आरती का सारथी बना सूचना का अधिकार
जामताड़ा : यह कहानी उस महिला की है जिसने इस कहावत को झुठला दिया कि निर्धनता तरक्की में
जामताड़ा : यह कहानी उस महिला की है जिसने इस कहावत को झुठला दिया कि निर्धनता तरक्की में बड़ी बाधक होती है। अगर पग-पग पर मुश्किलों के थपेड़े झेल जीवन गुजर रहा हो तो आगे चलकर औरों के लिए कुछ नहीं किया जा सकता। आरती सिन्हा वह महिला हैं जिनके पिता रमेश चंद्र भले शिक्षक थे पर बड़ा परिवार होने की वजह से घर के हर कोने में गरीबी पांव पसारे बैठी थी। ऐसे में आरती कक्षा छह से ही अपनी पढ़ाई का खर्च टयूशन से निकालने लगीं। कालांतर में बोध गया विश्वविद्यालय से बीए आनर्स किया। संघर्ष के बूते आज मिहिजाम में घर बनाकर समाजिक कार्यकर्ता के रूप में समाज में अपनी पहचान बनाई है। वहीं सूचना अधिकार की राह पकड़कर पीड़ितों को न्याय तो दिला ही रही हैं वहीं भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प ले रखा है।
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भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम
बिहार के गया जिला के वजीरगंज इलाके में अपने पिता के साथ उसका बचपन बीता। शिक्षा के लिए कुछ वर्ष उसने नवादा में भी बिताए। फिर वह प्राइवेट जॉब की तलाश में दिल्ली चली गई पर वहां भी संघर्ष से वह पीछा नहीं छुड़ा पाई। इसी बीच वह गया लौट आई। फिर टयूशन पढ़ाने के साथ वह सामाजिक कार्यो से जुड़ती चली गई। इसी क्रम में उनके पास बिहारशरीफ के एक बैंक में फर्जी प्रमाणपत्र पर नौकरी करने की शिकायत मिली तो आरटीआइ का सहारा लिया और उसका खुलासा किया।
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केस-1
बिहारशरीफ के पीएनबी में दीपक कुमार ने फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हासिल की थी। इसकी जानकारी मिलने पर आरती ने वर्ष 2012 में आरटीआइ को हथियार बनाया और केंद्रीय सतर्कता आयोग को आवेदन दिया। इस पर 22 नवंबर 2012 को दीपक को लिपिक पद से बर्खास्त कर दिया गया।
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केस-2
वर्ष 2014 में मिहिजाम में फर्जी तरीके से जैन नामक एक डायग्नोस्टिक सेंटर चल रहा था। इसकी शिकायत मिलने पर खुद उसमें जांच कराई और दूसरे लैब से भी जांच कराई। परिणाम में फर्क आने के बाद इस जांच घर के खिलाफ सूचना अधिकार का उपयोग कर इसकी शिकायत जामताड़ा के सिविल सर्जन से की। इससे स्पष्ट हुआ कि जांच रिपोर्ट निर्गत करने वाला चिकित्सक फर्जी डिग्रीधारी था। बाद में 13 अक्टूबर 2014 को को सीएस ने जांच केंद्र का औपबंधिक निबंधन तत्काल प्रभाव से रद कर दिया।
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केस-3
मिहिजाम केलाही निवासी पुनू मंडल की जमीन एडीबी संपोषित गो¨वदपुर-साहिबगंजहाइवे के निर्माण में गई थी। उसे न तो मुआवजा मिल रहा था और न कोई यह बताने वाला था कि उसकी कितनी जमीन ली गई और किन कारणों से मुआवजा नहीं मिल रहा है। अंत में आरती ने पुनू के पक्ष में सूचना अधिकार के तहत आवेदन दिया तब पुनू के समक्ष सारी स्थिति स्पष्ट हुई। हालांकि मुआवजा का भुगतान पुनू के गोतिया के पक्ष में मालिकाना हक को लेकर किया गया था।
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केस-4
मिहिजाम के राजबाड़ी निवासी शशि प्रसाद साव की छोटी ग्रिल-गेट की दुकान थी। वह थ्री फेज बिजली संयोग लेने के लिए विभाग का चक्कर लगाते-लगाते थक चुका था। बदले में अनाप-शनाप राशि मांगी जा रही थी। अंत में आरती के सहयोग से शशि ने इसकी शिकायत बोर्ड के अधिकारियों से की। सूचना अधिकार से वास्तविक शुल्क व प्रावधान की जानकारी ली। इस पर बोर्ड स्तर से यहां के बिजली अधिकारियों के खिलाफ जनसुनवाई हुई। दोनों पक्ष की बातें सुनने के बाद शशि के पक्ष में फैसला आया और मिहिजाम के सहायक विद्युत अभियंता व कनीय अभियंता पर निलबंन की गाज गिरी।
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कोट-
गरीबी व संघर्ष का वास्ता बचपन से ही पड़ता रहा। भ्रष्टाचार की वजह से भी तरक्की के कदम रुके। आसपास के लोगों को देखा कि वे अपने अधिकार के लिए भटक रहे हैं पर सुनने वाला कोई नहीं है। इसी वजह से सामाजिक कार्यकर्ता बनने को ठानी। बिहार से झारखंड तक के दर्जनों लोगों को बगैर स्वार्थ के सूचना अधिकार के तहत अधिकार दिलाया। स्वयं यहां तक टयूशन से कमाई कर पहुंची हूं। अभी भी टयूशन पढ़ा कर ही अपनी जरूरतें पूरी कर रही हूं। आगे भी सूचना अधिकार के तहत भ्रष्टचार के खिलाफ मुहिम जारी रहेगी।
आरती सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता, मिहिजाम (जामताड़ा)