल्याण के लिए द्वादश ज्योतिर्लिग दंड यात्रा पर निकल पड़ा। ये बातें उत्तराखंड के चमोली जिले के निवासी 35 वर्षीय युवा संत लक्की मिश्र ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहे। वे गंगोत्री से 28 मई 2018 को द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के लिए दंड देते हुए निकले हैं। विश्व कल्याण व शांति को उद्देश्य बनाकर उन्होंने अपने दंड यात्रा से अब तक केदारनाथ, काशी विश्वनाथ, बाबा बैद्यनाथ धाम का दर्शन पूरा कर लिया है। एक वर्ष आठ महीने में उन्होंने तीन ज्योतिर्लिग का दर्शन कार्य पूर्ण कर लिया है। अगला पड़ाव आंध्रप्रदेश के मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग है। ऐसे सभी ज्योतिर्लिग का दर्शन पूर्ण करते हुए अंतिम दर्शन नेपाल के काठमांडू अवस्थित पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिग का करनेवाले हैं। एक दिन में तीन किमी की दंड यात्रा करनेवाले युवा संत ने बताया कि मैं प्रतिदिन सुबह चार बजे यात्रा प्रारंभ करता हूं और सुबह दस बजे विराम कर देता हूं। जिस दिन शारीरिक अस्वस्थता इसमें बाधा पहुंचाती है उसके दूसरे दिन छह किमी दंड देता हूं यह यात्रा सभी मौसमों में जारी रहता है। ठंड हो या गर्मी या फिर बरसात सभी अनुकूल-प्रतिकूल मौसम में भी इस संकल्प को पूरा करने में इनकी यात्रा नहीं रूकती है। इस कठिन तपस्या को संत ने 11 वर्ष में पूर्ण करने का संकल्प केदारनाथ धाम में महादेव के समक्ष लिया है।
विश्व कल्याण को निकले युवा संत की जीवन की अजब है कहानी : उत्तराखंड के चमोली जिले के वन विभाग के अधिकारी विनय मिश्र व माता एमबीबीएस डॉक्टर बिना देवी के छोटे पुत्र लक्की मिश्र की शिक्षा-दीक्षा स्नातक विज्ञान से हुई है। पिता के नेतृत्व में जब इनका 21 सदस्यों वाला पूरा परिवार वर्ष 2013 में केदारनाथ धाम की यात्रा में निकला था तो उसी समय इन्हें छोड़कर संपूर्ण एक वंश गंगा नदी में बह गया था। ये इसलिए बच गए क्योंकि उस समय ये केदारनाथ मंदिर में थे। इनके साथ और दो लोग उस समय जान बचाने में कामयाब हुए थे। एक मंदिर के पुजारी व दूसरे केंद्रीय मंत्री अश्वनी चौबे थे। तीन लोगों की जान जो बची थी उसमें एक ये भी थे। उस घटना के बाद पूरा परिवार को खोनेवाला व्यक्ति का मन बदला और कुछेक महीनों बाद से ही जीवनदान देनेवाले महादेव की सेवा में लग गए।
उल्टा पैर चल कर गंगोत्री से बासुकीनाथ धाम तक किया कांवर यात्रा : युवा संत ने गंगोत्री से जल उठाकर 84 दिन में उल्टा पैर चलकर बाबा बासुकीनाथ धाम की कांवर यात्रा पूरा किया और महादेव को जलार्पण किया। इसके बाद दूसरी कांवर यात्रा गंगोत्री से रामेश्वरम तक हुई जिसे छह माह में पूरा किया। शेष वक्त मंदिर में बिताया और पुन: द्वादश ज्योतिर्लिग की दंड यात्रा का संकल्प लिया।
सभी यात्राओं को पूर्ण कर लेंगे जल समाधि : जब संकल्प की सभी यात्राएं पूर्ण हो जाएगी तो अंत में संत जल की समाधि लेंगे और इस मोहवाले संसार से विदा लेंगे।
यदि समाज सपोर्ट नहीं कर सकती तो यात्रा में बाधा उत्पन्न नहीं करें : गिरिडीह के महेशमुंडा में असामाजिक तत्व द्वारा पथराव की घटना से युवा संत लक्की मिश्र काफी दुखी व व्यथित हैं। उन्होंने बताया कि मैं कई राज्यों के क्षेत्र को पार कर यहां पहुंचा हूं मुझे ऐसा कृत्य अभी तक नहीं दिखा था। पहली बार महेशमुंडा नामक स्थान में मुझे कुछ दिन पूर्व इस तरह घटना से भेंट हुई। उन्होंने कहा कि मैं जिस प्रण को लेकर निकला हूं उसे पूरा करूंगा। इसमें यदि मुझे समाज से असहयोग मिलेगा तो मुझे यात्रा पूरी करने में कठिनाई होगी। मुझे लक्ष्य हासिल करने में देरी होगी। उन्होंने समाज से अपील किया कि मेरी यात्रा में सुरक्षा का ध्यान दिया जाए। मुझे सुरक्षा जैसे सहयोग की अपेक्षा समाज के सभी वर्ग से है।