कई किसानों की समृद्धि का राज आम व काजू बगान
जामताड़ा पर्यावरण को शुद्ध व स्वच्छ बनाने में पेड़-पौधों का बड़ा ही महत्व होता है। लेकिन
जामताड़ा : पर्यावरण को शुद्ध व स्वच्छ बनाने में पेड़-पौधों का बड़ा ही महत्व होता है। लेकिन जामताड़ा जिला अंतर्गत वन क्षेत्र तथा रैयती भूखंडों में ऐसे भी पौधे मौजूद हैं जो धीरे-धीरे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ वन संपदा को नष्ट कर रहे हैं। इन्ही की अधिकता के चलते उपजाऊ भूमि पर भी फसल का बेहतर उत्पादन नहीं होता है। कारण साफ है कि यह बुरे पौधे फसल के साथ पोषित व पल्लवित होकर अच्छे पौधों को कमजोर बना देते हैं। जंगल में अच्छे पौधों को बढ़ने नहीं देते हैं। बुरे पौधों का आंकड़ा वन विभाग के पास नहीं है। ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते कुप्रभाव से बचाव के लिए जलसंचय के साथ वन क्षेत्र संरक्षण भी जरूरी है। आमलोगों में जागरूकता की भारी कमी व पौधारोपण के प्रति उदासीनता के कारण स्थिति भयावह बनती जा रही है।
इन पौधों से बचें : विलायती बबूल पौधा बुरे पौधों में गिना जाता है। इसका कांटा बहुत ही नुकसानदायक होता है। यूकेलिप्टस का पौधा जमीन की नमी को कम करके पानी अधिक सोखता है। इसलिए इसे भी बुरे पौधों में गिना जाता है। जलकुंभी जिस जलाशय में पनप जाती है वह जलाशय किसी काम का नहीं रहता है। इसलिए इसे भी बुरे पौधों में जाना जाता है।
---सरकारी सहयेाग से लगे फलदार व काष्ठ प्रजाति के पौधे : पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि वायुमंडल में बढ़ रहा प्रदूषण मानव जीवन के लिए चिता का विषय बना है। इसके कारण पर्यावरण असंतुलित हो रहा है। इससे बचाव का एक मात्र साधन पौधारोपण ही है। पौधारोपण से न सिर्फ पर्यावरण संतुलित हो रहा है बल्कि वर्तमान समय में लगाए गए फलदार तथा काष्ठ प्रजाति के पेड़ पौधे लोगों के लिए आमदनी का स्त्रोत बन रहा है। इमारती लकड़ियां व फलदार पौधे की खेती कर किसान दोहरी कमाई कर रहे हैं। फलदार पौधा नकद आमदनी का स्त्रोत बनता जा रहा है। हालांकि किसानों को सरकारी मदद मिलने से परती पड़े अधिकांश भूखंडों में पौधारोपण की गति बढ़ी है। किसान फलदार पौधारोपण कर रहे हैं।
---इन्होंने पेड़ों को आमदनी का स्त्रोत बनाया : नारायणपुर के उप प्रमुख दोलगोविद रजक अपने पूर्वजों से प्रेरणा लेकर पिछले 20 वर्षो से पौधारोपण के प्रति सजग हैं। उन्होंने अपने 10 एकड़ भूखंड में करीब 5000 इमारती तथा कई प्रकार के फलदार पेड़ लगा रखे हैं। वे अपने पेड़ों को संतान की तरह मानते हैं। पिछले कई वर्षो से इनकी वार्षिक आमदनी करीब 50,000 से ऊपर है। कर्माटांड़ निवासी पेशे से व्यवसायी रिकू गुटगुटिया को पांच एकड़ भूखंड में विरासत में मिला है। यह आम बागान। वे अपने आम को दूसरे जिलों में भी आपूर्ति करते हैं। आम बागान से करीब 100000 वार्षिक आमदनी होती है। इनके आम बागान का नाम तीन नंबर बागान है। इतने ही नाला प्रखंड क्षेत्र में 50 हेक्टेयर में काजू के पौधे लगाए गए हैं। प्रतिवर्ष लाखों का राजस्व सरकार को प्राप्त हो रहा है। वहीं आसपास के लोगों को मुफ्त में काजू नसीब हो रहा है। यह रोजगार का स्त्रोत भी बना हुआ है।