मनरेगा की जांच में गड़बड़ी की खुल रही कलई
संवाद सहयोगी, मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) : नारायणपुर प्रखंड के सबनपुर पंचायत में जैविक खाद तै
संवाद सहयोगी, मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) : नारायणपुर प्रखंड के सबनपुर पंचायत में जैविक खाद तैयार करने के लिए बनी सतहत्तर टंकी में से तीन गायब हैं। इन तीनों योजना में पैसे की निकासी के बाद भी कार्य नहीं हुए। इसकी सामग्री व मजदूरी मद की राशि की निकासी महीनों पहले कर ली गई है। ये मामले तब उजागर हुए जब सबनपुर पंचायत में मनरेगा योजना का सामाजिक अंकेक्षण कार्यक्रम शुरु हुआ। यहां 26 जनवरी से सामाजिक अंकेक्षण हो रहा है।
शिमला गांव में सात टंकी बनी ही नहीं :
राज्यस्तरीय सामाजिक अंकेक्षण दल की सात सदस्यीय टीम पंचायत के विभिन्न गांवों में भ्रमण कर वर्ष 2017-18 की योजनाओं का भौतिक सत्यापन कर रही है। यहां इस वित्तीय वर्ष में 121 योजना का कार्य होना था। परंतु, सभी योजनाएं जमीन पर नहीं उतर सकी। सामाजिक अंकेक्षण दल के टीम लीडर बेरोनिका हांसदा ने बताया कि पंचायत के विभिन्न गांवों में क्रियान्वित योजना के सत्यापन में कई अनियमितताएं सामने आई है। शिमला गांव में कुल 39 टंकी स्वीकृत थी। इसमें 32 के कार्य पूर्ण मिले, जबकि सात बनी ही नहीं। इनमें से तीन योजना सुमिता देवी, सुनील मंडल, संतोष मंडल के नाम से स्वीकृत था। इसमें मजदूरी एवं सामग्री मद की निकासी कर ली गई है। लाभुकों का कहना है कि वे लोग टंकी बनाए थे, पर जगह की कमी रहने के कारण उसे तोड़ दिए। तीनों योजना में करीब तीस हजार रुपये की हेराफेरी सामने आई है। उन्होंने बताया कि मनरेगा का नियम बताता है कि किसी भी योजना का जब तक पांच वर्ष नहीं हो जाता है, तब तक उसे नहीं तोड़ना है, उसे यथावत रखना है।
योजनागत कार्य के पूर्व ही राशि निकासी : इसी गांव में चार टंकी और बननी थी, पर निर्माण कार्य के पूर्व ही इन चारों योजनाओं में मजदूरी मद की कुछ राशि की निकासी कर ली गयी। कार्य हुए नहीं, मजदूरों को रोजगार सेवक ने मजदूरी दे दी। टीम ने बताया कि इस पंचायत में 26 डोभा स्वीकृत है। अधिकतर डोभा की गहराई सात- आठ फीट है, जबकि इसकी गहराई दस फीट होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हमारी टीम ने पंदनी गांव के सतीश हेम्ब्रम का 30 गुणा 30 का डोभा का भी सत्यापन किया। करीब बाइस हजार की योजना में 18,480 रुपये की निकासी होने के बावजूद भी इस डोभा की गहराई पांच फीट है। जबकि गहराई कम से कम दस के स्थान पर नौ फीट होनी चाहिए। वहीं, इसी गांव के भिखन गोस्वामी के 40 गुणा 40 डोभा की स्थिति भी अच्छी नहीं मिली। इसमें 30,072 रुपये निकासी किए गए जबकि इसकी गहराई मात्र साढ़े छह फीट मिली। योजना रह गयी अधूरी :
फुटहा गांव के सुरेश मुर्मू की जमीन पर 30 गुणा 30 का डोभा बनना था। डोभा का निर्माण कार्य प्रारंभ कर 22,267 रुपये की निकासी कर ली गई। लेकिन, योजना को आधा-अधूरा ही रख दिया गया। सत्यापन में डोभा की गहराई महज पांच फीट मिली। योजना में 22,267 रुपये की निकासी में 13,574 रुपये का ही काम दिख रहा है। अधिकतर योजनाओं में नहीं है सूचना पट्ट:
सत्यापन के दौरान 121 में से एक सौ ऐसी योजना मिली, जिसमें सूचनापट्ट नहीं मिला। राशि निकाली गई, परंतु बोर्ड का कहीं अता-पता नहीं। टीम के सदस्य ने बताया कि योजनागत बोर्ड नहीं रहने से हमें योजना मिलान करने में काफी परेशानी हो रही है। बकरी शेड बना घर:
सामाजिक अंकेक्षण दल के सदस्यों ने यह खोज निकाला कि जिस कार्य के लिए योजना दी गई, वह उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है। शिमला गांव में सरस्वती देवी, शांति देवी एवं अकलु मंडल की जमीन पर बने बकरी शेड में बकरी तो नहीं मिली। हां, इन शेडों में इनके परिवार के लोग रहते हुए दिखे। जिला साधन सेवी को नहीं मिला सहयोग :
टीम के डिस्ट्रिक रिसोर्स पर्सन मनोरंजन वर्मा ने बताया कि राज्य सरकार के मनरेगा कैलेंडर में मार्च 2018 में ही यहां अंकेक्षण होने का कार्यक्रम तय है। इसके बाद भी यहां के कर्मियों ने इसकी तैयारी पहले से नहीं रखी। इस पंचायत में 26 जनवरी को ही सभी 121 योजना का दस्तावेज, एमबी, एमआर हमारी टीम को उपलब्ध कराना था। परंतु कर्मियों ने यहां सहयोग नहीं किया। 28 जनवरी तक मात्र 110 योजनाओं का आधा अधूरा दस्तावेज हमें उपलब्ध कराया गया। मनरेगा के प्रति जागरूकता की कमी : डीआरपी ने बताया की मनरेगा मजदूरों के हित के लिए एक कानून है। रोजगार के लिए मजदूरों को पलायन करने की आवश्यकता नहीं होगी। यहां इसकी समझ अब तक ग्रामीणों में नहीं आयी है। ग्रामसभा में इस कानून की जानकारी मजदूरों को विस्तृत रूप से दी जाएगी। ग्रामसभा के पश्चात इन मामलों को जनसुनवाई में रखा जाएगा। ताकि योजनाओं में बरती गई गड़बड़ी रोकी जा सके।