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जिला में न तो यातायात पुलिस है और न ही नियमित डीटीओ

जागरण संवाददाताजामताड़ा सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले यात्रियों की सुरक्षा के लिए सरकार

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 06:24 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 06:24 PM (IST)
जिला में न तो यातायात पुलिस है और न ही नियमित डीटीओ
जिला में न तो यातायात पुलिस है और न ही नियमित डीटीओ

जागरण संवाददाता,जामताड़ा : सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले यात्रियों की सुरक्षा के लिए सरकार ने अनेक नियम बनाएं लेकिन इस नियम के क्रियान्वयन में सबसे बड़ा बाधक साबित हो रहा संसाधनों व इच्छा शक्ति की कमी। नतीजतन सड़कों पर सुरक्षित यात्रा करना किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यात्रियों के पास एक ही विकल्प है कि अपने सुझबूझ व जुगाड़ तंत्र के भरोसे अपनी सुरक्षा करें।

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जिले में सुरक्षित यातायात सुनिश्चित करने के लिए सबसे जरुरी है पर्याप्त पुलिस बलों की संख्या हो। जामताड़ा जिले के बात करें तो यहां यातायात पुलिस है ही नहीं। जामताड़ा को जिला का दर्जा मिले करीब दो दशक होने को है पर आज तक यहां यातायात पुलिस की पदस्थापना अथवा कार्यालय की स्थापना नहीं हो सकी। जिले में यातायात बहाल करने का दारोमदार भी जिला पुलिस के कंधे पर ही है। ऐसे में जिला मुख्यालय के व्यस्त चौक-चौराहों पर यातायात नियमों का पालन होना एक असंभव कार्य प्रतीत होता है। जब तक ऐसे स्थानों पर ट्रैफिक लाइट की व्यवस्था नहीं की जाएगी तब तक सड़क यातायात सुरक्षा व्यवस्था पर ग्रहण लगा रहेगा। परिवहन विभाग राष्ट्रीय राजमार्ग और शहर के व्यस्त इलाकों में सड़क सुरक्षा को लेकर अब तक कोई ठोस नीति भी नहीं बना सकी है। जिले में परिवहन कार्यालय कार्यरत है लेकिन डीटीओ जैसे महत्वपूर्ण पद भी प्रभार में चल रहा है। ऐसे में किसी प्रकार से परिवहन विभाग का काम-काज को खींचा जा रहा है।

-- न तो ट्रैफिक लाइट और न ही ट्रैफिक पोस्ट : कस्बा से शहर का रूख अख्तियार कर रहा जामताड़ा में तेजी से वाहनों की आवाजाही बढ़ी है। लोगों का आना-जाना भी बढ़ा है। खासकर जब से गोविदपुर -साहेबगंज हाइवे चालू हुआ तो भारी वाहनों के आवाजाही में भी तेजी से इजाफा हुआ है। जिला मुख्यालय स्थित सड़कों का भी पर्याप्त चौड़ीकरण नहीं होने व ट्रैफिक पुलिस के नाम पर जिला पुलिस के अप्रशिक्षित जवानों की तैनाती से न तो शहरवासियों को जाम से छुटकारा मिल रहा है और न ही दुर्घटना जैसे अभिशाप से ही मुक्ति मिल रही है। शहर में बतौर यातायात पुलिस तैनात जवानों को भी पर्यापत सुविधा नहीं है। पुलिस जवानों को खड़ा होने के लिए ट्रैफिक पोस्ट तक नहीं है और यदि है भी तो वह बाहर से आनेवाले वाहनों के लिए ओझल है। चूंकि सड़क पर इतना जगह नहीं कि बीच में ट्रैफिक पोस्ट का निर्माण किया जा सका। नतीजतन शहर स्थित इंदिरा चौक पर सड़क के किनारे ट्रैफिक पोस्ट का निर्माण किया गया है जो अनुपयोगी साबित हो रहा है।

-- पुलिस विभाग पर आश्रित : जिले में यातायात नियमों के क्रियान्वयन और कार्रवाई के लिए परिवहन विभाग पूरी तरह से पुलिस विभाग पर आश्रित है। पुलिस विभाग भी विधि व्यवस्था संधारण के बाद ही परिवहन विभाग को पुलिस जवान उपलब्ध कराने के लिए तैयार हो पाती है। ऐसे में परिवहन विभाग समय पर न तो वाहनों की जांच कर पाती है और न ही कोई समुचित कार्रवाई ही कर पाती है। बानगी के तौर पर रेलवे साइडिग में अनफिट डंपरो व ट्रकों का जमावड़ा देखा जा सकता है। जो बेखौफ होकर जामताड़ा के सड़कों पर दौड़ती है। पुलिस बलों की कमी से ही परिवहन विभाग ड्राइविग लाइसेंस बनाने तक ही सीमित रह गया है।

-- शहर में वाहनों के प्रवेश करने का कोई समय सीमा नहीं : यातायात पुलिस के नहीं रहने व प्रशासनिक इच्छाशक्ति में कमी रहने के कारण जामताड़ा या मिहिजाम शहर में कभी भी कोई वाहन प्रवेश कर सकती है। इस परिस्थिति में या तो शहर के लोगों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है या फिर दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। प्रशासनिक इच्छा शक्ति की कमी ही विभिन्न प्रमुख सड़कों पर आइरन बैरिकेडिग रहने के बाद भी निर्धारित स्थल के बजाय किनारे में देखी जा सकती है। इतना ही नहीं सड़कों पर बना जेब्रा मार्किंग या सिग्नल भी मिट्टी या झाड़ी से ढक जाने के कारण उद्देश्य पूर्ण नहीं हो रहा है। जबकि इसे आसानी से साफ-सफाई करके उपयोगी बनाया जा सकता है।

-- परिवहन विभाग के पास संसाधन की कमी है। इसके बाद भी विभाग यातायात व्यवस्था को सुदृढ करने के लिए प्रयत्नशील है। वाहनों का समय-समय पर जांच और कार्रवाई की जाती है ताकि यातायात सुरक्षा के नियमों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित हो सकें।

-- दीपक कुमार, व्यवसायिक विश्लेषक, सड़क सुरक्षा समिति


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